सागर जिले में कानपुर मार्ग परं कन्दारी ग्राम होकर मात्र 27 किलोमीटर दूर बाकरई नदी के किनारे एक पहाड़ी पर जैन क्षेत्र पजनारी अवस्थित है। सागर की बण्डा तहसील मुख्यालय से बाँदरी रोड़ पर मात्र 7 किलोमीटर चलकर भी पजनारी क्षेत्र के दर्शन किये जा सकते हैं।
इतिहास
पजनारी की जैन मूर्तियों और मंदिर में कोई शिलालेख तो अब उपलब्ध नहीं है परन्तु शिल्पगत दृष्टि से यह कला-कृतियाँ चन्देल कालीन अनुमानित हैं। सम्पूर्ण रचना काल दसवीं ग्यारहवीं सदी के आसपास का प्रतीत होता है।
पुरातत्व
वर्तमान में यहाँ एक जैन मंदिर और आसपास जिन बिम्बों के कलावशेष ही विद्यमान हैं। एक बड़े प्रांगण में ऊँचे आसन पर स्थित जैन मंदिर में मूलनायक प्रतिमा तीर्थकर शान्तिनाथ की 4 फुट ऊँची, पद्मासन मुद्रा में है। शान्तिनाथ के दोनों ओर खड़गासन मुद्रा में 6-6 फुट ऊँची तीर्थंकर कुन्थनाथ एवं अरहनाथ की प्रतिमायें शोभायमान हैं। यह त्रिमूर्ति बुन्देलखण्ड की ‘शान्ति-कुन्थ-अरह’ की अन्य त्रिमूर्तियों से थोड़ा हटकर है। अन्य जगहों पर प्रायः तीनों मूर्तियाँ खड़गासन में रहती हैं परन्तु यहाँ भगवान शान्तिनाथ की मूर्ति पद्मासन में है। जैन मंदिर के पास, यहाँ के कलावशेषों से संयोजन कर एक शिव मंदिर बनाया गया है जिसके पास एक गहरी गुफा है। वर्तमान में इस गुफा को अन्दर से बन्द कर दिया गया है। पहले यहाँ एक मठ भी था। क्षेत्र की पहाड़ी के नीचे एक तालाब और उद्यान भी है उद्यान में एक बावड़ी है।
बाकरई नदी के किनारे जैन क्षेत्र के यात्रियों-दर्शनार्थियों के विश्राम हेतु एक जैन धर्मशाला का निर्माण भी हो गया है। आस पास जैन आबादी नहीं होने से क्षेत्र का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। हालाँकि निकट के गाँवों की जैन समाज ने इस जैन क्षेत्र को विकसित करने का प्रयास किया है। पहाड़ी और तलहटी में विद्यमान आसपास की खण्डित अखण्डित कलाकृतियों को एकत्रित कर यहाँ एक जैन संग्रहालय बनाया जा सकता है। बण्डा के जैन मंदिर भी प्राचीन हैं और वहाँ कुछ जैन मूर्तियाँ अत्यन्त भव्य हैं। बण्डा की जैन समाज को पजनारी क्षेत्र के विकास में योगदान देकर इस अंचल की नई जैन पीढ़ी को एक सुविकसित प्राचीन क्षेत्र की सौगात सौंपना चाहिये।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।