मनुष्य एक धार्मिक प्राणी है। धार्मिक भावना उसकी अन्तरात्मा की पुकार है। धर्म जीवन का संविधान है जो व्यक्ति के व्यक्तिगत सामाजिक नैतिक तथा आध्यात्मिक कर्तव्यों की व्याख्या करके कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित करता है। धर्म का अर्थ साम्प्रदायिक परंपराओं का निर्वाह नही बल्कि कर्तव्यपालन है। किसी सम्प्रदाय विशेष में आस्था रखना, उसकी प्रथा परिपाटी अपनाना एक समुदाय विशेष की रीति नीति हो सकती है किंतु धर्म शब्द का जिस व्यापक अर्थों में प्रयोग होना चाहिए उसे मानवीय कर्तव्यों का समन्वय ही कहा जा सकता है। धर्म मनुष्य की सर्वोपरि आवश्यकता है।
दर्शन मनुष्य के सर्वोच्च लक्ष्य की विवेचना करता है। दर्शन सत्य का साक्षात्कार है। दर्शन देशकाल परिस्थितियों से परे शाश्वत और सार्वभौम सत्यों का समीक्षात्मक विवेचन है। जीवन, जगत, प्रकृति और अदृश्य शक्तियों के स्वरूप व संबंध की व्याख्या करना दर्शन का मुख्य लक्ष्य है। तर्क-वितर्क, साक्ष्य, अनुभव और चिंतन के आधार पर सत्य का अनुसंधान ही दर्शन है । दर्शन मनुष्य का स्वाभाविक चिंतन है। सत्य के लिए सत्य की खोज का अपना मूल्य होता है। दर्शन परम सत्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। परम सत्य के साक्षात्कार में अनवरत प्रयासरत महापुरुषों के चरित्र चिन्तन और आचरण के प्रतिफल को सभी स्वीकार करते हैI
भौतिकता से परे जीवन का अनुभव प्राप्त करना आध्यात्मिकता है। धर्माचरण से साधकों को सतत साधना में विभिन्न अनुभव प्राप्त होते हैं। ऋषि, मुनि, संत महात्माओं और द्रष्टा महापुरुषों के अनुभवों को कोई झुटला नही सकता। इनकी आध्यात्मिक अनुभूतियां ज्ञान की सर्वोच्च अनुभूतियां हैं। जब मनुष्य ज्ञान भक्ति और निष्काम कर्म के मार्ग में निरंतर आगे बढ़ता है यो वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचता है जहाँ केवल आनंद ही आनंद है। इस आनंद की वह अनुभूति तो कर सकता है परन्तु उसका वर्णन नहीं कर सकता है। यही वह स्थान है जहां शब्द साथ छोड़ देते हैं। व्याख्याओं का जहां दम घुटने लगता है। जवान गूंगी हो जाती है। हमारी इन्द्रियों ने जिन अनुभूतियों और अवलोकनों का सपना भी नही देखा उन्हें हम बता भी तो नहीं सकते। यही वह पावन और परोक्ष जगत है जहाँ विश्वासों और मात्र विश्वासों की रोशनी में सन्मार्ग नज़र आता है जो आध्यात्मिक जगत का साक्षात्कार कराता है।
धर्म दर्शन और अध्यात्म समिति बुन्देखण्ड की धर्म, दर्शन और अध्यात्म परंपरा को जनसामान्य के समक्ष लाने का प्रयास करेगी। इस कार्य के लिए निम्न समितियों का गठन करना आवश्यक है-
1- धार्मिक परंपरा समन्वय समिति
1 – धर्मस्थल अनुसंधान समिति
2 – धर्माचार्यों की जानकारी समिति
3 – कथावाचक जानकारी समिति
4 – संकीर्तन मंडल की जानकारी समिति
5 – धार्मिक साहित्य लेखक समिति
6 – धर्म प्रचारक समिति
7 – धर्म, दर्शन अध्यात्म समिति
प्रोफेसर जय प्रकाश शाक्य
प्रभारी-
अध्यक्ष-दर्शनशास्त्र अध्ययन शाला एवं शोधकेंद्र
महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय छतरपुर म.प्र.