टीकमगढ़ से पूर्व दिशा में पपौरा जी के आगे 27 किलो मीटर चलने पर बड़ागाँव (धसान) मिलता है। जबलपुर दमोह सागर और झाँसी की ओर, टीकमगढ़ से जाने वाली अधिकांश बसें बड़ागाँव से होकर ही निकलती हैं। बड़ागाँव के निकट एक पहाड़ पर यह पुरातन अतिशय दिगम्बर जैन क्षेत्र विद्यमान है।
इतिहास
यहाँ स्थित जैन मंदिर, मूर्ति रचना की दृष्टि से चंदेलकालीन ही है। एक सुरम्य पहाड़ी पर चार जिनालय हैं, जिनका निर्माण 11 वीं सदी का प्रतीत होता है। पार्श्व भाग में एक गुफा विद्यमान है। चरण चौकियाँ, खण्डित मान-स्तंभ, चौबीसी-फलक एवं अनेक भग्नावशेष तीर्थ की पुरातन-गाथा कहने के लिये पर्याप्त हैं।
पुरातत्व
कुछ विद्वानों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि बड़ागाँव ही वह सिद्धक्षेत्र है जिसका उल्लेख कुन्द कुन्द स्वामी ने प्राकृत ग्रन्थ निर्वाण काण्ड में निम्नानुसार किया है-
‘फलहोड़ीबड़गामेंपच्छिमभायम्मिद्रोणगिरिसिहरे।
गुरुदत्तादिमुणिन्दाणिब्वाणगयाणमोतेसिं ।‘
इसके लिये बड़ागाँव के पहाड़ को कोटि शिला, घसान नदी को दशार्ण और पश्चिम में स्थित सेंधपा तीर्थ को द्रोणगिरि और फलहोड़ी बड़गाम को बड़ागाँव मान लिया गया।
यद्यपि अभी सेंधपा को द्रोणगिरि मानने में ही विवाद है क्योंकि गुरुदत्तादि मुनियों के मोक्ष जाने के काल और सेंधपा के जिनालयों के निर्माण काल में भारी अंतर है।
सेंधपा वाले, फलहोड़ी ग्राम एक अवशिष्ट बस्ती को मात्र दो फलॉग पूर्व में मानते हैं। वे इस बड़ागाँव को फलहोडी नहीं बताते जो टीकमगढ़ जिले में काफी दूर पूर्व में विद्यमान है। फिर बड़ागाँव और बड़गाँव, बड़गाम में अंतर है। फलहोड़ी बिल्कुल अलग नाम है। मैं किसी की अवधारणा को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता, पर बिना निराकरण हुए मनमाना उल्लेख करना भी उचित नहीं है। जो भी हो 24° 34′ और 79° 1′ भू रेखाओं के मध्य बसे इस बड़ागाँव में एक पहाड़ी पर स्थित पुरातन तीर्थ दर्शनीय और वन्दनीय है। पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।