सिहौनिया
July 25, 2024गुरीलागिरि
July 25, 2024स्थिति
मध्यप्रदेश के गुना जिले में पश्चिमी रेलवे के मुंगावली स्टेशन से 43 कि.मी. और मध्य रेलवे के ललितपुर स्टेशन से लगभग 35 कि.मी. दूरी पर यह प्राचीन और ऐतिहासिक नगर अवस्थित है।
चन्देरी के निकट ही जैन तीर्थ खंदार जी, बूढ़ी चंदेरी, गुरीलागिरि और थूबोन जी भी स्थित हैं। चन्देरी से थोड़ी ही दूर पर वेत्रवती और उर्वशी सरिताएँ प्रवाहित हैं। ग्वालियर, मुंगावली, ललितपुर से चन्देरी पहुँचने के लिये हर समय बस सेवायें उपलब्ध रहती हैं।
इतिहास
विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में प्रतिहार वंशीय क्षत्रिय नरेश कीर्तिपाल देव ने वर्तमान नगर की स्थापना की थी।
इतिहासकार अलबरूनी ने 1030 ई. में और इब्न बतूता ने 1336 में अपने यात्रा वृतान्तों में चन्देरी का वर्णन किया था। 1251 ई. में सुल्तान बलवान ने और 1304 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने क्रमशः चन्देरी पर आक्रमण किये थे। सन् 1528 ई. में चन्देरी के प्रशासक मेदिनीराय पर बाबर द्वारा किये गये आक्रमण से वहाँ की सैकड़ों छत्राणियों द्वारा 28 जनवरी 1528 को किये गये जौहर के कारण भी यह प्रसिद्ध है। यद्यपि आदि पुराण के अनुसार तीर्थंकर आदिनाथ का समवशरण चंदेरी में आया था जिससे चन्देरी की प्राचीनता और पावनता का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
पौराणिक ‘चेदि-नरेश’ शिशुपाल की ऐतिहासिक राजधानी के रूप में भी यह प्रसिद्ध है जो निकट ही बूढ़ी चंदेरी के रूप में ख्यात है। भारत के प्रथम 1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन में यहाँ के राजा मर्दनसिंह का योगदान भी अविस्मरणीय है।
पुरातत्व
ग्यारहवीं शताब्दी में कीर्तिपाल देव द्वारा निर्मित कीर्ति दुर्ग, कीर्ति सागर और कीर्ति नारायण के मंदिर अब जीर्ण-शीर्ण दशा में विद्यमान हैं।
बुन्देला राजाओं ने चन्देरी में जहाँ पग्मेसरा और हरकुण्ड आदि जलाशयों का निर्माण कराया वहीं जागेश्वरी देवी आदि के अनेक मन्दिर भी बनवाये थे। मुसलमान शासकों द्वारा निर्मित अनेक मकबरे और मस्जिदें भी उल्लेखनीय हैं। नगर से 200 फुट की ऊँचाई पर निर्मित दुर्ग को चन्द्रगिरि कहते थे जिसके आधार पर इसका नाम चन्देरी पड़ा। कुछ लोग मानते हैं कि चन्देलों की राजधानी होने से इसका नाम चन्देली, फिर चंदेरी पड़ा और कतिपय विद्वानों के मत में शिशुपाल के पितामह का नाम चिदि था इससे चेटि जनपद और राजधानी का नाम चंदेरी पड़ा।
प्राचीन कीर्ति दुर्ग पर नौखण्डा महल, हवामहल, गिलौआ ताल और माधव विलास दर्शनीय स्थल हैं। चंदेरी के उत्तर में 5 कि.मी. दूर कौशक महल और पूर्व में 7 कि.मी. दूर अन्य प्राचीन राज महल ऐतिहासिक अवशेषों के रूप में विद्यमान हैं।
जैन तीर्थ
जैन-क्षेत्र के रूप में चन्देरी की चौबीसी अत्यन्त प्रसिद्ध है। चौधरी फौजदार हिरदेशाह, मर्दनसिंह के कामदार संघाधिपति श्री सवाई सिंह जी ने वि.सं. 1893 में चौबीसी का निर्माण कराया था। इसमें चौबीस जैन तीर्थंकरों की शास्त्रोक्त वर्ण- अनुसार 12 श्याम, 2 श्वेत, 6 कंचन, 2 हरित और 2 लाल समान नाप की अत्यन्त सुन्दर प्रतिमायें, पृथक-पृथक 24 शिखरबन्द कक्षों में स्थापित हैं। इन दिनों जब जगह-जगह चौबीसियाँ निर्मित हो रहीं हैं, चन्देरी की प्राचीन चौबीसी अपनी शास्त्रीय और सुन्दर स्थापना के कारण अभी भी ‘मील के पत्थर’ की तरह चर्चित है।
यह नगर पुरातन काल से बारीक मलमल और फिर हाथकरघा की साड़ियों के लिये प्रसिद्ध रहा है।
चन्देरी के बस स्टैण्ड पर एक शासकीय संग्रहालय है, जिसमें छब्बीस सौ मूर्तिखण्ड संग्रहित किये गये हैं ये अधिकाशंतः बूढी चंदेरी और आस- पास से लाये गये हैं।