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जन्म – सं. १६९२ वि. ओरछा
कविताकाल – सं. १७२० वि.
ग्रन्थ – हजारा
जीवन परिचय प्रवीण राय ओरछा नरेश के दरबारी कवि थे। आपकी कविता में नीतिगत और शांत रस का प्राधान्य है।
“कूर भये कुंवर, मजूर भये मालदार,
सूर भये गुपति, असूर भये जबर।
दाता भये कृपन, अदाता कहें दाता हम,
धनी भये कृपन, अदाता कहें दाता हम,
धनी भये निधन, निधन भये गबरें।
साँचेन की बात न पत्यात कोऊ जग माँझ,
राज दरबारन बुलैयो लोग लबरे।
भनत प्रवीन अब छीन भई हिम्मत सो,
कलियुग अदलि बदल डारे सबरे।”
निष्कर्ष – उपासना काल में भक्ति-शक्ति की अविरल काव्यधारा प्रवाहमान रही। यह धारा लोक से राज आश्रय और आश्रमों में एक समान बहती दिखाई देती है। इसमें कोई अन्तर नहीं है। रस-रूप-अलंकार-भाव-उपदेश सभी एक समान लोक और आलोक में दृष्टव्य है। अतः लोकं काव्य और अन्य काव्य में अन्तर रखना अनुचित है। वास्तविकता यही है कि समान दृष्टि से यदि देखा जाये तो साहित्य की त्रिवेणी में अलग-अलग धाराएं बहती हुई भी एक ही आधार पर चलती रही। वर्णन-भाव-विचार भिन्न हो सकते है किन्तु इतिहास की पृष्ठभूमि सभी की कमोवेश समान ही है। भक्ति, वीरता, श्रृंगारिक आदि साहित्य की रचना, समय, परिस्थिति और समाज की दृष्टि से निर्मित होती रही। यही साहित्य के इतिहास की पहिचान रही। यह साहित्य दीनता, हीन भावना, शक्ति-सम्पन्नता तथा ग्राम नगर और राज्यों की सीमाओं को लांघकर समान रूप से निर्मित हुआ।
उपासना और लीलामृत के बुन्देलखण्ड के प्रतिष्ठित केन्द्र। जो आज भी इस क्षेत्र में भक्ति और प्रज्ञा केन्द्र बने हुये है। इनकी महत्ता का बखान भाषा साहित्य की अमरनिधि है।
१. चित्रकूट महिमा –
“ततो गिरिवन्चरे श्रेष्ठे, चित्रकूटे विषाम्पते।
मन्दाकिनी समासाद्य, सर्वपाप प्रणाशिनीभू।
तमाभिषेक कुर्वाणः, पितृ देवार्चनेरतः।
अश्वमेघ भवाप्नोति, गति च परमां श्रुणोत।”
(महाभारत तीर्थ यात्रा पर्व)
“चित्रकूट गिरौ रम्ये नाना शास्त्र विशारदः
तत्र वसन्नाहा प्रज्ञाः उपाध्याय पतंजलिः”
(भविष्य संहिता विक्रमाख्य खंड)
२. ओरछा (तुंगारण्य) महिमा –
“ओरछा के आसपास तीस कोस केशवदास
तुंगारण्य नाम वन, बैरी को अजीत है।
बिन्ध कैसो बन्धु, बखारन बलित वाद्य,
वानर वराह बहु, भिल्लन अभीत है।
जम की जमाति कैधों जामवन्त कैसौ दल
महिष सुखद स्वच्छ रिच्छन कौ मीत है।
अचल अनलवन्त, सिन्धु सुरसरियुत
अचल अनलवन्त, सिन्धु सुरसरियुत,
शम्भू कैसो जटाजूट परम पुनीत है।”
ओरछा में हरिराम व्यास आदि ने उपासना एवं लीलामृत की अलख जगाई। वेत्रवती तट बुन्देलखण्ड की संस्कृति का उद्भव और विकास हुआ। आगे यही साहित्य संस्कृति का केन्द्र झाँसी को प्राप्त हुआ।
डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा
पिता – डा.आर.सी अवस्थी
पति – स्व. अशोक मिश्रा
वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट,
कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने,
माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश
मो.न. – 9827368244
ई मेल –
usha.mishra.1953@gmail.com
व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी.
शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित।
भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।