
पजनारी
July 26, 2024
पर्वत पर मढ़
July 26, 2024बीना – बारहा तीर्थ मध्यप्रदेश में सागर से नरसिंहपुर जाने वाले मार्ग पर 66 किलोमीटर दूर ग्राम देवरी से मात्र 6 किलो मीटर पूर्व में स्थित है। मध्य रेलवे के करेली स्टेशन से भी बस द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है। इस तीर्थ- ग्राम की तहसील रहली और जिला सागर है।
इतिहास
‘सुख-चैन’ नदी के किनारे बसे तीर्थ बीना बारहा में जैन मंदिर तो मात्र 6 ही विद्यमान हैं परंतु भग्नावशेषों का अंबार लगा हुआ है। मुख्य मंदिर तीर्थंकर शांतिनाथ का है। इस जिनालय में खड़गासन मुद्रा में 15 फुट उत्तुंग शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा अत्यंत सुन्दर, सौम्य और सिद्ध मानी जाती है। इस मूर्ति को भू-गर्भ से, एक जैन अनुयायी ने सपना देखकर, खनन कर निकाला था। संवत् 1803 अर्थात् सन 1746 में श्री जयचंद पाण्डे ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहाँ 18वीं शताब्दी की अन्य प्रतिष्ठित मूर्तियाँ भी विराजमान हैं।
पुरातत्व
पुरातत्व की दृष्टि से शांतिनाथ प्रतिमा चन्देलकालीन प्रतीत होती है। हालांकि कोई शिलालेखीय प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ। इसी गर्भ गृह में दाँयीं-बार्ड दीवालों पर श्याम वर्ण की 8 खड़गासन और एक पद्मासन मुद्रा में प्रतिमायें जड़ी हुईं हैं। द्वार पर भी दो खड़गासन और एक पद्मासन मूर्तियाँ स्थित हैं। इसी चौखट पर कुछ मिथुन मूर्तियाँ भी उकेरी गई हैं। यह उस काल में मंदिरों को विनाश से बचाने के लिये टोटका के रूप में निर्मित करने की परम्परा थी। इसी से सटी हुई दालान में 3 फुट 10 इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर की दर्शनीय है। यह मंदिरों के क्रम में तीसरा जिनालय है।
मंदिर संख्या 1
बड़े दरवाजे वाले इस जिनालय के गर्भ गृह में सामने की दीवाल पर ईंट-चूने की श्याम वर्ण तीर्थंकर प्रतिमा की अवगाहना 13 फुट x 12 फट 4 इंच और वक्ष पर श्री वत्स है। यद्यपि पद्मासन मुद्रा की इस मूर्ति पर कोई पहचान चिन्ह नहीं है पर स्थानीय लोग प्रारंभ से ही इसे महावीर स्वामी की मूर्ति मानते आ रहे हैं।
इसके आगे रक्तिम आभा की भगवान चन्द्रप्रभु की मूर्ति 6 फुट 9 इंच ऊँची है। भगवान के केश मुकुट के आकार के और कंधों तक बिखरे हुए हैं। पीठासन पर अर्द्ध चंद्र अंकित है और एक शिलालेख में प्रतिष्ठा का काल फाल्गुन शुक्ल 13 बुधवार संवत् 1832 अंकित है। इस तरह आगे-पीछे विराजी हुईं मूर्तियों की स्थिति के कारण गाँव वाले इन्हें मामा-भांजा मानते हुए ‘मामा- भांजे’ का मंदिर कहते हैं।
महावीर स्वामी की बड़ी मूर्ति के बाईं ओर तीर्थंकर अजितनाथ और दाई ओर कत्थई वरण में ऋषभ देव की मूर्तियाँ हैं। पार्श्व में गज लक्ष्मी, शासन देवियाँ और चमरेन्द्र का उत्कीर्णन किया गया है। बाईं और दाई ओर दीवालों पर सुन्दर दृश्यों के अंकन उल्लेखनीय हैं। दाहिनी ओर ऋषभ देव की कायोत्सर्ग प्रतिमा है। मध्य में पार्श्वनाथ और बायें तीर्थंकर नेमिनाथ की खड़गासन मूर्ति विद्यमान है। दायीं भित्ति पर उत्कीर्ण तीन दृश्य समूहों में एक 3 फुट उत्तुंग पद्मासन ऋषभदेव और तीसरी 3 फुट ऊँची पार्श्वनाथ प्रतिमा है। मुख्य वेदी पर प्रमुख प्रतिमा के अतिरिक्त 6 प्रस्तर प्रतिमायें हैं इनमें दो सन् 1491 की हैं। दोनों ओर पीतल के मेरू में भी चौबीसी अंकित है।
यहाँ नीचे भू-गृह भी है जिसके द्वार पर यक्ष और शासन देवियों के अतिरिक्त कतिपय युगल मिथुन-मूर्तियों का अलंकरण भी दर्शनीय है।
मंदिर संख्या 2
भगवान सुपार्श्वनाथ (3 फुट 2 इंच) पद्मासन मुद्रा में स्थापित हैं जिसके हाथ खंडित कर दिये गये है। 10 इंच और 9 इंच की पद्मासन मुद्रा में तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी बेदी पर विद्यमान हैं। शासन देवियाँ भी उत्कीर्ण हैं। मंदिर के बरामदे के स्तंभ और बाहरी दीवाल पर भी पद्मासन में 2 तीर्थंकर मूर्तियाँ स्थित हैं।
दूसरे मंदिर के पास 3 बेदियाँ और हैं जिनमें बाईं पर भगवान नेमिनाथ (2 फुट 9 इंच), दाईं पर शीतलनाथ (3 फुट 10 इंच) और मध्य की बेदी पर तीर्थंकर ऋषभदेव (3 फुट 8 इंच) स्थित हैं। मूर्तियाँ भा-मंडल युक्त एवं शासन देवियों से अलंकृत हैं।
मंदिर संख्या 4
यहाँ ऊपर स्थित छोटे जिनालय में एक वेदी पर एक फुट चार इंच ऊँची तीर्थकर नेमिनाथ की श्याम पाषाणी पद्मासन प्रतिमा वंदनीय है।
मंदिर संख्या 5
तीर्थ स्थित कुँए के निकट गंध कुटी मंदिर है। जिसके लिये 5 रास्ते हैं। पाँचवा मार्ग चक्राकार प्रदक्षिणा वाला है। इसका गर्भ गृह वृत्ताकार है। जिसकी वेदी पर तीन ओर तीर्थंकर प्रतिमायें और चौथी ओर उपाध्याय की शास्त्र सहित उपदेश मुद्रा में, कमंडल और पीछी लिये हुये है। इसी के बगल में सन् 1491 ई. की 2 श्वेत तीर्थंकर मूर्तियाँ अवस्थित हैं। दायीं ओर की वेदी पर 3 फुट 6 इंच की चंद्रप्रभु भगवान की अलंकृत खड़गासन प्रतिमा है। बायीं ओर एक शिलाखण्ड में 3 फुट 6 इंच की तीर्थंकर प्रतिमा ऋषभनाथ की खड़गासन मुद्रा में हैं। परिक्रमा पथ में दीवालों और द्वारों पर सुन्दर मूर्तियाँ अंकित हैं। जिनमें पार्श्वनाथ की माता बामा देवी के गर्भावस्था के दृश्य का अद्भुत अंकन है।
मंदिर संख्या 6
यह पहले मंदिर के सामने ही बिना शिखर का सामान्य परंतु प्राचीन मंदिर है। बीना-बारहा तीर्थ में अनेक मूर्तियाँ खंडित एवं अखंडित अवस्था में पड़ी हुई हैं। आसपास के गाँवों मेड़खेड़ा, अमरगढ़, ईश्वरपुर, बिजौरा और बीना आदि में भी मूर्तियाँ मिलती हैं। इन ग्रामों से कुछ मूर्तियाँ इस तीर्थ पर लाई भी गई हैं। तीर्थंकर प्रतिमाओं के अलावा पंचांग नमस्कार करती हुई अलंकृत एक नारी के हाथ में कटार और इसकी पाठ पर पंजे का चिन्ह बना हुआ है जो आशीर्वाद का प्रतीक माना जा सकता है। ऐसे ही एक पाषाणखंड पर एक पंजा दैवीय आशीष का मुद्रांकन माना जाता है।
यात्रियों की सुविधा के लिये इस तीर्थ पर धर्मशालाएँ आदि अन्य सुविधायें उपलब्ध हैं। क्षेत्र की नियमित आय के लिये कृषि भूमि की उपलब्धता भी है। इससे तीर्थ की व्यवस्था में स्वावलम्बन है।