योग द्वारा सुरक्षित प्रसव के सहायक उपाय –
- शरीर ढ़ीला रखने हेतु व्यायाम – हाथ सामने व पार्श्व में लाना, पैर के टखने खींचना, दोनों पैरों के पंजे उठाना, पंजों को हल्का सामने झुकाना-उठाना, बांये-दांये शरीर को हिलाकर व्यायाम करना, झुकाना इत्यादि लाभप्रद होता है।
- श्वास जन्य व्यायाम – श्वास पर दबाव न पड़े अतः शेर-खरगोश जैसी श्वास व प्राणायाम करना।
- आसन व खड़े रहना – अर्द्धकटिचक्रासन, अर्द्धचक्रासन, पादहस्तासन, उत्कटासन, प्राणायाम, नाड़ी शुद्धि, भ्रामरी।
- ध्यान – ‘‘ऊँ’’ का उच्चारण लम्बे समय तक किया जाना, पूजन में रूचि लेना इत्यादि।
अन्य योगाचार्य से सम्पर्क कर निरंतर परामर्श अनुसार योग क्रियायें करें।
योग में वर्जित आसन – 1-3 माह तक- बध्यकोण आसन, 4-6 माह तक सामने झुकना, नीचे झुकना, सर्वांग आसन, मत्स्यआसन, पवनमुक्त आसन, पश्चिमोत्सासन, बध्यकोण आसन, वक्र आसन, 7-9 माह पैरों को ऊपर उठाना व पीछे ले जाना, शशांक आसन, पद्महस्त आसन, सर्वांग आसन, मत्स्य आसन, भुजंगासन, शलभासन, उत्स्रा आसन, वक्रासन, पश्चिमोतासन इत्यादि वर्जित हैं।
इनके अतिरिक्त कपाल भारती, उद्यियान बंद नोलि, सूर्य नमस्कार एवं अन्य पूर्व में दर्शाये गये आसनों का गर्भावस्था के दौरान उपयोग में न लायें।
प्रसव उपरांत योग क्रियायें – प्राणायम, ताड़ासन, अर्द्धकटिचक्रासन, त्रिकोणासन, उत्तांनपादासन, भुजंगासन, उर्द्धहस्तोनासन, शवासन, भ्रामरी, ओंमकार इत्यादि का प्रयोग लाभकर होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा गर्भावस्था एवं प्रसव उपरांत – सुबह 1 घंटे पैदल चलें। ठण्डा कूल्हों पर 10-15 मिनिट तक स्नान करावें। मिट्टी का पेट पर लेप करें। धूप स्नान करें। आसानी से पैदल चलें, 10 मिनिट नंगे पैर हरी घास पर पैदल चलें।
आहार – हल्का, सुपाच्य एवं सात्विक भोजन करें। 300-500 कैलोरी आहार बढ़ाकर गर्भकाल के दौरान सेवन करें। अपने शरीर को प्रसवोउपरांत सुबह आधे घंटे पैदल चलें/चलायें। सूर्य नमस्कार व अन्य आसन भी करें। सम्पूर्ण शरीर को तेल से हल्की मालिश करावें। श्वास से संबंधित व्यायाम भी करें। भोजन विधि स्वस्थ, व्यावहारिक क्षेत्रानुसार गर्भकाल व प्रसवोउपरांत संतुलित बनाकर सेवन करें। इनमें सब्जियाँ, दालें, फल, मीठा (शहद, गुड़, नारंगी, फलों का रस, मौसम अनुसार सेवन करें, सूखे मेवे, फलों के रस, गाजर, टमाटर, सौंप, सलाद, व फलों के सूप, दूध, नारियल पानी इत्यादि सेवन करें)। गर्भावस्था के दौरान सुबह 5-6 बजे दूध-चाय, 7-8 बजे नास्ता, 11-12 बजे दोपहर का भोजन, 3-4 बजे फल इत्यादि, 6-7 बजे भोजन इत्यादि ग्रहण करें। रात्रि में दूध सेवन करावें।
गर्भकाल के दौरान महत्वपूर्ण जानकारियाँ –
- माताओं को अच्छे साहित्य, आध्यात्मिक चर्चाओं एवं विद्वानों के जीवन-दर्शन पर पुस्तक व साहित्य का अध्ययन करना लाभप्रद होता है।
- माताओं को इच्छाओं से दुःखद सन्दर्भों से, ज्यादा फैशन से, यहाँ-वहां की चर्चाओं में अनुचित अव्यावहारिक लोगों के साथ संबंध नहीं रखना चाहिए। अपने आपको संयमित व शांत मन से रखना चाहिए।
- अपने शयन कक्ष में अच्छे सुन्दर फोटो या चार्ट, केलेण्डर इत्यादि लगाकर रखें ताकि आने वाली संतान भी उन्हें देखकर सुखी अनुभव करें।
- मातायें संतुलित, सात्विक एवं पोषित आहार ही सेवन करें। ताकि शरीर के सभी अंगों को लाभ दे सकें।
- माताओं के कुपोषण होने पर रक्त अल्पता, सूखा रोग एवं वातजन्य व्याधियां प्रायः बच्चों में हो जाती हैं।
- माताऐं गर्भकाल के दौरान ज्यादा तनाव, शरीर पर न आने दें एवं मस्तिष्क पर गलत प्रभाव करने वाले नृत्य, नाटिका, आपराधिक सिनेमा इत्यादि न देखने हेतु प्रेरित करें।
- गर्भस्थ माँ शुद्ध जल का सेवन, दिनभर बार-बार करें ताकि शरीर में कोई संक्रमण न हो सके।
- भोजन के पश्चात् प्रतिदिन करीब आधे घंटे पैदल अवश्य चलें।
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों को प्रसव पूर्व प्रसव उपरांत यदि माताऐं स्वयं व नवजात शिशु की स्वास्थ्य रक्षा हेतु व्यावहारिक प्रयोग में लाती हैं, तो निश्चित ही स्वस्थ जीवन, सुरक्षित मातृत्व का सपना भी पूर्ण होता है।