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July 31, 2024
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July 31, 2024एक सास, बहू थीं। एक बार कार्तिक का महिना पड़ा, सास बीमार थी अधिक चल फिर नहीं सकती थी। वह बहू को रोज दूध दही बेचने भेजती थी। नदी के किनारे जहाँ कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियाँ पूजा करती थीं वहीं पर बहू दूध दही बेचने जाती थी। नदी पर जाकर रोज दूध में पानी मिलाती फिर बेचती थी। घर में लौट कर जब सास पैसे माँगती तो दूध में जितना पानी मिलाती, उसका पैसा वह खुद रख लेती और बाकी पैसे सास को देती थी। ऐसा करते करते बहुत दिन बीत गये और उसके पास काफी पैसे इकट्ठे हो गये। अब कार्तिक पूजन का दिन आया उसने देखा कि सभी स्त्रियाँ लँहगे व जेवर से लदी सजी हैं व नाक में नथ पहने हैं।
उसे यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा और उसकी भी इच्छा नाक में नथ पहनने की हुई। वह दौड़ी-दौड़ी सुनार के पास गई और उसने जो पैसे इकट्ठे किये थे वे सब सुनार को दे दिये और नथ बनवा के ले आई और पहन ली। पहली बार नथ पहन कर वह काफी खुश थी। जब वह घाट पर पहुँची तो उसकी इच्छा पानी में अपना मुँह देखने की हुई उसने पानी में अपना मुँह देखा वह बहुत अच्छी लग रही थी। थोड़ी देर वह देखती रही फिर जैसे ही उसने हिला के देखना चाहा नथ पानी में गिर गई। अब वह बहुत उदास हो गई और जब वह घर की तरफ लौट रही थी। तो पूजन के बाद घर जा रही स्त्रियों ने उससे पूछा ग्वालिन बाई क्या बात है? तुम इतनी उदास क्यों हो वह कुछ न बोली लेकिन उनके बार-बार पूछने पर वह बोल पड़ी क्या बतायें, क्या हुआ- पानी को धन पानी में गओ, हमने जानो नंद बाई को गओ। बेइमानी से नथ पहनी थी इसलिए वह गिर गई यह कह कर वह घर लौट गई।