सागरः परम्परा के परिप्रेक्ष्य में
June 13, 2024जाबालिपुरम्-त्रिपुरी से जबलपुर तक
June 13, 2024श्री राम शंकर खरे
पीठ ऊँटिया पूरवै, उत्तर बघ मुख मूँछ। पश्चिम को पग शूकरी दक्षिण बाँड़ी पूछ ।।
जिला दमोह के मानचित्र में पूर्व दिशा की आकृति ऊँट की पीठ के समान है और इस दिशा में आदिवासी गौंड़ निवास करते हैं। जो ऊँट की ही तरह सच्चे मौन श्रमिक होते हैं। उत्तर दिशा की आकृति बाघ के मुख की तरह है जिसकी दो टेड़ी मूंछो की तरह नदी सुनार व बराना सहित पहाड़ी श्रेणियां पन्ना व छतरपुर जिले में प्रवेश करती हैं। इस भाग में बुन्देलों का निवास है जिन्होंने बाघ की तरह शौर्य प्रदर्शन कर बुन्देलखण्ड की नींव जमाई थी। पश्चिम की ओर बाराह के जैसे छोटे-छोटे से पाँव निकले हैं। इस क्षेत्र में पृथ्वी को गोड़ कर वित्त निकालने वाले कुर्मी जाति के लोग निवास करते हैं, दक्षिण दिशा में जिले का आकार बाँड़ी पूँछ (अध कटी पूँछ) के समान है कुल मिलाकर दमोह जिला की आकृति को कच्छपाकार कह सकते हैं। दमोह जिला के ऐतिहासिक विकास क्रम के सम्बन्ध में “दमोह दीपक” में उल्लिखित है-
आदि गुप्त कलचुरी पड़िहार, चन्देला गौहिल्ल निहार
तुगलक खिलजी गौड़ मुगल्ल, बुन्देला मरहट्टा दल्ल
डेढ़ सहस बरसें कियो भोग, तब फिरंगी कौ आयो योग।
दमोह जिला की साहित्यिक मणि माला के प्रथम माणिक्य महा कवि जगनिक दमोह क्षेत्र को बारहवीं शताब्दी में ही सीधे वीरगाथा काल से जोड़ने वाले प्रथम कवि थे। सुप्रसिद्ध कवि जगनिक (आल्हा खण्ड के रचयिता) का जन्म दमोह जिला के ग्राम सकोह तहसील हटा में हुआ था जगनिक का काल विद्वानों द्वारा स्वीकृत 1165-1203 ई. है। महाकवि के सम्बन्ध में केशवचन्द्र मिश्र ने चन्देल और उनका राजस्व काल में लिखा है – “जगनिक आल्हा के सेनापति थे तथा प्रत्येक घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे।” लोकनाथ द्विवेदी शिलाकारी ने अपनी पुस्तक महाकवि जगनिक उनका लोक गाथा काव्य आल्हा में लिखा है कि “जगनिक का जीवन वृत्त आल्हा काव्य के अतिरिक्त पृथ्वीराज रासो के महोबा समय और परमाल रासो में भी प्राप्त है। इन विभिन्न स्रोतों से जगनिक विक्रमीय बारहवीं सदी के महान चन्देल साम्राज्य के राजकवि और राजनीति विशारद एवं सिद्ध सारस्वत थे।
गोरे लाल उर्फ लाल कवि हिन्दी साहित्य के आदियुग के निर्माण में दमोह जिला बावन गढ़ की वीर गीतियों की सिंह गर्जना लेकर अवतरित हुए। इतना ही नहीं हिन्दी साहित्य के रीति युग में जब अधिकांश हिन्दी प्रदेशों के कवि नख-शिख श्रंगार वर्णन में पड़कर कांचन, कादम्बिनी, और कामिनी को ही सब कुछ मान विलासिता के पंक में डूब रहे थे तब दमोह जिला के ग्राम सकोर में विक्रमी संवत् 1715 में पैदा हुए कवि गोरे लाल उर्फ लाल कवि ने छत्रसाल की प्रशंसा में छत्र प्रकाश जैसी शौर्य गाथा का ओजस्वी गायन कर लोगों में जातीय गौरव जागृत किया। लाल कवि ने छत्र प्रशस्ति, छत्रछाया, छत्रकीर्ति, छत्रछंद शतक, छत्र हजारा, छत्रदण्ड, छत्र प्रकाश, राज विनोद तथा बरवै आदि मंथों की रचना की है।
हाजी अली खां “अली” का जन्म हटा में संवत 1913 में हुआ। श्री अली ने दमोह जिला में कवि समाज की स्थापना की। डॉ. रमा और हरिराम द्विवेदी आदि कवियों ने श्री अली से काव्य की शिक्षा पाई। अली द्वारा रचित वेद परोपकारक खान दान गंजक, हाजी दृष्टान्त माला, मोरध्वज चरित्र, इन्द्रसभा का ख्याल, गो अष्टक आदि हैं। हाजी अली की विशेषता थी- असाम्प्रदायिकता । अली का अपनी माटी के प्रति ऐसा प्रेम युग-युग तक स्मरणीय रहेगा। समस्या पूर्ति के क्षेत्र में उन्हें महारत हासिल थी।
दाता नहीं रंक होत, दान के दिए कवौ, कूकर न वृष होत, गंग के नहाये ते।
अस्त्र के गहे ते कूर, सूर नहीं होय जात, बगुला न हंस होत मोती के चुगाये ते ।।
पोथी पाय मूरख जन पंडित होय जात नहीं, तपसी नहीं होत भस्म अंग के रमाये ते ।
खून पिये सियार नहीं सिह होत हाजी अलि, तीतर के जाये बाज होत न सिखाये ते ।।
श्री माधवराव सप्रे का जन्म जिले की पथरिया तहसील में हुआ। आप उत्कृष्ट निबंधकार एवं हिन्दी के पहले कहानीकार भी हैं। एक टोकनी भर माटी नामक कहानी लिखकर वे आधुनिक कहानी के जन्मदाता बने। श्री सप्रे जी की मौलिक रचनायें जीवन संग्राम के कुछ क्षण, अनूदित तिलक गीता रहस्य, आदि हैं। सप्रे जी ने छत्तीसगढ़ मित्र मासिक के सम्पादन में पुस्तक समीक्षा सूत्र का प्रवर्तन किया। अखिल भारतीय पंचदश हिन्दी साहित्य सम्मेलन देहरादून के सभापति पद से उन्होंने कहा था- “मैं राष्ट्र भाषा हिन्दी को अपने जीवन में सर्वोच्च आसन् पर देखने का अभिलाषी हूँ।”
साहित्याचार्य पं. हरिराम त्रिवेदी का जन्म संवत् 1930 ग्राम रनेह में हुआ। इनकी प्रमुख रचनायें हैं कैकयी नाटक, हरदौल, कंस सभा, बुन्देली ख्याल, लावनी, रीति युगीन खेमे के बुन्देली अंचल की आखिरी कड़ी के रूप में आपकी साहित्य सेवा है। इनकी रचनाओं में बुन्देली और खड़ी बोली का मिला जुला रूप मिलता है।
वनवारी लाल गुरु बैनी का जन्म दमोह जिला के ग्राम भोज में हुआ। वे पांच वर्ष तक सेना में रहे। तदुपरांत ओरछा नरेश के मुख्य सचिव रहे। कुछ समय बिजावर नरेश के धर्म और कला के शिक्षक भी रहे। श्री बैनी जी का अधिकांश काव्य धार्मिक और ऐतिहासिक है और रीति कालीन कवियों के कवित्त-सवैया और घनाक्षरी को बुन्देली परिवेश में आपके द्वारा लिखा गया है। आपकी रचनायें हैं- विघ्न नाशक, विनायक दशक, शिव सप्तक, दुर्गा सोडसी, ओम श्री राम त्रिपदा, छत्रसाल विजय, वीर बुन्देला तथा हनुमान विजय पताका ।
हनुमान विजय पताका से यह छन्द दृष्टव्य है:-
आवत सघन सैन, प्रवल प्रचन्ड देखि, भये हैं अरुण युग लोचन सुवीर के।
लागे फरकने भुजदण्ड जे उदण्ड अति, उठे हैं उमंग सब अंग रणधीर के।
विलोक के अति वंक, भृकुटि वदन लाल, गरजे गंभीर नाद तनय समीर के ।
तमक तड़ाक बैनी तड़ित से तड़कत, शोभित मार्तण्ड तेज दूत रघुवीर के ।।
श्री हनुमान प्रसाद अरजरिया ”जीजा बुन्देलखण्डी” ने दमोह जिले की साहित्य परम्परा को गौरव प्रदान किया। श्री अरजरिया जीजा बुन्देलखण्डी के नाम से विख्यात थे। बुन्देली में हास्य के अलावा श्रंगार लौकिक और आध्यात्मिक उभय पक्षों को लेकर चलने वाली रचनाओं में बुन्देली माटी की गंध और मिठास छलकती है।
प्रानन से प्यारी बुन्देली, ब्रज भाषा की हेली।
देवनागरी के आंगन में खूबई खायी खेली ।।
कित्ती भाषाओं की बरकें ई ने पैरी सेली।
नवरस अलंकार से भूषित एकई जा अलवेली ।।
जीजा कवि जा सुघर सलौनी बेलन कैसी बेली ।।
श्रीजानकी प्रसाद “जिजी” दमोह जिले की साहित्य परम्परा में जहाँ जीजा बुन्देलखण्डी हैं वहाँ पर जिजी का भी अपना स्थान है। श्री जानकी प्रसाद मिश्र दमोह जिला के हटा में जन्में और उन्होंने 15 वर्ष की आयु से बुन्देली में गीत कवितायें लिखना प्रारंभ किया। श्री मिश्र के “जिजी” उपनाम से ही हास्य का संकेत मिलता है। बुन्देली की समग्र व्यंजना अपने जीवन परिवेश के साथ इनके काव्य में अवतरित हुई है।
श्री जगमोहन प्रसाद बाजपेई “मोहन” जिले के तीर्थ स्थल जागेश्वर धाम की पावन नगरी बांदकपुर में जन्में श्री मोहन जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन दमोह के संस्थापक एवं संरक्षक रहे हैं। उन्हें म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा अभिनंदित किया गया। वे राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा के प्रचारक भी रहे हैं। श्री मोहन हृदय की तरलता से स्नात पांडित्य प्रकृति, देश प्रेम और समाज में काव्य विषय चुनने में निपुण थे तथा सहज सरल उद्बोधन शैली के धनी थे। श्री मोहन ने समस्या पूर्ति की विधा में दमोह के कवियों को दक्ष बनाया। आपने 18 वर्ष की आयु में लेखन प्रारंभ किया और जीवन पर्यन्त कलमकार रहे।
श्री राम शंकर खरे – जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन दमोह के प्रधान मंत्री के रूप में एवं हास्य व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं। बुन्देली और बघेली में लिखी हाइकू शैली की रचनायें पैनेपन में बेजोड़ बन पड़ीं हैं। सामाजिक जीवन की विसंगतियों और विद्रूपताओं को उनकी रचनाओं का क्षितिज निर्माण करने का श्रेय प्राप्त है।
डॉ. छबिनाथ तिवारी पथरिया में जन्में विगत 15 वर्षों से जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन दमोह के अध्यक्ष हैं। आपने हिन्दी साहित्य के विकास हेतु स्थानीय कवियों को प्रोत्साहित कर उनकी काव्य क्षमता का वर्णन किया है और उनकी रचनाओं को जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन दमोह की ओर से अंचल ध्वनि, इन्द्र धनुष आदि संग्रहों में, संकलनों में प्रकाशित किया है। दमोह जिले के साहित्यकार प्रकाशित कर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने 69 साहित्यकारों का परिचय उनकी रचनाओं के साथ प्रस्तुत किया है जिससे जिले को समूची साहित्यिक परंपरा का बोध होता है।
इस प्रकार दमोह जिले का साहित्यिक इतिहास बुन्देली के आदि कवि जगनिक की बावन गीतियों से प्रारंभ होकर लाल कवि की ओज की उनर प्राप्ति करता हुआ भाव सिंह लोधी से युग बोध और सम सामयिक यथार्थ का बल प्राप्त करता हुआ हाजी अली में साम्प्रदायिक सौमनस्य हरिराम त्रिवेदी, लक्ष्मी प्रसार मिस्त्री “रमा” एवं बैनी कवि आदि से पौराणिकता, धार्मिकता एवं मनुज प्रेम, नंदलाल से प्रेम भक्ति, जानकी प्रसाद “जिजी” एवं जीजा बुन्देलखण्डी, दीनदयाल गुरु परमानंद कटारे, राम शंकर खरे आदि से हास्य व्यंग्य का आलंबन पाकर डॉ. छबिनाथ तिवारी के शोध प्रबंध बुन्देली के शब्द सामर्थ्य का अनुशीलन द्वारा भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण तक यात्रा करता है।
वर्तमान में निबंध लेखन, संस्मरण, रेखाचित्र, व्यंग्य विधा, कविता, गीत, हिन्दी गजल लेखन, लोकशैली बद्ध गीत लेखन, उपन्यास, कहानी, लघु कथा, एवं बाल साहित्य सृजन में इस जिला के साहित्यकार सर्व श्री राजधर जैन मानस हंस, राम चरण साहू निर्झर, दिनकर सोनवलकर, परमानन्द दुबे, बलराम दत्त दुबे, हरिगोविन्द चौरसिया, कामता प्रसाद श्रीवास्तव, विष्णु प्रसाद बादल, जयराम सिंह सुधांशु माधवसिंह मधुकर, सत्यमोहन वर्मा, जमुनाप्रसाद जलेश, महानंद आदर्श, राम गोपाल श्रीवास्तव, अनिल, डॉ. गणेश खरे, प्रेम चन्द्र विद्यार्थी, डॉ. रमेश चन्द्र खरे, राम कुमार खरे अनुज, बाबूलाल सैन, भगवती प्रसाद दुबे, सुरेश कांत, नैय्यर दमोही, श्यामसुन्दर दुबे, नर्वदा प्रसाद शुक्ल “जिज्ञासु” चन्द्र कुमार असाटी, विमल लहरी, डॉ. कोमल प्रसाद गर्ग कमलेश, डॉ. देवकीनंदन जैन वैभव, गफूर तायर, गजराज सिंह, श्रीकांत चौधरी, अभिभाषक अजीत श्रीवास्तव, जानकी शरण तिवारी, सुश्री प्रेमलता नीलम, डॉ. महेश प्रसाद चतुर्वेदी, निर्मल इटौरिया, चन्द्रकांत स्वर्णवलकर, नारायण सिंह, हेमन्त मोझरकर, रमेश वर्मा, रामकृष्ण अर्गल राज, रामनाथ अकेला, सुश्री सुसंस्कृति परिहार, संसु, अरनव शाण्डिल्य, नवोदित निगम, सुश्री आशा पाराशर, प्रेमचन्द्र जैन प्रेमेन्दु, डॉ. मनमोहन पाण्डेय, प्यारे लाल शर्मा, प्रेम शंकर ताम्रकार घायल, महंत दाना जी विजय कुमार व्यास, मानिक चन्द्र जैन, रवीशंकर मिश्र, जनाब कलामी सा., हाफिज कुतबुद्दीन निस्तर दमोही, अली मुहम्मद मुहसिन, ओवेदुल्ला, रहमन, साहित्य क्षेत्र में क्रियाशील हैं।