
सोमवार की कथा
July 31, 2024
बुधवार की कथा
August 1, 2024एक माँ, बेटे थे। बेटे का नाम मंगलिया था। उसका नियम था कि वह मंगलवार को गोबर से लीपती नहीं थी। एक मंगलवार को मंगल देवता साधू का भेष बना कर आये और दरवाजे पर आवाज लगाई। बुढ़िया ने अंदर से ही कहा हमारा बेटा कहीं गाँव में खेलने गया है और हम कुछ गृहस्थी का काम निपटा रहे हैं। उसने बाहर आकर पूछा महराज क्या बात है। वे बोले हमें बहुत भूख लगी है भोजन बनाना है इसके लिए तुम थोड़ी सी जमीन लीप कर चौका लगा दो हम बना लेगें। बुढ़िया ने कहा आज तो हमारा मंगल का व्रत है इसलिए हम गोबर से लीप तो नहीं सकते, यदि कहो तो पानी छिड़क कर चौका लगा दें और आप रसोई बना लें।
साधू ने कहा हम तो गोबर से लिपे में ही भोजन बनाते हैं। बुढ़िया बोली महाराज लीपने के सिवाय और जिस तरह की सेवा हो हम तैयार हैं। साधू ने कहा खूब सोच समझ कर कहना हम जो कहें तुम्हें मानना पड़ेगा। वह मान गई तब साधू ने कहा अपने लड़के को औंधा लिटा कर अंगीठी जला दे तब में भोजन बनाऊँगा। बुढ़िया चुप रह गई। साधू ने कहा अब सोच विचार क्या करना जा लड़के को बुला ला। बुढ़िया मंगलिया-मंगलिया कह कर पुकारने लगी। थोड़ी देर में लड़का माँ…माँ… कहता हुआ आ गया। बुढ़िया ने लड़के से कहा तुम्हें महाराज बुला रहे है। बाहर आकर लड़के ने कहा क्या है। महराज साधू ने कहा जा अपनी माँ को बुला ला माँ आई तो साधू ने कहा कि अपने लड़के को औधा लिटाकर अंगीठी लगा दे मैं भोजन बनाऊँगा माँ ने मंगल देव भगवान का स्मरण करके वैसा ही किया।
तब साधू ने उस अंगीठी में आग लगाई और भोजन बनाया। जब रसोई बन चुकी ताे साधू ने आवाज लगाई बुढ़िया को और कहा कि अपने लड़के को बुला कर कहो कि प्रसाद ले जाये। बुढ़िया से अब नहीं रहा गया बह बोली महाराज थोड़ी कृपा करके अब आप हमें उसकी याद न दिलायें, जहाँ आप को जाना हैं चले जाएं, साधु के बहुत समझाने पर बुढ़िया ने ज्योहीं उसे आवाज लगाई लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधू ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा माई तुम्हारा व्रत करना सफल हो गया। तुम्हारे मन में बहुत दया है और अपने इष्ट के प्रति विश्वास है इसलिए हम तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हैं, तुम अपनी परीक्षा में सफल हो गई। भगवान तुम्हारा मंगल करें।
।। बोलो मंगल देव की जय।।