जतारा
July 26, 2024जहाजपुर
July 26, 2024मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से छतरपुर (बाया गुलगंज) बस मार्ग द्वारा 18वें किलो मीटर पर दक्षिण दिशा में पाँच किलो मीटर मात्र चलने पर जैन तीर्थ अहार के दर्शन हो जाते हैं।
अहार में विद्यमान 117 शिलालेख इस तीर्थ के पुरातात्विक महत्व और चार किलो मीटर लम्बा मदन सागर तालाब यहाँ की प्राकृतिक रमणीयता को दर्शनीय बनाता है।
इतिहास
अहार का पुरा-वैभव चंदेल कालीन है। 1129 से 1162 ई. तक चन्देल नरेश मदन वर्मा की देन ही यहाँ का विशाल तालाब है। जो आज भी ‘मदन सागर’ ही कहलाता है। इसलिये अहार तीर्थ का प्राचीन नाम भी ‘मदनेश सागर- पुर’ था। सन् 1167 से 1213 ई. तक परमालदेव चंदेल राजा रहे, तभी अहार जी में 18 फुट उत्तुंग मुख्य प्रतिमा तीर्थकर शांतिनाथ की स्थापना हुई थी। जैसा कि इस भव्य मूर्ति पर लगे शिलालेख में अंकित है ‘ॐ नमो वीतरागाय ॥ गृहपतिवंशसरोरूहसहस्त्ररश्मिः सहस्त्रकूटै र्यः। वाणपुरे व्यधितासीत श्री मानि। ह देवपाल इति ॥1॥ संवत् 1237 मार्गसुदी 3 शुक्रे श्री- मत्परमद्धिदेवविजयराज्ये….. (बानपुर क्षेत्र के वर्णन में यह शिलालेख पूर्ण मुद्रित है।)
अर्थात् वीतराग के लिये नमस्कार। जिन्होंने बानपुर (अहार से लगभग 35 कि.मी. किलोमीटर दूर सम्प्रति उत्तर प्रदेश में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ बानपुर) में एक सहस्रकूट चैत्यालय बनवाया। वे गृहपति वंश रूपी कमलों को प्रफुल्लित करने के लिये सूर्य के समान श्रीमान देवपाल यहाँ हुये। … संवत् 1237 अगहन सुदी 3 गुरुवार, श्रीमान परमार्द्ध-देव के विजय राज्य में……।
इसी शिलालेख के श्लोक 7 में इस मूर्ति के निर्माता पापट का नामोल्लेख भी है।
यह अपने आप में संपूर्ण शिलालेख है। जिससे चंदेल राजा परमाल के शासन काल में पापट द्वारा संवत् 1237 की अगहन सुदी 3 शुक्रवार को अर्थात् सन् 1180 में तीर्थकर शांतिनाथ की यह 18 फुट ऊँची मूर्ति, 21 फुट की अखण्ड शिला में निर्मित की गई थी, जिनके पूर्वज देवपाल ने अतिशय जैन तीर्थ बानपुर में सहस्रकूट चैत्यालय और 18 फुट ऊँची तीर्थकर शांतिनाथ की भव्य प्रतिमा स्थापित कराई थी। बानपुर की शांतिनाथ प्रतिमा पर संवत् 1001 अर्थात् सन् 944 ई. का शिलालेख विद्यमान है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि वानपुर की प्रतिमा 240 वर्ष पहले की है। दोनों जगह शांतिनाथ की विशाल प्रतिमा के बाँयें-दाँयें तीर्थंकर कुंथनाथ एवं अरहनाथ की प्रतिमायें विद्यमान हैं। उक्त दिनों इस तरह के त्रिमूर्ति तीर्थंकर विम्बों की स्थापना का खूब प्रचलन बुन्देलखण्ड में था।
पुरातत्व
सन् 1827 में जंगलों से खोजे इस तीर्थ को प्रकाश मिलना प्रारंभ हुआ था। तब तालाब के किनारे जंगलों के ढलान में खोये इस क्षेत्र को ‘इडकना’ कहा जाता था। मीलों दूर पाये मूर्तियों के शिलाखण्डों के कलावशेषों से यह संकेत अवश्य मिलते हैं कि कभी यहाँ बहुत बड़ी संख्या में मंदिर रहे होंगे। शिलालेखों से प्रमाणित होता है कि संवत् 1123 (अर्थात् सन् 1066) से संवत् 1332 (अर्थात् सन् 1275) की अवधि में निरंतर यहाँ के पहाड़ों के पाषाण से मूर्तियों का निर्माण दो सौ वर्षों तक चलता रहा। क्या वैभव का काल रहा होगा वह! जैन धर्मवलंबियों की विभिन्न जातियों के नामों की पुष्टि भी इन शिलालेखों में होती है। अर्थात परवारों के अलावा लमेचू, खण्डेलवाल, गोला पूर्व, जैसवाल, पोरवाल, गृहपति, अवधपुर, महडिलवाल, माधवान्वय आदि आदि।
जैनागम के आधार पर ‘कामदेव पुराण’ की 17वीं संधि अनुसार कामदेव श्री नलराज जिनको मदनकुमार भी कहा जाता है, तीर्थंकर मल्लिनाथ और मुनिसव्रतनाथ के बीच में उत्पन्न हुये थे। मदनकुमार और महावीर स्वामी के तीर्थ में आठवें विष कलंक केवली कठिन साधना कर यहाँ के गगनचुंबी शिखरों से मोक्षगामी हुए। इसलिये अहार को सिद्धतीर्थ भी मानते हैं।
यहाँ स्थित सिद्धों की टोरिया और सिद्धों की गुफा से अहार जी को विज्ञगण सिद्धक्षेत्र प्रमाणित करते हैं। चंदेरी निवासी उद्योगपति पाड़ाशाह का राँगा, कहते हैं यहाँ चांदी में बदल गया था। इसी सम्पत्ति से उन्होंने यहाँ जिनबिम्बों एवं जिनालयों की स्थापना की थी। इससे इसे अतिशय क्षेत्र कहा जाता है।
तीर्थ-विवरण
शांतिनाथ मंदिर : पूर्व में यह मुख्य जिनालय टीले के रूप में जंगलों में खोया था और 18 फुट ऊँचे शांतिनाथ को ग्रामीण मूढ़ादेव के नाम से पुकारते थे। भगवान शांतिनाथ की इस मूर्ति के दाँयी ओर तीर्थकर अरहनाथ की मूर्ति आतताइयों द्वारा तोड़ दी गई थी। 1957 में यहाँ नवीन स्थापना हुई। बाँयीं ओर भगवान कुन्थनाथ की भी अरहनाथ के समान 12 फुट ऊँची प्रतिमा स्थित है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा में त्रिकाल (भूत, वर्तमान और भविष्य) चौबीसी तथा विद्यमान बीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ अत्यंत मनोज्ञ हैं। शिखर का पुनर्निर्माण भी कराया जा चुका है।
भोंयग
शांतिनाथ मंदिर के सभा सदन में ही भूग्रह है। यहाँ के जिनबिम्ब दर्शनीय हैं।
मेरू मंदिर
यह मेरू के आकार का गोलाकार और तीन खण्डों वाला निर्माण है। यह सृजन अपने आप में सुन्दर है।
मान स्तंभ
दसवीं सदी का कलात्मक मानस्तम्भ दर्शनीय है। यह परम्परानुसार जिनालय के सामने ही स्थापित है।
बाहुबलि मंदिर
वर्तमान में यहाँ बाहुबलि स्वामी की नौ फुट ऊँची प्रतिमा 1958 में निर्मित मंदिर में स्थापित की गई है। बाहुबलि मंदिर के चारों और आठ कमरे बनाये गये हैं जिसमें साधु यती आदि साधनारत रहते हैं।
वर्द्धमान मंदिर
शांतिनाथ संग्रहालय के ऊपर 1958 में वर्द्धमान स्वामी की स्थापना की गई थी। संग्रहालय की कलाकृतियाँ उल्लेखनीय हैं।
चन्द्रप्रभु तथा पार्श्वनाथ मंदिर
यह दोनों आधुनिक जिनालय भी दूसरी मंजिल पर वंदनीय हैं। जिनकी रचना कुछ वर्षों पूर्व ही की गई है।
पंच पहाड़ी
मुख्य तीर्थ से लगभग 2 किलो मीटर की दूरी पर मदनेश कुमार व विष- कलंक (या विस्कँवल) केवलियों का निर्वाण स्थल है जिसके पूर्व में सरोवर और तीनों ओर पहाड़ियाँ हैं। यहाँ छः जिनालय हैं जिनमें चरण पादुकायें विराजमान हैं। यहाँ अनेक प्राचीन भग्नावशेष मिले थे। पर्वत के नीचे मदनबेर है।
अहार तीर्थ में पत्रकार शिरोमणी स्व. पं. बनारसीदास चतुर्वेदी एवं स्व. यशपाल जैन जैसे साहित्यकारों ने ही शांतिनाथ संग्रहालय की स्थापना कराई थी जो मूलतः दर्शनीय है।
यहाँ प्राचीन शांतिनाथ संस्कृत विद्यालय, व्रती आश्रम, महिला आश्रम, सरस्वती सदन और पुस्तकालय भी विद्यमान है। सौ से अधिक कमरे यात्रियों की सुविधाओं के लिये उपलब्ध हैं। प्रति वर्ष अगहन माह में वार्षिक मेला आयोजित होता है।