संस्कृति समिति

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किसी देश या राष्ट्र का प्राण उसकी संस्कृति होती है। संस्कृति का अर्थ है सम्यक कृति। सम्यक् कृति मानव के सभ्यता पूर्ण आचरण तथा उसके सात्विक कर्म सौन्दर्य की द्योतक है। संस्कृति प्रगतिशील साधनाओं की विमल विभूति है, राष्ट्रीय आदर्शों की गरिमामयी मर्यादा है। मानवता की रक्षा और विकास के सभी आधारभूत सिद्धान्त इसमें भरे पड़े हैं। संस्कृति के दो स्वरूप हैं- एक लोक संस्कृति दूसरी अभिजात्य संस्कृति। लोक संस्कृति अपने क्षेत्र विशेष में अंकुरित होती है, पनपती है, फैलती है तथा पूरे क्षेत्र को संस्कारित करती है। लोक के जीवन, व्यवहार चिन्तन, कार्यकलाप, रहन-सहन रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार, व्रत, पूजन, शिल्प कला, स्थापत्य कला तथा ललित कला सभी के समन्वित रूप का नाम संस्कृति है और बुन्देलखंड क्षेत्र के जनमानस की सोच, कार्य-व्यवहार आदि का बोध कराने वाला शब्द है बुन्देली संस्कृति। बुन्देलखंड अपनी समृद्ध साहित्यिक सांस्कृतिक परम्परा के कारण सारे संसार में प्रतिष्ठित है।

बुन्देली संस्कृति समन्वयवादी है। अनेक संघर्षों के बीच से समन्वय की प्रवृत्ति इसकी विशेषता है। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ के कर्म सिद्धान्त पर बुन्देली संस्कृति की आधारशिला रखी गई है। इस संस्कृति में उदारता, सहिष्णुता त्याग का भाव, उच्च आदर्श, स्वगत कर्म प्रेरणा, निस्वार्थ भाव, तप, यज्ञ तथा लौकिक जीवन से ज्यादा आध्यात्मिक जीवन को महत्त्व देने का भाव निहित है। बुन्देली संस्कृति भारत के अनेक जनपदों की लोक संस्कृतियों से प्राचीन है। बुन्देली संस्कृति का क्षेत्र विस्तार अत्यन्त व्यापक है। इसकी व्यापकता लोक जीवन के समस्त कार्य व्यापारों में दृष्टव्य होती है। यहाँ के लोगों का रहन-सहन, खानपान बनावट रहित विशुद्ध भारतीय एवं ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की भावना ओतप्रोत है। बुन्देलखंड में पर्वों एवं त्यौहारों को मनाने का अत्यधिक प्रचलन है। लोक जीवन की सफलता के लिए ये पर्व सच्चे साथी की भूमिका निभाते हैं। इन पर्व और त्यौहारों से लोक विश्वासों को जहाँ बल मिलता है वहीं लोगों में पारस्परिक सहयोग भावना में वृद्धि भी होती है।

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डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी 

आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।

बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।

डॉ. उषा मिश्र 

सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।

नाम – डा. उषा मिश्रा
पिता – डा.आर.सी अवस्थी
पति – स्व. अशोक मिश्रा
वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट,
कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने,
माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश
मो.न. – 9827368244
ई मेल –
usha.mishra.1953@gmail.com
व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी.
शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।

सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित।
भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।