
मदनपुर
July 26, 2024
पजनारी
July 26, 2024मध्यप्रदेश में सागर शहर से. लगभग 40 किलोमीटर दूर रहली मैं पटनागंज अतिशय दिगम्बर जैन क्षेत्र विद्यमान है। रेल से आने वाले तीर्थ यात्रियों को मध्य रेलवे के बीना जंक्शन से, बीना कटनी रेल से सागर पहुँचकर रहली जाने वाली बसों से पटनागंज पहुँचना चाहिये। जबलपुर से भी रहली के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध रहती है।
पटनागंज जैन क्षेत्र स्वर्णभद्रा नदी के तट पर मंदिरों के उत्तुंग शिखरों सहित शोभायमान है।
इतिहास
ऐतिहासिक दृष्टि से यह जैन क्षेत्र 7-8 सौ वर्ष प्राचीन है। पटनागंज में 11वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक की मूर्तिकला दर्शनीय है। यहाँ का सुन्दर सहस्रकूट चैत्यालय गुप्तोत्तर काल का प्रतीत होता है।
एक लम्बे अन्तराल तक यह प्राचीन जैन क्षेत्र उपेक्षा का शिकार रहा। आजादी के पूर्व 1944-45 में जब प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद संत गणेशप्रसाद जी वर्णी इस क्षेत्र में आये तब इसको नया जीवन मिला। वर्णी जी बुन्देलखण्ड में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह सदैव ज्योतिर्मय रहे हैं। उन्होंने यहाँ जैन गुरुकुल की स्थापना कराई थी और जिनालयों के जीर्णोद्वार करने हेतु समाज को प्रेरित किया था।
पुरातत्व
पटनागंज जैन क्षेत्र में विशाल 7 जैन मंदिर और 19 लघु मंदिर विद्यमान हैं। मूल नायक तीर्थंकर महावीर स्वामी की प्रतिमा 13 फुट 7 इंच उत्तुंग, पद्मासन मुद्रा में है। यहाँ इन्हें ‘बड़े देव’ कहते हैं।
तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी की सहस्र फणों युक्त दो प्रतिमायें यहाँ विलक्षण और अन्यत्र विरल हैं। कृष्ण वर्ण की पद्मासन पाश्र्वनाथ प्रतिमायें 4 फुट 4 इंच गुणा 2 फुट 7 इंच की संवत् 1842 की प्रतिष्ठित हैं।
यहाँ का एक हजार आठ मूर्तियों जड़ित 9 फुट ऊँचा और 32 फुट वृत्ताकार सहस्रकूट चैत्यालय भगवान के 1008 रूपों को पूजने का प्रतीक है। वहीं यह पुरातत्व की दृष्टि से अद्भुत है। पटनागंज में नन्दीश्वर द्वीप के 52 जिनालयों की रचना भी भव्य और दर्शनीय है।
मंदिर संख्या 15 में संवत् 1472 की तीर्थंकर मल्लिनाथ की मूर्ति पद्मासन में 3 फुट 8 इंच ऊँची है।
संवत् 1548 की एक श्वेत पद्मासन प्रतिमा तीर्थकर पार्श्वनाथ की 11 फणों वाली, चौबीसवें जिनालय में 4 फुट की अवगहना पर दर्शनीय है। छटवें मंदिर में भगवान महावीर स्वामी की 4 फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा, कत्थई रंग की संवत् 1835 की मुख्य प्रतिमा आकर्षक है। यहीं कलचुरि शैली की दो मूर्तियाँ दायों और बाँयीं ओर खड़गासन अवस्था में, 12वीं शताब्दी की विद्यमान हैं। इस वेदी पर पत्थर की 61, धातु की 10 मूर्तियाँ, पाँच मेरु और पाषाण की दो चौबीसी दर्शनीय हैं।