
फूफेर गुफाएँ
July 25, 2024
करगुवाँ जी
July 25, 2024स्थिति
यह जैन तीर्थ म.प्र. के विदिशा नगर से मात्र 6 कि.मी. और बौद्धों के तीर्थ सांची से 8 कि.मी. की दूरी पर विद्यमान है।
उदयगिरि नामक पहाड़ी उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर 2 कि.मी. और उत्तर पूर्व के सिरे पर 350 फुट ऊँची है।
इतिहास
उदयगिरि की मुख्य गुफाएँ गुप्तकाल की हैं। इनमें से दो गुफाओं में चन्द्रगुप्त द्वितीय के अभिलेख विद्यमान है तथा तीसरी एक गुफा में गुप्ता संवत् 106 का अभिलेख है। यह म.प्र. में उपलब्ध अब तक के जैन अभिलेखों में सर्वाधिक प्राचीन हैं।
पुरातत्व
उदयगिरि नामक पहाड़ी के उत्तर-पूर्वी पहाड़ काटकर गुफाएँ बनाईं गईं हैं, जिनकी कुल संख्या बीस है। इनमें संख्या 1 एवं 20 की गुफाएँ जैन-मत से संबंधित है: दोनों गुफाओं में प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में दो अभिलेख हैं। इनमें संख्या 20 अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
गुफा संख्या बीस, पहाड़ी के उत्तरी-पश्चिमी सिरे पर अवस्थित है। इसके दो कक्षों में एक के बाहय में 4’2″ के ऊँचे एक शिलाफलक पर 10वीं सदी की भूरे वर्ण वाली पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर पार्श्वनाथ की विराजमान है। कहा जाता है कि सप्त फणावलि बाली यह मूर्ति अन्यत्र से लाकर स्थापित की गई है। ऊपर दुन्दुभि, शीर्ष पर पद्मासन जिन प्रतिमायें, शार्दूल का अंकन, नीचे गज और उनके नीचे चमरेन्द्र तथा चमरेन्द्रों के नीचे यक्ष-यक्षी का भव्य उत्कीर्णन मनोहारी है। भगवान पार्श्वनाथ के यक्ष पर श्रीवत्स और कर्ण-नसिका खण्डित है। इसी कक्ष में दायीं ओर की दीवाल में अस्पष्ट दो पद्मासन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्तियों का अंकन है। अन्य देव प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं।
अन्दर के दूसरे कक्ष में 3’6″ ऊँची पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर आदिनाथ की बाँयी दीवाल में उत्कीर्ण है। मूर्ति के पृष्ठ भाग में खण्डित भामण्डल, वक्ष पर श्री वत्स, दोनों पाश्र्वों में चंवर वाहक जिनके नीचे कलश लिये गज दर्शनीय हैं। सिंहासन के सिंहों के पाश्वों में यक्ष-यक्षी हैं। ललितासन में उत्कीर्ण चर्तुमुखी यक्ष-यक्षी की बाहुओं में शक्ति, वरद् मुद्रा और फल का उत्कीर्णन सुन्दर है। इस मूर्ति के दाँयीं ओर के एक आले में 3″ लम्बे चरण स्थित हैं। उत्तरी कमरे की एक भित्ति पर ही पूर्व वर्णित, संवत् 106 का अभिलेख है जिससे ज्ञात होता है कि गुप्तकाल में शंकर नाम के किसी धर्मात्मा सज्जन ने इस गुफा में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित कराई थी।
इस गुफा से आगे ‘रेस्ट हाउस’ है। पहाड़ी मार्ग पर गुफा संख्या 20 से 3 फर्लांग दूर प्राचीन जिनालय है। इसमें गर्भगृह और अर्ध मण्डप है। मध्य में बांयी ओर तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की पंचफणावलियुक्त खड़गासन प्रतिमा है, इसके पार्श्वों में आकाशगामी गन्धर्व, अधोभाग में दोनों ओर दो पद्मासन और दो खड़गासन जिन मूर्तियाँ हैं। उनसे नीचे ललितासन में द्विभुजी देवी है जो संभवतः सुपार्श्वनाथ की शासन देवी काली (मानवी) है। देवी के सामने नर- नारी नमस्कार की मुद्रा में उत्कीर्ण हैं।
यहीं से वैष्णव और शैव गुफाओं को जाने का रास्ता है इनमें बारहवतार गुफा, विष्णु गुफा, अष्ट शक्ति गुफा, तवा गुफा, अमृत गुफाएँ आदि सम्मिलित हैं। इनमें गुप्तकाल के शिलालेख विद्यमान हैं। यहाँ की और विदिशा के आसपास की काफी ऐतिहासिक महत्व की सामग्री संग्रहालय में एकत्रित कर प्रदर्शित भी की गई है।
हाल ही में मई-जून 2003 में विदिशा में प्रवाहित बेतवा नदी की जन सहयोग से की गई खुदाई में 5वीं से 12वीं सदी की लगभग 150 प्राचीन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं जिनमें अधिकांश जैन मूर्तियाँ ही हैं। यह सिद्ध करती हैं कि वास्तव में यह क्षेत्र, जैन पुरातत्व की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध रहा है।
उदयगिरि एवं आसपास के तीर्थों के लिये विदिशा में धर्मशालाओं और आधुनिक लॉजों की पर्याप्त व्यवस्था है।