बुन्देलखंड भारत का ऐसा भौगोलिक खंड है, जो बुन्देलखंड उच्च भूमि के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह दो भागों में बँटा क्षेत्र है। बुन्देलखंड का कुछ भाग मध्य प्रदेश एवं कुछ भाग प्रदेश के अंतर्गत है। मध्य प्रदेश में इसका अधिक भाग है यह चेदि साम्राज्य के अधीन रहा है। चन्देल राजपूत एवं चेदि से मिलकर यह बुन्देलखंड कहलाया।
बुन्देलखंड के अंतर्गत झाँसी, बाँदा, चित्रकूट, दतिया, टीकमगढ़, ललितपुर, सागर, दमोह, उरई, पन्ना, हमीरपुर, महोबा, राठ, नरसिंहपुर एवं छतरपुर जिले सम्मिलित हैं।
बनावट – बुन्देलखंड विंध्यन पहाड़ी श्रृंखला से दक्षिण एवं उत्तर में गंगा सिंधु मैदान से आवृत्त है। यह भौतिक क्षेत्र उत्तर में हल्के ढाल वाली उच्च भूमि क्षेत्र है। दक्षिण में पहाड़ी श्रृंखलाओं, पहाड़ी क्षेत्र एवं जंगलों से घिरा है।
बुन्देलखंड की उच्च भूमि एवं दक्षिण पूर्व के कुछ भाग जिनमें उत्तरी पश्चिमी मालवा का पठार एवं दक्षिण पूर्व में नर्मदा बेसिन के कुछ भागों को छोड़कर इसका विस्तार 24° से 26°30 ‘ उत्तरी अक्षांश एवं 78°10′ से 81°30’ पूर्व देशांतर में है।
बुन्देलखण्ड उच्चभूमि तथा विन्ध्यन श्रेणी के मध्य में विन्ध्य कगार भूमि स्थित है। यह कई पठारों का समूह है जो सम्भवतः कैब्रियन युग में निक्षेपित हुए हैं। तब से अनेक बार यह क्षेत्र उत्थित और अपरदित हुआ है वर्तमान में पूर्व-पश्चिम विस्तृत अपरदित कगार यहाँ की मुख्य स्थलाकृति है। वस्तुतः सपाट शिखरों तथा विखण्डित पठारी भू-दृश्य वाला यह प्रदेश विशाल मैदान तथा प्रायद्वीप पठार के मध्य एक संक्रांत क्षेत्र है। यहाँ की स्थलाकृति संरचना से पूर्णतः संबंधित है। यहाँ के मुख्य पठार कैमूर, रीवा तथा भॉडेर है जिनमें बालुका पत्थर की प्रधानता है। इस प्रदेश की दक्षिणी पर विन्ध्यन शैल समूह दीवार के समान प्रपाती ढाल बनाते हैं। जिसकी औसत उचाई लगभग 450 मीटर है। इस प्रदेश की उत्तरी सीमा भी एक प्रपाती कगार है जो पन्ना, सतना तथा रीवा के उत्तरी भाग में पूर्व से पश्चिमी तक विस्तृत है। यहाँ की मुख्य नदी केन है।
विन्ध्यन श्रेणी का विस्तार नर्मदा घाटी के उत्तर में, घाटी के सहारे सहारे, पश्चिम में गुजरात की सीमा से आरम्भ होकर पूर्व में कैमूर श्रेणी (मिर्जापुर) तक लगभग 1,050 कि.मी. की लम्बाई में है। अपनी पश्चिमी सीमा पर, लगभग 100 कि.मी. की लम्बाई से यह श्रेणी चाप की भाँति नर्मदा घाटी की ओर उन्नति आकृति में है तथा 300 मीटर की समोच्च रेखा का अनुसरण करती है।
दक्षिण बुन्देलखंड में
मिट्टी – बुन्देलखंड क्षेत्र में गहरी काली, हल्की काली एवं मध्यम प्रकार की काली एवं लाल मिट्टी का क्षेत्र फैला है जबकि उत्तर में टीकमगढ़, ललितपुर, हमीरपुर, बाँदा क्षेत्रों में कॉप की दोमट मिट्टियाँ भी पाई जाती हैं। नरसिंहपुर जिले में काली एवं नर्मदा प्रवाह क्षेत्र की दोमट मिट्टी का क्षेत्र है।
अपवाह तंत्र – बुन्देलखंड क्षेत्र में उत्तर में यमुना नदी के प्रवाह क्षेत्र में आनेवाली प्रमुख नदियों में चंबल, बेतवा जो ललितपुर, झाँसी, जालौन हमीरपुर जनपदों में प्रवाहित होती है। दक्षिणी क्षेत्र में नर्मदा अपवाह तंत्र में आनेवाली छोटी नदियाँ एवं केन नदी प्रवाह क्षेत्र में आने वाली सोनार, व्यारमा नदियों का प्रवाहित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक जलाशय भी हैं जिनमें सागर, छतरपुर एवं टीकमगढ़ का क्षेत्र सम्मिलित है।
जलवायु- भारत की मानसून जलवायु से प्रभावित यह क्षेत्र मध्यम प्रकार की जलवायु वाला क्षेत्र है अतिशीत एवं अतिग्रीष्म जलवायु इस क्षेत्र की नहीं है। यहाँ तीन ऋतुएँ ग्रीष्म, वर्षा, शीतऋतु है। ग्रीष्मकाल में औसत तापमान अप्रैल से जून तक लगभग 40°C एवं शीतऋतु में 15°C औसत रहता है। शीतकाल में उत्तरी बुन्देलखंड अधिक ठंडा होता है यहाँ ललितपुर झाँसी एवं जालौन जिलों का तापमान 50°C होता है। जबकि दक्षिणी बुन्देलखंड में जनवरी में यह 7 से 12°C तक की विभिन्नता लिए हुए है।
वनस्पति- बुन्देलखंड की उच्च भूमि में विन्ध्यन पहाड़ी श्रृंखला वनों से आच्छादित है यहाँ मिश्रित प्रकार के वन पाए जाते हैं बुन्देलखंड में महुआ, जामुन, बेर, बेल, बबूल, खेर के मिश्रित वन हैं। जैव विविधता की दृष्टि से बुन्देलखंड महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ के कुछ वन राष्ट्रीय वन संरक्षण एवं नेशनल पार्क की श्रेणी के हैं। जिनमें पन्ना का टाइगर रिजर्व नौरादेही वन अभ्यारण, रमना फॉरेस्ट, रमना फॉरेस्ट प्रमुख वानस्पतिक क्षेत्र हैं।
भूमिका-
भूगोल के माध्यम से किसी भी क्षेत्र के विस्तार, स्थिति, क्षेत्रफल, उच्चावच, जलवायु, नदी, पर्वत, वन, पर्यावरण, पर्यटन, जनसंख्या वितरण, परिवहन, उद्योग, व्यवसाय, कृषि, खनिजों का वितरण आदि विविध पक्षों का अध्ययन किया जाता है ।
उद्देष्य-
किसी भी प्रदेष के क्रमिक विकास एवं विष्व मानचित्र में उसकी उपस्थिति तथा उसके आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राजैनीतिक पक्षों को बताना ही भूगोल का वास्तविक उद्देष्य होता हैं अतएव बुंदेलखण्ड विष्वकोष की भूगोल समिति, बुंदेलखण्ड को विष्वमान चित्र में लाने एवं यहाँ के भौगोलिक वैभव में बुंदेलखण्ड को प्रकाष में लाने का कार्य संपन्न करेगी। बुंदेलखण्ड के विष्वकोष में बुंदेखण्ड की भौगोलिक जानकारी प्रदान करने के लिए भूगोल समिति का निर्माण किया गया है। जिसका उद्देष्य बुंदेलखण्ड की भौगोलिक जानकारी को प्रकाष में लाना है ।
कार्य की रूपरेखा-
भूगोल समिति द्वारा बुंदेली विष्वकोष के लिए तथ्यात्मक एवं सारगर्भित जानकारी को एकत्रित करने के उद्देष्य से ही भूगोल समिति को निम्न 11 उप समितियों में विभक्त किया गया है-
1. भौतिक स्वरूप, भूवैज्ञानिक संरचना, सामग्री संग्रह समिति।
2. जलसंसाधन एवं अपवाह प्रणाली सामग्री संग्रह समिति।
3. जलवायु आंकड़े संग्रह समिति।
4. मिट्टियों के आंकड़े संग्रह समिति।
5. वन एवं वनस्पति के आंकड़े संग्रह समिति।
6. खनिज संसाधनों के आंकड़े संग्रह समिति।
7. कृषि संबंधी आंकड़े संग्रह समिति।
8. उद्योग संबंधी आंकड़े संग्रह समिति।
9. परिवहन के साधनों के आंकड़े संग्रह समिति।
10. व्यापार एवं व्यवसाय के आंकड़े संग्रह समिति।
11. जनसंख्या संबंधी आंकड़े संग्रह समिति।
उपर्युक्त समितियाँ अपनी विषय विषेज्ञता के आधार पर संपूर्ण बुंदेलखण्ड में विद्यमान भौगोलिक जानकारी को एकत्रित करेगी। एकत्रित स्त्रोतों के माध्यम से भौगोलिक सलाहकार समिति, भौगोलिक आंकड़े संकलन समिति एवं भौगोलिक जानकारी/आंकड़े प्रकाषन समिति के परामर्षानुसार बुंदेलखण्ड के वैभवषाली भूगोल को प्रकाश में लाया जायेगा।
डॉ. सुनील बाबू विश्वकर्मा
प्रभारी
भूगोल समिति
बुन्देलखण्ड विश्वकोश