रानी गणेश कुंवरि
July 16, 2024गुलाब कवि
July 16, 2024राय प्रवीण
जन्म – सं. १६४२ वि.
निधन – सं. १७०१ वि.
जीवन परिचय
ओरछा नरेश महाराज इन्द्रजीत सिंह के समय तथा आचार्य केशवदास की छत्रछाया में राय प्रवीन का जन्म हुआ। राय प्रवीन महाराज इन्द्रजीत की प्रिया तथा केशव की कवि प्रिया थी। वह काव्य और नृत्यकला में प्रवीण थी। काव्य में छन्द शास्त्र और नायिका भेद में पारंगत अनुपम सुन्दरी राय प्रवीन के विषय में स्वयं केशव ने कवि प्रिया में लिखा है –
“राय प्रवीन की शारदा सुचिरुचि राजत अंग।
बीना पुस्तक धारती, राजहंस युत संग
वृषभ वाहिनी अंगयुत, वासुकि लसत प्रवीन।
सिव संग सोहे सर्वदा, सिवा की राय प्रवीन।”
अपनी शिष्या प्रवीन राय को छन्दशास्त्र और नायिका भेद की शिक्षा ‘केशव’ ने ही प्रदान की थी। राय प्रवीण की परीक्षा मुग्धा नायिका भेद में केशव और प्रवीन के बीच हुये प्रश्नोत्तर में देखने को मिलता है।
केशवदास – कनक छरी सी कामिनी काये कटिसौ छीन ?
प्रवीन राय – कटि कौ कंचन काढ़िकै, कुच नितंबभरदीन
केशवदास – जो कुच कंचन के बने, मुख कारो किहि कीन ?
प्रवीन राय – जोबन ज्वर के जोर में मदन मुहंर कर दीन
महाराज इन्द्रजीत सिंह ने प्रभावित होकर उसे अपनी प्रेमिका के रूप में स्वीकार किया। राय प्रवीन की सुन्दरता और काव्य विलक्षणता सुन सम्म्राट अकबर ने महाराज इन्द्रजीत सिंह को उसे अकबर के दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा भेजी। यह सुनकर राय प्रवीण अपनी स्त्रीत्व की रक्षा हेतु महाराज से विनयावत् कहती है –
“आई हो बूझत मंत्र तुम्हें,
जिन श्वांसन सौ सिगरी मति खोई।
देह तजौ कि तजौ कुल कानि,
हिये न लजौ लजिहै सब कोई।
स्वारथ औ परमारथ कौ पथ,
चित्त विचार कहो तुम सोई।
जामें रहे प्रभु की प्रभुता,
अरु मोर पतिव्रत भंग न होई।”
अंत में केशवदास की राजनीतिक सूझ-बूझ से प्रवीण राय केशव के साथ अकबर के दरबार में उपस्थित हुई। केशवदास की आज्ञा से राय प्रवीण ने सम्राट को आदाब किया। इसके बाद ‘प्रवीण’ को काव्य प्रतिभा की, परीक्षा स्वरूप समस्या पूर्ति में ‘अकब्बर तेरे’ रखी गई। उसका दर्शन कीजिये।
“अंग अनंगतही कुच शंभु,
सुकेहरि लंक गयन्दहि घेरे।
है कच राहु तही उदै इन्दु,
सुकीर कि विम्बन चौच न फेरे।
भौह कमान तही मृग लोचन
खंजन वयो न चुगें तिल नेरे।
कोउ न काहु सो बैर करें,
सुडरे डर शाह अकब्बर तेरे।”
अकबर इस काव्य-प्रतिमा से बहुत खुश हुआ। अकबर ने स्वयं फिर राय प्रवीण से कविता में प्रश्न किये। जिसका उत्तर राय प्रवीण ने कविता में अपने आचार्य कविवर केशवदास की उपस्थिति में दिये।
सम्म्राट – युवन चलत तिय देह की चटक चलत केहि हेत?
प्रवीन राय – मन्मथ वारि मसाल को सेति सिहारे लेत।
सम्राट – ऊँचे है शुर बस किये समहै नरबस कीन्ह?
प्रवीण राय- अब पातालबस करनिकौ ढरकि पयानौ कीन्ह।
अकबर इस प्रकार की विलक्षणता से प्रभावित हो प्रवीन राय को पुररस्कृत कर केशव के साथ विदा किया इस प्रकार केशवदास और प्रवीन राय ने बुन्देलखण्ड की संस्कृति, आन-बान-शान की रक्षा की। राय प्रवीन की काव्य प्रतिभा सदा अमर है-
” स्वर्ण ग्राहक तीन है, कवि व्याभिचारी, चोर।
पग न धरत, संसय करत, तनकन चाहत शोर।
पेड़ बड़ौ छाया घनी, जगत करै विश्राम।
ऐसे तरुवर के तरै, मोय सतावे घाम।
कहादोष करतार कौ, कर्म कुटिल गहै बांह।
कर्महीन किलपत फिरहि, कल्पवृक्ष की छांह।”
इस प्रकार बुन्देलखण्ड में बुन्देली काव्य की धारा निर्वाध रूप से बहती रही। जिसमे कवि और काव्य दोनों की प्रतिष्ठा के प्रकाश से सारा क्षेत्र दैदीप्तमान हुआ। अकबर और रायप्रवीण के इस प्रकरण से यह स्पष्ट है कि किस प्रकार अकबर बुन्देलखण्ड के राजाओं को त्रसित कर इस क्षेत्र को हथिया लेने की इच्छा रखता था। किन्तु केशव की कविताई ही यहॉं काम आई। साहित्य की शक्ति का यह उत्कृष्ट प्रमाण है।