खंडन
July 17, 2024चौबे हितराम कृष्ण
July 17, 2024गोप कवि
जन्म – सं. १७५० वि.
कविताकाल – सं. १७७५ वि. लगभग
जीवन परिचय
ग्रन्थ – रामचन्द्राभरण, राम भूषण, अलंकार चंद्रिका, पिंगल प्रकरण।
कविवर गोप का पूरा नाम ‘गोपाल दास भट्ट’ था। आप बुंदेलखंड निवासी श्री यदुराय भट्ट के आत्मज थे। आपने अपने काव्य में तत्कालीन काव्यानुरूप रचनाओं का निर्माण किया। जिसमें वीरता, धीरता, भक्ति और शृंगार का अनुपम समावेश हुआ है। आपकी भाषा सरल-सुबोध और बुन्देली भाव भूमि पर आधारित है। आपकी प्रतिभा की खोज बाद में हुई। सर्वप्रथम गोप कवि के साहित्य का प्रकाशन सं. २०३७ वि. में डॉ. मोहनलाल गुप्त ‘चातक’ के शोध-पत्र में देखने को मिलता है। इससे पूर्व गौरीशंकर द्विवेदी ‘शंकर’ ने इनके नाम का उल्लेख अवश्य किया और इनके जन्म कालं सं. १७५० निर्धारित किया था। आप बाद में ओरछेश महाराज पृथ्वीसिंह के राजश्रय में रहे। जो कवि की इस पदावली से प्रकट होता है-
“नगर ओडछे आइके पृथ्वीसिंह न्रम पास,
बैठ जग्यसाला सरस कीन्हों ग्रंथ प्रकाश।”
राजाश्रय – कवि गोप ने अपने काव्य में ओरछा नरेश पृथ्वीसिंह के राजाश्र का उल्लेख किया और अपने ग्रंथ रामचन्द्रा भरन की रचना की। जो इस पद में देखने को मिलता है –
“मुक्त मुक्त जाते बने उक्त जुक्ति जस ओप।
रामचन्द्र आभरन कौ वरन कहै कवि गोप।”
कविता – कविवर गोप ने अपने समय के अनुसार श्रृंगार भक्ति-शक्ति-गति-रीति आदि सभी काव्य रूपों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया है। श्रृंगार काल की प्रधानता उनके काव्य में प्रमुखता से देखने को मिलती है जिसमे उपमा-उपमेय-अलंकारों का ढंग दर्शन होता है।