नृ-वराह –
पृथ्वी-देवी ( भू-देवी ) का उद्धार करते हुए नृ-वराह की चतुर्भुजी रोचक प्रतिमा है। ऊपर के दोनों हाथों में गदा तथा चक्र है। नीचे का दाहिना हाथ कटिभाव पर तथा बॉंया हाथ बायें पैर के घुटने पर अवस्थित है।इसी प्रकार देवरी नगर के अन्य विविध स्थलों में सज्जा-पट्टिका-स्तंभ, देव-देवी प्रतिमाऍं, चतुर्भुजी-मातृका, वाराही, दिक्पाल, महिषासुर मर्दिनी आदि की अन्य कई प्रतिमाऍं संग्रहीत है।देवरी नगर तथा उसके समीपवर्ती स्थलों से प्राप्त कतिपय पाषाण-प्रतिमाऍं सागर विश्वविद्यालय के हरिसिंह गौर पुरातत्व संग्राहालय में प्रदर्शित है। निम्निलिखित प्रतिमाऍं कला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं-
महिषमर्दिनी -
महिषमर्दिनी :- महिषमर्दिनी देवी यह प्रतिमा, महिष (असुर) का बध करते हुये भाव युक्त है। देवी की चार भुजाएं हैं। सिरोभाग पर केशपाश तथा रत्नों से जटित (गुंफित) पटि्टका दृष्टव्य है। कानों में चक्राकार कुंडल, गले में एकावली, जिसका मध्य भाग दोनों उरोजों के बीच से होता हुआ नीचे लटक रहा हैं। दोनों भुजाओं के मध्य से हाता हुआ उत्तरीय (दुकूल) भी नीचे लटकता हुआ प्रदर्शित है। हाथों में कंकण तथा पैरों में ढीले नूपुर सुशोभित हैं।
देवी ऊपर वाले दोनों हाथों में क्रमश: खड्ग और ढाल लिये है। नीचे दाहिने हाथ में त्रिशूल है, जिसका अग्रभाग महिष (असुर) की गर्दन के समीप प्रहार करते हुये प्रदर्शित हैा त्रिशूल का अगला कुछ भाग महिष के शरीर के अंदर प्रविष्ट हैं। नीचे बायें हाथ से असुर के मुख को दबाये हैं, जो गर्दन से ऊपर की ओर उठा हुआ है। देवी का दाहिना पैर महिष के पृष्ठ भाग पर अवस्थित है। बायॉं पैर लम्बवत् वीर भाव में दृष्टव्य है।
महिष ( असुर ) बैठा हुआ प्रदर्शित है, जिसके पैर अन्दर की ओर मुड़े हैं तथा गर्दन से मुख तक का भाग ऊपर की ओर उठा हुआ है। महिष के सींग तथा कानों का लम्बवत् अंकन सुरूचिपूर्ण एवं विशेष कलात्मक है। महिष के पृष्ठ भाग के ऊपर देवी का वाहन सिंह द्रष्टव्य है, जो महिष की पीठ पर मुख से आक्रमण कर रहा है। विवेच्य प्रतिमा का सम्पूर्ण अंकन कलात्मक है तथा पाषाण-कला के माध्यम से महिषासुर बध कथानक की सुन्दर ( प्रस्तुति ) है। इस प्रतिमा का निर्माण काल ई: १०वीं शती प्रतीत होा है।
चतुर्भुजी विष्णु -
चतुर्भुजी विष्णु :- दो कलात्मक स्तंभों के मध्य चतुर्भुजी विष्णु की स्थानक प्रतिमा है। सौम्य मुखकृति भावाकर्षक है। सिरोभाग के ऊपर किरीट मुकुट, कानों में चक्रकार कुण्डल, गले में दो लडि़यों की माला, कटिभाग से नीचे तक लटकता हुआ वैजंतीमाला सुशोभित है। हाथों में कंकण, केयूर तथा पैरों में नूपुर आदि अलंकरण शोभायमान हैं।
ऊपरवाले दोनों हाथों में क्रमश: दाई ओर के हाथ में पत्रावली तथा पंखुडियों से युक्त सनाल कमल तथा बायें उपरले हाथ में शंख लिये हैं। नीचे के दोनों हाथ खंडित हैं, तथापि क्रमश: चक्र पुरूष तथा अस्पष्ट आकृति की मानवाकार बैठे हुये दिखाया गया है। कटिबंध, विविध आभूषण तथा अधोवस्त्र का सुरूचिपूर्ण प्रदर्शन है। ऊपर की पटि्टका में गज-शार्दूल आदि द्रष्टव्य है। निर्माण काल, ई; ११वीं शती लगभग।
नृ-वराह -
नृ-वराह :- चतुर्भुज बराह भगवान, जिनका मुख वराह आकृति तथा शरीर का अन्य भाग मानवाकृति है। वे अपने दांत से अग्र भाग से पृथ्वी देवी को ऊपर उठाये तथा आलीढ्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं । ऊपरवाले दोनों हाथों में क्रमश: गदा तथा चक्र है। निचला दाँया हाथ कटिभाग पर अवस्थित है। बॉंया निचला हाथ ( खंडित ) बॉंये पैर के घुटने के ऊपर रखा है, जिसमें आयुध अस्पष्ट है।
सिरीभाग के ऊपर मुकुट, कानों में कुंडल, गले में एकावली, ग्रैवेयक, मुक्तमाल, वक्षबंध, वनमाल, हाथों में कंकण, केयूर तथा कटिभाग में लिडियों वाली अलंकृत मेखला, अधीभाग में वस्त्र, पैरों में कड़े तथा नुपूर आदि विविध वस्त्राभूषणों से सुसज्जित है।
वाम पाद सनालकमल के ऊपर रखा है। नीचे करबद्ध नाग-नागी बैठे हुये आराध्य भाव में परिलक्षित हैं। प्रतिमा का दक्षिण पाद खंडित है। विवेच्य प्रतिमा का सम्पूर्ण कला-वैशिष्ट्य प्रभावोंत्पादक है। समय, ई; ११वीं शती लगभग।
चतुर्भुज शिव-युग्म -
चतुर्भुज शिव-युग्म :- मंदिर के पार्श्व भाग में प्रयुक्त पाषाण खंड पर चतुर्भुज शिव-युग्म दो अलग-अलग दिशाओं में स्थानक मुद्रा में अंकित हैं। प्रतिमा को मुखाकृति में सौम्य भाव द्रष्टव्य है। सिरोभाग के ऊपर जटामुकुट, कानों में सर्पाकार कुण्डल, गले में त्रिवली, कंठहार, यज्ञोपवीत, हाथों के आभरण तथा वनमाल आदि धारण किये हैं। उपरला दॉंया हाथ खंडित है। बॉंये हाथ में खट्वॉंग के साथ डमरू तथा माला है। नीचे का दाहिना हाथ वरदमुद्रा में तथा बाँये हाथ में मंगल घट लिये हैं। कटिभाग में मेखला, अधोवस्त्र आदि परिलक्षित हैं। नीचे दॉंये पार्श्व में करबद्ध आराधक तथा बाई ओरे नंदी आसनस्थ है। दूसरे पार्श्व की शिव-प्रतिमा भी चतुर्भुजी है तथा उपरोक्त प्रकार का समान अंकन है। समय, लगभग ई; ११वीं शती।
रूपसुन्दरी तथा शिवलिंग अभिषेक फलक -
रूपसुन्दरी तथा शिवलिंग अभिषेक फलक :- पाषाण खंड के दॉंये पार्श्व में आकर्षण भाव-मंगिमाओं सहित विविध अलंकरणों से सुसज्जित उन्मत सुन्दरी दर्पण में अपनी छवि का अवलोकन कर रही है। सामने की ओर एक परिचारिका अपने दायें हाथ को ऊपर उठाये है, जिसमें दर्पण है।