गोरेलाल ‘लाल’
July 17, 2024हरिसेवक मिश्र
July 17, 2024
ग्रन्थ – भाषा हितोपदेश, मुहूर्तदर्पण, राजभूषण, नायिका भेद आदि
कोविद मिश्र ‘चन्द्रमणि’ ओरछा नरेश महाराजा उद्योत सिंह के दरबारी कवि थे। आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। जिसमें मुहूर्त दर्पण प्रमुख है। इसमें आपने ज्योतिष के आधार पर देवालय व देव स्थापना, गृहों, जलाशयों के निर्माण के मुहूर्त के विधि विधान का बखान किया है। राज्याभिषेक का दिन निर्धारण जैसे महत्वपूर्ण अवसरों से लेकर नये वस्त्र धारण, गहने, हाथी-घोड़ा क्रय करने जैसे कार्यो को ज्योतिष (ग्रहों) के अनुसार सम्पादित करने का ज्ञान प्रस्तुत किया है जो राजा से लेकर रंक सभी के लिये उपयोगी माना गया। यही कारण है कि मुहर्त दर्पण को अधिक महत्व मिला । इस सब का वर्णन इस छन्द में देखने को मिलता है –
“मूरत के जन्म लग्न जन्म रासि सोहि जनु
स्वामी औतन उदय में सदा लसै।
तीजै, छटै, दसम, एकादस, भवन रास,
तिन ही तै तन माह अहित वहाँ नसै।।
अरि जन्म लग्नरास, स्वामी औतिनके जौ,
तिन तै हूं उपचय रासि जौ कहू बसै।
चौथे सातवें शुभ वर्ग सीर षोदय माह,
करै नृपगौन सुख सम्पत्ति लहै जसै ।”
इस सब मूहतौं और विश्वासों को आज भी बुन्देलखण्ड के निवासियों में देखा जा सकता है। वैसे यह साहित्य तो बहुत प्राचीन है और इसकी मान्यता भी पुरानी है। कविन्द्र केशव के पिता पं. काशीनाथ मिश्र ने ‘शीघ्रबोध’ की रचना कर संस्कार, रीति, लग्न मुहूर्त की जो परम्परा बनाई थी कोविद मिश्र ने उसी को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है।