ग्रन्थ – छत्रप्रकाश, छत्र छाया, छत्र कीर्ति, छत्रसाल शतक, छत्र हजारा, राज विनोद, विष्णु विलास आदि।
आप साहित्य क्षेत्र में ‘लाल-कवि’ के नाम से प्रसिद्ध है। पं. गोरेलाल का जन्म बुंदेलखंड में पं. नागनाथ के वंश में हुआ था। आपने अपने समय के साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की थी। आप महाराजा छत्रसाल के दरबारी कवि थे। आपका ग्रन्थ ‘छत्र-प्रकाश’ बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसमें आप ने छत्रसाल महाराज की वीरता – धीरता का वर्णन कर बुंदेलखंड की गरिमा को बढ़ाया है। आपके काव्य में वीर रस, नीति, संदेशात्मक दृष्टि देखने को मिलते है।
भाषा रस – आपकी भाषा ओजपूर्ण है। वीर रस के छन्दों का आपने सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। छत्रसाल के शौर्य के प्रकाश को चहुर्दिक फैलाने का वृहद कार्य किया। इनकी कविता के उदाहरण प्रस्तुत है। –
नीतिकाव्य
(१) “ज्ञानगुननता पौरख हारै।
सो जीतै जो पहिले मारै।
रीती भरै भरी ढरकावै।
जो मन करै तो फैरिभरावै।”
छत्रसाल के समय की परिस्थितियों का वर्णन करते हुये उन्होंने लिखा है-
(२) “ज्यों विषधर मंत्र न बंध्यों,
त्यों अंगद अनखाय।
तेत उसासे क्रोधबस,
चलत न बल व्यौसाय।”
लाल कवि के काव्य की झलक दर्शनीय है।
(३) “लखत पुरुष लच्छन सब जानै।
पच्छी बोलत सगुन बखानै।
सतकवि कवित सुनत रस पागै।
बिलसति मनि अरधन में आगै।
रुचि सो लखत तुरग जेनी कै।
बिहसिं लेत गुजरा सब हीकै
कहयो धन्य छिति छत्र छतारे।
तुम कुलचन्द हिन्दुगन तारे।”
वीर रस काव्य –
(४) “गने कौन चंपति की जीते,
गनपति गर्ने तऊ जुग बीते।
शाहजहॉं उमड़यो घन घोरा,
चंपति झंझा पौन झकोरा।
साहिकटक झकझोर भुलायौ
गिल्यौ बुंदेलखंड उगिंलायौ।”
छत्रप्रकाश में छत्रसाल की वीरता का वर्णन देखिए –
“चौंकि-चौकि सब दिसि उठे सूबर खान खुमान।
अबधौ धावै कौन पै छत्रसाल बलवान ।
धनि चंपति फिरि भूमि बहोरी,
भुजन पातसाही झकझोरी।
प्रलै प्रमोद उमंग में ज्योगाकुल जदुराय।
त्यों बूड़त बुन्देल कुल राख्यो चंपत राय।”