हरिसेवक मिश्र
July 17, 2024ठाकुरदास
July 17, 2024राजधर मिश्र
जन्म – सं. लगभग १७३० वि.
कविता काल – सं. लगभग १७६४ वि.
जीवन परिचय
ग्रन्थ – राजधर सतसई प्रमुख है। इसका प्रारम्भ सं. १७६४ अगहन सुदी ५ सोमवार और ग्रन्थ की पुष्पिका में समाप्ति सं. १७६६ दर्शाया है –
(१) संवत् सत्रह सौ बरस चारु चौसठादीस।
मारग सुदितिथि पंचमी वारु वरन रजनीस।
(२) संवत् १७६६ माह वदि ९ मुकामु
औड़दौ पोथी श्री राउ राजद्धर जू की।
कविवर राजधर का जन्म प्रसिद्ध ओरछा के मिश्रवंश में हुआ था। जिसमें कवीन्द्र केशवदास थे। इसका प्रमाण सतसई के इस दोहे में मिलता है –
“मिश्र वंश कवि भूप सौ राजद्धर करि नेहु।
अति प्रसन्न मन कै कहयौ सतसैया कर देहु ।।”
इसी वंश परम्परा की शोध में डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने अपने शोध प्रबंध “हिन्दी काव्य में श्रृंगार परम्परा और महाकवि विहारी” में केशवदास को बिहारी का पिता माना है। चन्द्रकांत हयारण ने राजधर को सतसई के आधार पर महाकवि केशव का वंशधर निरूपित किया है। जो माहौर अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ५७ में दर्शाया है। यह एक विलक्षण संयोग है कि आचार्य केशवदास के कुल में दो महाकवि हुये। जिन्होंने ‘सतसई’ ग्रन्थों की रचना की है। ये है बिहारीलाल और राजघर। बिहारी ने अपने एक दोहा में इस ओर संकेत दिया है
“प्रगट भये द्वित राज कुल सुबंस बसे ब्रज आई।
मेरे हरौ कलेश सब केसब केसब राइ।।”
किन्तु पूर्ववर्ती साहित्य में ‘राइ’ के स्थान पर ‘राय’ शब्द की स्थापना से इस संकेत को सही नहीं माना, किन्तु अस्वीकार भी नहीं किया। किन्तु शोधार्थियों ने इसे सिद्ध कर – जो आधार दिये है वे पर्याप्त लगते है।
(१) केशवदास का जीवन काल सं. १६१८वि. से सं. १६८० है और बिहारीलाल (दास) का जन्म सं. १६५२वि. व मृत्युकाल सं. १७२० वि. है। यह पिता पुत्र सम्बन्ध के अनुकूल है।
(२) केशव दास मिश्र के वर्तमान वंशज मथुरा प्रसाद मिश्र के पास प्राप्त वंश वृक्ष में केशव के पांच पुत्र थे जिनमें बिहारीदास ज्येष्ठ थे। इसी वंशावतार में राजधर मिश्र माने गये है