
बँधा जी
July 26, 2024
अहार जी
July 26, 2024स्थिति
टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से उत्तर की ओर मऊरानीपुर जाने वाले रोड़ पर मात्र 40 किलोमीटर दूर जतारा कस्वे में दिगम्बर जैन मंदिर पार्श्वनाथ नाम से एक प्रांगण में दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र विद्यमान है।
इतिहास
सलीमाबाद, जयतारा और जंत्रघाटी आदि नामों से पूर्व में जाना जाने वाला, जतारा छटवीं सदी में तंत्र-मंत्र-यंत्र के लिये प्रख्यात रहा है। बस्ती से लगी हुई घाटी ‘जंग घाटी’ कही जाती थी। यहाँ के राजा जय शक्ति की मृत्यु सन. 857 में हुई थी जो जैन अनुयायी माने जाते थे। जतारा में स्थित भोंयरे में प्राप्त एक शिलालेख में संवत् 993 (सन् 936) का वर्णन मिलता है। भूगृह में स्थित शिलालेख के अनुसार सम्वत् 1153 अर्थात् 1096 में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। दूसरा शिलालेख कार्तिक बदी 14 संवत् 1478 का है। मूल नायक पार्श्वनाथ के पाद-मूल में संवत् 1044 की प्रतिष्ठा का शिलालेख और पहले मंदिर में नेमिनाथ जी के पाद-मूल में स्थित शिलालेख में संवत् 1210 अंकित है। यह पुष्ट करता है कि जतारा की मूर्ति-कला का काल लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है।
पुरातत्व
जतारा के बस स्टैण्ड से थोड़ी ही दूर एक परकोटे में 4 जैन मंदिर, 1 भोंयरा और 2 गन्ध कुटी हैं। इसी प्रांगण में स्वाध्याय सदन, धर्मशाला एवं कुआ भी है।
नेमिनाथ जिनालय
इस मंदिर में तीन वेदियों पर क्रमशः तीर्थकर नेमिनाथ (बड़े बाबा) की पद्मासन श्यामवर्णी मूर्ति, चन्द्रप्रभु की श्वेत पद्मासन प्रतिमा और चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी की भी पद्मासन मुद्रा में कत्थई रंग की प्रतिमा वंदनीय है।
आदिनाथ जिनालय
यहाँ मुख्य मूर्ति प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी के दोनों ओर बाहुबलि एवं भरत चक्रवर्ती की खड़गासन प्रतिमायें स्थापित हैं। यहीं चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ भी विद्यमान हैं। दाँयी ओर एक गन्धकुटी में पार्श्वनाथ की श्याम पद्मासन मूर्ति और पीछे खण्डित कलावशेषों का संग्रहालय है।
पार्श्वनाथ जिनालय
क्षेत्र के मूल नायक पार्श्वनाथ तीर्थंकर की सफेद पद्मासन मूर्ति यहाँ दर्शनीय है। इसी मंदिर में सात अन्य वेदियों पर भी तीर्थंकरों की मूर्तियाँ वंदनीय हैं।
पंचवालयदि जिनालय
क्षेत्र में स्थित दूसरे आदिनाथ जिनालय के ऊपर इस मंदिर में तीर्थकर बांसुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी की भव्य पद्मासन प्रतिमायें स्थित हैं। इसी मंदिर के कोने की एक गन्धकुटी में पद्मासन श्वेत प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी की स्थापित है।
भोंयरा
जतारा के भोंयरे में विद्यमान मूर्तियाँ न केवल प्राचीन हैं वरन् तत्कालीन पालिस की चमक का ओज विस्मयकारी है। इन प्रतिमाओं के अतिशय की कथायें जतारा के लोग बड़ी श्रद्धा से सुनाते हैं। यहाँ भू ग्रह स्थित देवालय पार्श्वनाथ मंदिर के बाँयी ओर दर्शनीय है।