मोहन
July 16, 2024बिहारी लाल
July 16, 2024सुन्दरकवि
जन्म – लगभग सं. १६६८ वि.
कविताकाल – सं. १६८८ वि.
जीवन परिचय
रचना – १. सुन्दर श्रृंगार
२. सिंहासन बत्तीसी
३. बारहमास
कवि सुन्दर ग्वालियर निवासी थे और शाहजहॉं के दरबारी कवि बाद में बने । इनको ‘कविराय’, महाकविराय की उपाधियों से नवाजा गया था आपकी कविता की श्रृंगार-छटा देखिये।
“काके गए बसन पलटि आए बसन,
मेरो कछु बसन रसन उर लाये हौ।
भौहै तिरछौ है कवि सुन्दर सुजात सोहै,
कछू अलसो है; गौहै जाके रस पातो हौ।
परसों मै पाथ हुते परसों मै पाथ गहि
परसौ पाय निसि जाके अनुरागे हौ।
कौन बनिता के हौ जू कौन बनिता के हौ सु
कौन बनिता के वनिता के संग अरगे हौ ?”
श्रृंगार के कवियों ने बड़े ही सुन्दर काव्य की रचना की है जिनके विषय में अब उल्लेख किया जायेगा। इस समय श्रृंगार काव्य सारे वातावरण को श्रृंगारमय बनाना प्रारम्भ कर दिया था। यद्यपि अन्य रस काव्य भी अपनी छटा बिखेर रहे थे। श्रृंगार-शक्ति और भक्ति की त्रिवेणी के पुरोधा कवियों में बिहारी, भूषण, मंडन मिश्र, प्राणनाथ आदि श्रृंगार के तीर-वीर रस के वाणों और भक्ति से संतृप्त रचनाओं से समाज को नेतृत्व प्रदान कर रहे थे। आक्रमणों, अव्यवस्थाओं से दुखी जनों को बिहारी श्रृंगार का सुखदाई लेप लगा रहे थे तो भूषण मंडन मिश्र बुन्देली आन-बान-शान की रक्षा हेतु काव्य हुंकार देकर उन्हें सजग कर रहे थे। इस द्वन्दमयी वातावरण में प्राणनाथ, भक्ति की अलख जगाये थे।