पृथ्वीसिंह रसनिधि
July 17, 2024खंडन
July 17, 2024बक्सी हंस राज
जन्म – सं. १७४० वि.
कविताकाल – सं. १७६४ वि.
जीवन परिचय
ग्रन्थ – गेंदलाल मेहराज चरित्र, श्रीकृष्ण जू की वारी, सनेह सागर, विरह विलास, फागतरंगिनी, चुरिहारिन लीला। रामचन्द्रिका, वारह मासा, चोवदार लाला। महाराज हृदय शाह ने इन्हें बख्शी का पद दिया था।
बख्शी हंसराज दरवारी कवि थे। आप पन्ना राज्य में हृदयशाह, समासिंह और अमान सिंह के आश्रित कवि रहे। आपके पिता का नाम मुरलीधर था। बख्शी हंसराज सखी सम्प्रदाय के मानने वाले और कृष्णोपासक रहे। आपकी कविता में रस व्यंजना और काव्य सौष्ठव का अनुपम समावेश है। सनेह सागर आपका प्रसिद्ध रचना ग्रन्थ है। इसी का एक उदाहरण देखिये –
“दमकति दिपति देह दामिनि सी चमकत चंचल नैना।
घूंघट बिच खेलत खंजन से उड़ि उड़ि दीठि लगैना।
लटकति ललित पीठ पर चोटी बिच बिच सुमन संवारी।
देखे ताहि मैर सो आवत, मनहु भुजंगिनि कारी।।
कोउ कहू आय वनवीथिन या लीला लीख जैहै।
कहि कहि कुटिल कठिन कुटिलन सो सिगरे ब्रज बगरै है
जो तुम्हरी इनकी ये बातें सुनिहै कीरति रानी।
तौ कैसे पटिहै पाटे ते, घटि है कुल कौ पानी।”
अपने समय के साहित्यिक रूप को निखारते हुये बक्सी जी ने काव्य की रचना का विकसित स्वरूप प्रस्तुत किया है। आगे के दशकों में साहित्य पटल पर भक्ति-भावना के काव्य-प्रसून खिलते दृष्टिगोचर हुये। जिन्होंने सखा भाव और गुरु प्रसाद की महिमा को प्रस्तुत कर जन-जागरण का कार्य किया है। उनमें खंडन, गोप, हितरामकृष्ण प्रमुख है।