एक माँ, बेटे थे। बेटे का नाम मंगलिया था। उसका नियम था कि वह मंगलवार को गोबर से लीपती नहीं थी। एक मंगलवार को मंगल देवता साधू का भेष बना कर आये और दरवाजे पर आवाज लगाई। बुढ़िया ने अंदर से ही कहा हमारा बेटा कहीं गाँव में खेलने गया है और हम कुछ गृहस्थी का काम निपटा रहे हैं। उसने बाहर आकर पूछा महराज क्या बात है। वे बोले हमें बहुत भूख लगी है भोजन बनाना है इसके लिए तुम थोड़ी सी जमीन लीप कर चौका लगा दो हम बना लेगें। बुढ़िया ने कहा आज तो हमारा मंगल का व्रत है इसलिए हम गोबर से लीप तो नहीं सकते, यदि कहो तो पानी छिड़क कर चौका लगा दें और आप रसोई बना लें।
साधू ने कहा हम तो गोबर से लिपे में ही भोजन बनाते हैं। बुढ़िया बोली महाराज लीपने के सिवाय और जिस तरह की सेवा हो हम तैयार हैं। साधू ने कहा खूब सोच समझ कर कहना हम जो कहें तुम्हें मानना पड़ेगा। वह मान गई तब साधू ने कहा अपने लड़के को औंधा लिटा कर अंगीठी जला दे तब में भोजन बनाऊँगा। बुढ़िया चुप रह गई। साधू ने कहा अब सोच विचार क्या करना जा लड़के को बुला ला। बुढ़िया मंगलिया-मंगलिया कह कर पुकारने लगी। थोड़ी देर में लड़का माँ…माँ… कहता हुआ आ गया। बुढ़िया ने लड़के से कहा तुम्हें महाराज बुला रहे है। बाहर आकर लड़के ने कहा क्या है। महराज साधू ने कहा जा अपनी माँ को बुला ला माँ आई तो साधू ने कहा कि अपने लड़के को औधा लिटाकर अंगीठी लगा दे मैं भोजन बनाऊँगा माँ ने मंगल देव भगवान का स्मरण करके वैसा ही किया।
तब साधू ने उस अंगीठी में आग लगाई और भोजन बनाया। जब रसोई बन चुकी ताे साधू ने आवाज लगाई बुढ़िया को और कहा कि अपने लड़के को बुला कर कहो कि प्रसाद ले जाये। बुढ़िया से अब नहीं रहा गया बह बोली महाराज थोड़ी कृपा करके अब आप हमें उसकी याद न दिलायें, जहाँ आप को जाना हैं चले जाएं, साधु के बहुत समझाने पर बुढ़िया ने ज्योहीं उसे आवाज लगाई लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधू ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा माई तुम्हारा व्रत करना सफल हो गया। तुम्हारे मन में बहुत दया है और अपने इष्ट के प्रति विश्वास है इसलिए हम तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हैं, तुम अपनी परीक्षा में सफल हो गई। भगवान तुम्हारा मंगल करें।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।