दतिया की साहित्यिक परम्पराः दो
June 13, 2024दमोह जिला की साहित्यिक परम्परा
June 13, 2024पद्मश्री प्रो. लक्ष्मीनारायण दुबे डी. लिट्.
सागर का नामकरण सरोवर के आधार पर पड़ा जो कि एक विशाल तालाब के आसपास बसा और जिसका क्षेत्रफल लगभग एक वर्गमील है। सागर के नाम का सम्बन्ध उड़ीसा के सगर जाति के राजाओं के साथ भी जोड़ा जाता है। वास्तव में सागर को स्थापित हुए 331 वर्ष हो चुके हैं। उत्तर मध्यकाल में राजपूत निहालसिंह के वंश के राजा ऊदनशाह ने सवंत 1717 में सागर शहर बसाया था। परकोटा, जो कि आजकल सागर नगर के मध्य में मोहल्ला हैं, यह पहले एक माम था जिसे बसाने का श्रेय राजा उदानशाह को है। सागर के पास में ही बसा गढ़पहरा सागर से भी अधिक प्राचीन है। यहीं हिन्दी के पणिनि पं. कामता प्रसाद गुरु का जन्म हुआ था। राजपूत निहाल सिंह का पौत्र राजा पृथ्वी पति गढ़पहरा में राज्य करता था।
वह मुगलों की ओर से जागीरदार के रूप में रहता था। बुन्देलखण्ड केसरी छत्रसाल ने यह क्षेत्र पृथ्वीपति से छीन लिया और गढ़पहरा ऊजड़ हो जाने से यहाँ के निवासी सागर में आकर रहने लगे। गढ़पहरा वि. सं. 1784 में जयपुर के राजा जयसिंह ने बुन्देलों से ले लिया और फिर से पृथ्वीपति को उसका राज्य दे दिया। थोड़ी समयावधि के अनंतर कुरवाई के नबाब दिलीपखां ने पृथ्वीपति को निकाल कर उस पर अपना अधिकार कर लिया। उससे मराठों ने छीन लिया और मराठों ने राजा बिलहरा को यहाँ का जागीरदार बनाया।
बुन्देली संस्कृति में सागर को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। इसे बुन्देलखण्ड की सीमा क्षेत्र का प्रमुख नगर माना गया है-
भैंस बंधी है औड़छा, पड़ा हुशंगाबाद। लगवैया है सागरे, चपिया रेवा पार।।
प्राचीनकाल में सागर का क्षेत्र दशार्ण देश के अंतर्गत था। चित्रकूट से किष्किंधा जाते समय भगवान राम सागर जिले में से होते हुए गये थे। गुप्त वंश के महान प्रतापी राजा सम्राट चन्द्रगुप्त जब दिग्विजय को निकले तो वे सागर जिले में से होते हुए दक्षिण को प्रस्थित हुए थे। सागर जिला कलचुरियों के राज्य में नहीं रहा। यह पहले मालवा राज्य का हिस्सा समझा जाता था। धार के परमार राजाओं के अधिकार में यह विक्रम संवत की चौदहवीं शताब्दी तक रहा। सम्वत् 919 के आस पास सागर जिला कन्नौज के राज्य के अन्तर्गत था। बारहवीं शताब्दी (विक्रम) में राजा मदन वर्मा ने सागर जिले में मदनपुर नगर बसाया था। चंदेलों के समय यह एक प्रधान नगर था। कीर्ति वर्मा के समय उसके राज्य का विस्तार सागर तक था। इसके पश्चात् सागर जिले को पृथ्वीराज ने ले लिया था। मुहम्मद तुगलक का एक सरदार विद्रोही होकर सागर आ गया था। जब इसकी फौज ने सागर पर आक्रमण किया तब सागर का राजा देवगिरि भाग गया था।
फिरोज तुगलक बादशाह के समय में वि. सं. 1413 में सागर जिले के दुलचीपुर ग्राम में एक सती हो गयी थी जिसके स्मारक शिलालेख पर सुल्तान फीरोजशाह का उल्लेख मिलता है। गौड़ राजाओं के राज्य के समय अमानदास, जिसे गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने संग्राम शाह के नाम से जग-जाहिर किया, ने सं. 1572 से 1585 के मध्य, सागर को अपने राज्य में सम्मिलित किया। इसने 52 गढ़ जीते थे जिनमें सागर जिले के गढ़ाकोटा, शाहगढ़ तथा गढ़पहरा प्रमुख हैं। इसकी ही पुत्रवधू रानी दुर्गावती थी। सम्राट अकबर के समय में सागर मुगलों के आधिपत्य में न होकर, गोंडों के अधिकार में था। बुन्देलखण्ड केसरी छत्रसाल ने सागर पर शासन् किया था। बादशाह औरंगजेब की सेना को छत्रसाल ने सागर जिले के गढ़ाकोटा के युद्ध में परास्त किया था और उसका सेनापति रणदूल्ह खां सागर की ओर भाग गया था। लाल कवि ने अपने “छत्र प्रकाश” में लिखा है-
करयो गढ़ाकोटा पर पैला। जहाँ सुने छत्रसाल बुन्देला ।
उमड़यो रनदूल्ह सजे, तीस हजार तुरंग। बजे नगारे, जूझ के, गाजे मत्त पतंग ।।
सम्राट औरंगजेब ने छत्रसाल को हटाने के लिए शूरवीर तथा कूटनीतिज्ञ सेनापति मिर्जा सदरुद्दीन को धामौनी का सरदार नियुक्त किया था। धामौनी उस समय मुगलों के सूबों की राजधानी थी। सागर, दमोह, एवं भोपाल का शासन् धामौनी से ही होता था। छत्रसाल के सन् 1781 में देहांत के पश्चात उनका राज्य हृदयशाह तथा जगतराज को दो भागों तथा तीसरा भाग पेशवा बाजीराव को मिला था। इसी के पश्चात सागर मराठों के कब्जे में आ गया था। वि. सं. 1792 में शूरवीर तथा पराक्रमी सरदार गोविन्द बल्लाल खैर को सागर का शासक नियुक्त किया गया था।
गोविन्दराव पंत ने सागर और उसके आसपास का भाग अपने लड़के बालाजी गोविन्द के अधीन कर दिया। सागर में बालाजी के सहयोग के निमित, रामराव गोविन्द, केशव शंकर कान्हेरे, भीकाजीराम करकरे, रामचन्द्र गोविन्द चांदोरकर इत्यादि पदाधिकारी थे। मोरो पंत अथवा मोरो विश्वनाथ डिगणकर सागर की सेना के अधिपति थे। नाना साहब पेशवा गोविन्दराव पंत को बहुत चाहते तथा मानते थे।
सागर में गोविन्दराव पंत की ओर से उनके दामाद विसाजी गोविन्द चांदोरकर राजकार्य देखने लगे। सागर का सूबेदार घराना इन्हीं से ही संबंधित है। पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा-शक्ति का समापन चिह्न बना। सागर के मराठों को गढ़कोटा वाले मर्दनसिंह तंग कर रहे थे। सिंधिया का भी सागर पर प्रभाव रहा। पिण्डारियों ने भी सागर में खूब धूम मचाई परंतु विनायकराव चांदोरकर ने उन्हें दबा दिया। सं. 1874 में पेशवाई के अंत के पश्चात अंग्रेजों के अधिकार की शुरुआत हुई। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर आक्रमण करने वाले अंग्रेज सरदार जनरल ह्यूरोज ने सागर को अपना मुख्यालय बनाया था। अंग्रेजों के समय में सागर को सम्मान का स्तर भी मिला।
सागर की महान् विभूतियों में महाकवि पद्माकर तथा सर हरीसिंह गौर माने जाते हैं। सागर के तालाब का सम्बंध लाखी से जोड़ा जाता है। सर हरीसिंह गौर ने 18 जुलाई, 1946 को सागर विश्वविद्यालय की स्थापना करके, अमरत्व प्राप्त कर लिया।
सागर से ही बुन्देला-विद्रोह का समारम्भ हुआ। मधुकरशाह बुन्देला की समाधि सागर कारागृह के पीछे है। मधुकरशाह बुन्देला की शहादत ने बुन्देली लोकगीतों को श्रेष्ठ नायक प्रदान किया। कहा जाता है। कि इनके चबूतरे की परिक्रमा लगाने से ज्वर से मुक्ति मिलती है। राष्ट्रीय आंदोलन में सागर को महत्वपूर्ण तथा प्रभावी भूमिका रही है। भाई अब्दुल गनी, देवेन्द्रनाथ मुकर्जी, मास्टर बलदेव प्रसाद, जहूरबख्श, डॉ. हरीसिंह गौर, सागर के गाँधी केशव रामचन्द्र खाण्डेकर, शम्भुदयाल मिश्र, केदारनाथ रोहण, स्वामी कृष्णानंद, गोविन्दराव लोकरस को सागर कभी विस्मृत नहीं कर सकता।
सागर का रतौना काण्ड सन् 1920 में बड़ा चर्चित हुआ जिसमें अंग्रेजों के सामने झुकना पड़ा। यहाँ की पुरानी पत्र-पत्रिकाओं में विचार वाहन, उदय, दैनिक प्रकाश (मध्य प्रदेश का प्रथम दैनिक हिन्दी पत्र) समालोचक, देहाती दुनिया ने राष्ट्रीयता, साम्प्रदायिक सौहार्द, देशभक्ति, स्वतंत्रता संग्राम तथा समाज सुधार में विशेष योगदान दिया।
महात्मा गाँधी जी राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान हरिजन आंदोलन में सागर जिले में पधारे थे। सन् 1934 में उनका सागर आगमन हुआ था। सन् 1930 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की गुप्त संगठन शाखा भी सागर में खुली थी जिसे प्रांत के बाहर से नियमित रूप से गोले-हथियार प्राप्त होते रहते थे। पं. रवि शंकर शुक्ल तथा शहीद साबूलाल जैन के नाम सागर से विशेष रूप से जुड़े हैं।
स्वतंत्र भारत में सागर से निकला “विन्ध्य केसरी महत्वपूर्ण पत्र है। सागर की पत्रकारिता ने जनजीवन तथा लोक-जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। सागर विश्वविद्यालय में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राज माता विजयराजे सिंधिया (जो कि सागर की पुत्री हैं) ने दीक्षांत भाषण दिए।
आज सागर डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सम्भाग मुख्यालय, सेना केन्द्र, राज्य की पुलिस अकादमी तथा बीड़ी के कारण जाना जाता है। सावन के महीने में सागर में लघु वृन्दावन जन्म ले लेता है और यहाँ के मंदिर झूले-झांकियों से आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं। वृन्दावन के स्वामी हरिदास-सम्प्रदाय के अष्टाचार्य में से एक स्वामी भगवत रसिक का जन्मस्थान सागर जिले का गढ़ाकोटा रहा है। सैय्यद अमीर अली, “मीर”, प्रेमचन्द, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के भी सागर के साथ सम्बन्ध रहे हैं।
सागर रेल्वे स्टेशन को सौ वर्ष हो चुके हैं। विश्वविद्यालय स्वर्ण जयंती की ओर उन्मुख हो रहा है। डॉक्टर हरीसिंह गौर के 125 वर्ष उसी प्रकार राष्ट्रीय आयोजन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के आयोजन हुए थे। गौर-जयंती सागर का राष्ट्रीय पर्व है। सागर का महार रेजिमेण्ट भी महत्वपूर्ण आयोजन की तैयारी में है।
आज सागर मध्य प्रदेश के प्रमुख नगरों में से एक है। उसका विश्वविद्यालय प्रांत का सबसे बड़ा, सबसे पुराना तथा सबसे अच्छा विश्वविद्यालय है। आज यदि इस प्रकार का विश्वविद्यालय निर्मित किया जाय तो दो सौ करोड़ की धनराशि लगेगी। डॉ. गौर इसे कैम्ब्रिज तथा आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के समतुल्य बनाना चाहते थे।
सागर नगर प्राचीनता तथा आधुनिकता का संगमस्थल है। यहाँ की बुन्देली संस्कृति तथा बुन्देली भाषा मीठी और प्रभावी है। सागर ने अनेक साहित्यकार प्रदान किये जिनमें से डॉ. राम कुमार वर्मा की जन्मस्थली होने का इसे सौभाग्य प्राप्त है।
सागर का इतिहास वैभवपूर्ण, राष्ट्रीय आंदोलन प्रेरणाप्रद तथा वर्तमान बोध बहुमुखी है। यहाँ मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अच्छे अधिवेशन हो चुके हैं। ऐतिहासिकता, जनसंस्कृति तथा प्रगतिशीलता की त्रिवेणी से सागर को प्यार का सागर कहा जाने लगा है।
सागर, देश में चल रहे राजनैतिक आंदोलनों के प्रति अत्यंत संवेदनशील रहा है। सागर में कटरा बाजार में स्थित फन्नूस का कुआं वास्तव में फांसी स्थल था जहाँ वटवृक्ष पर अंग्रेज देशद्रोहियों को जिंदा लटका दिया करते थे। सागर आर्य समाज तथा सागर का शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अपनी स्थापना की शताब्दी मना चुका है।
मध्य प्रदेश की प्रथम महिला सत्याग्रही तथा प्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान और उनके पतिदेव ठाकुर लक्ष्मण सिंह, पं. द्वारका प्रसाद मिश्र, सेठ गोविन्ददास, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा तथा डॉ. बाबूराम सक्सेना के सागर के साथ घनिष्ठ सम्बंध रहे है। डॉ. डब्लू. डी. वेस्ट ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की आसंदी को गौरव प्रदान किया।
आज सागर अनेक समस्याओं से जूझ रहा है यथा आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की स्थापना, केन्द्रीय विश्वविद्यालय की परिणति, रेल की सुविधाएँ, वायु दूत सेवा, पेय जल की समस्या, तालाब के ज्वालामुखी की स्थायीतौर पर समाप्ति, विकास की योजनाओं की क्रियान्विति तथा औद्योगीकरण। सागर ने राज्य को दो मुख्य मंत्री तथा अनेक कुलपति प्रदान किये। इसे कुलपतियों की खान भी कहा जाता है।
तुलसी, केशव, लाल, बिहारी, श्रीपति, गिरधर,
रसनिधि, रामप्रवीण, पजन, ठाकुर, पद्माकर ।
कविता मंदिर कलश सुकवि कितने उपजाये,
कौन गिनावे नाम जायें किसके गुण गाये ।।
यह कमनीया काव्य-कला की नित्य भूमि है।
सदा सरस बुंदेलखण्ड साहित्य भूमि है ।।
– स्वर्गीय मुंशी अजमेरी