एक बुढ़िया थी उसका अपना कोई नहीं था। वह घर में अकेली रहती थी। वह रोज सुबह उठकर स्नान आदि करके तुलसी माता को जल चढ़ाती व उन्हीं की रोज पूजा किया करती थी, प्रतिदिन पूजा के करने के बाद वह हाथ जोड़कर तुलसी माता से यही प्रार्थना करती थी कि हे तुलसी माता हमें एकादशी का मरना देना, द्वाद्वशी की तापना देना, उपटा की मौत देना, श्री कृष्ण का कंधा देना, पीताम्बर धोती देना, राधा की टेर देना, चंदन लकड़ियाँ देना। पूजा करने के बाद रोज ही तुलसी माता से ऐसी विनती करती थी, बहुत दिन बीत गये अब जैसे-जैसे उसका समय करीब आता गया तुलसी मैया की चिंता बढ़ने लगी धीरे-धीरे वह सूखने लगी, एक दिन भगवान ने पूछा तुलसी सब लोग तुम्हें सुबह से ही ढारते, पूजते हैं।
कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियों रोज तुम्हारी पूजा व आरती करती हैं फिर भी तुम सूखती जा रही हो क्या बात है? तुलसी ने भगवान से कहा, एक बुढ़िया रोज हमारी पूजा करके यही विनती करती है कि हे तुलसी मैया उपटा की मौत देना, श्री कृष्ण का कंधा देना, पीताम्बर धोती देना, राधा की टेर देना, चंदन लकड़ियाँ देना और तो सब हम देदें पर श्री कृष्ण का कंधा कहाँ से देंगें उसे। भगवान ने कहा तुलसी तुम चिंता मत करो पहले की ही तरह हरियाती रहो जब उसका समय आयेगा तब सब हो जायेगा। कुछ दिन बाद जब कार्तिक की देवउठनी एकादशी का दिन आया बुढ़िया रोज की तरह पूजा करने के बाद परिक्रमा कर रही थी कि अचानक उसे उपटा आया और वह गिर पड़ी और थोड़ी ही देर बाद मर गई।
सुबह से पूरा दिन व रात भर ऐसी पड़ी रही जब दूसरे दिन सुबह भी बुढ़िया के किवाड नहीं खुले, तो पड़ोसियों को आश्चर्य हुआ कि रोज सुबह ही बढ़िया के दरवाजे खुल जाते थे आज क्या बात है। पड़ोसी किसी तरह अंदर गये तो देखा कि बुढ़िया तुलसी के पास ही मरी पड़ी है। उसका अपना तो कोई था ही नहीं इससे थोड़ी देर बाद सब पड़ोसियों ने मिल कर सब तैयारी की जब उसे उठाने के लिए अंदर गये तो बहुत कोशिशों के बाद भी बुढ़िया नहीं उठी लोगों ने काफी देर तक जोर लगाया परन्तु नहीं उठा सके, थोड़ी ही देर बाद भगवान बालक का रूप रखकर आये और जैसे ही उन्होने ने बुढ़िया को हाथ लगाया वह तुरंत ही उठ गई उन्होंने पीताम्बरी उठाई उधर से राधाजी मौसी मौसी की टेर लगाती हुई आईं, भगवान ने उसे अपना कंधा दिया तथा चंदन की लकड़ियों से उसका दाह संस्कार किया व उसका उद्धार किया। भगवान ने जैसी उसकी राखी, वैसी सबकी राखे।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।