उदयगिरि
July 25, 2024पावागिरि (पवा जी)
July 25, 2024स्थिति
विदिशा से दिल्ली की ओर रेलमार्ग से आगे बढ़ने पर (बीना के बाद) झाँसी जंक्शन आता है। उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले में, कानपुर राजमार्ग पर, झाँसी से पाँच कि.मी. दूरी पर अतिशय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र करगुवाँ जी अवस्थित है।
इतिहास
यह तीर्थ लगभग सात सौ वर्ष से अधिक प्राचीन है। यहाँ प्राप्त मूर्तियों में छह मूर्तियों पर सम्वत् 1851 का अभिलेख विद्यमान है। भोंयरा (भूगृह) प्राचीन है।
अतिशय
किंवदंती है कि आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व जिन दिनों झाँसी (तत्कालीन प्रचलित नाम बलवन्त नगर) में श्री बाजीराव पेशवा (द्वितीय) का राज्य था, खण्डित जिन बिम्बों से भरी एक बैलगाड़ी जब यहाँ से गुजर रही थी कि वर्तमान भोंयरे के ऊपर से निकलते हुए वह अचानक रुक गई। झाँसी से प्रतिष्ठित जैन पंच श्री नन्हें जू सिंघई को स्वप्न में यह ज्ञात हुआ कि गाड़ी आगे तभी चलेगी जब उस स्थान पर दबी हुई मूर्तियाँ निकलवाकर स्थापित कर दी जायें। श्री नन्हें जू ने खुदाई करवाई और राजा सहित अनेक नागरिकों ने स्वप्न के सच का विस्मय देखा। खुदाई से प्राप्त मूर्तियों का स्थापना समारोह आयोजित कराया गया।
इतिहासकार कहते हैं कि सन् 1914 में झाँसी पर जब अंग्रेजों ने चढ़ाई की तो इसी स्थान पर मंदिर के पास ही कैमासन की टौरिया पर मोर्चा जमाया गया था। अनभिज्ञ सिपाहियों ने अनेक मूर्तियाँ नष्ट कर डालीं केवल सात मूर्तियाँ शेष बचीं थीं।
पुरातत्व
पहाड़ी तलहटी में प्राकृतिक सुषमा से युक्त, 8 एकड़ भूमि के विस्तृत परकोटा में सघन आम, जामुन आदि वृक्षों की शीतल छाया के मध्य एक प्राचीन भोंयरा (भू गृह) यहाँ स्थित है।
भोंयरे में छः जिन प्रतिमायें हैं। पाँच सम्वत् 1345 और एक सम्वत् 1851 की तीर्थकर महावीर स्वामी की अत्यन्त भव्य और मनोहर प्रतिमा दर्शनीय है। इस तीर्थ पर मूल नायक भगवान पार्श्वनाथ की चार फुट उत्तुंग खड़गासन प्रतिमा वन्दनीय है। श्याम पाषाण की पाँच मूर्तियाँ पद्मासन मुद्रा में 3 फुट से 4 फुट की ऊँचाई की है, शेष एक 4 फुट ऊँची है।
भोंयरे (भू-गृह) की वेदी प्रतिष्ठा एवं जीर्णोद्धार मार्च 1972 में किया गया है। जिससे व्यवस्थायें बहुत सुधरी हैं। भूतल का सभा भवन एवं 50 सुविधायुक्त कक्षों की धर्मशालाएँ निर्मित होने से दर्शनार्थियों एवं यात्रियों को पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो गया है। महावीर स्वामी के 2500 वें निर्वाणोत्सव पर यहाँ एक 35 फुट ऊँचा मानस्तम्भ बनाया गया और भोंयरे के दोनों ओर भगवान आदिनाथ एवं बाहुबलि स्वामी की पाँच फुट ऊंची मूर्तियाँ भी स्थापित की गई हैं। पार्क आदि विकसित कर रमणीक बना दिया गया है। झाँसी वासियों के लिये शहर से लगे हुए मेडिकल कॉलेज के पास यह क्षेत्र पर्यटन के लिये भी उपयोगी है। 1986 में आचार्य देशभूषण महाराज ने इस क्षेत्र का पारम्परिक नाम परिवर्तित कर, साँवलिया पारसनाथ कर दिया है।
यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र में विशाल जनपदीय मेला आयोजित किया जाता है।