
सामाजिक मनोदशा
August 9, 2024
खनिज सम्पदा
August 9, 2024बुन्देलखड पहाड़ी और जंगली भूभाग होने से आवागन के साधनों में पिछड़ा रहा है। टेढ़े मेंढे गहरे नाले, नदियाँ, नीचे ऊँचे घाट और दर्रें यातायात में बाधक रहे हैं। (W. Walleson-The Revolt in Central India 1857-59, P.98) नदियों पर पुल न होने से आवागमन एवं यातायात के साधन, बैलगाड़ी, घोड़ा, गधे, भैंस, भैंसा और लद्दू बैल (मर्रे) ही थे। बोझा ढोने वाले, ”बुझिया” भी सामान ले जाने का काम करते थे। मार्ग सुरक्षित न थे। पहाडि़यों की घाटियों, नदियों के घाटों एवं सूँडों में बटमार, लुटेरे और डाकू भारी संख्या में रहा करते थे।
लुटेरों में अपराध पेशा जातियाँ जैसे नट, कंजड, सड़ौरिया, खाँगट आदि थी जिन्हें सीमावर्ती गाँवों के मुखिया, जमींदार, जागीरदार, राजा संरक्षण दिये रहते थे तथा संरक्षण के बदले में लूटमार की घटनाओं में इस सीमा तक वृद्धि हो थी कि बुन्देलखण्ड ठगों की नर्सरी कहलाने लगा था। (G.R. Abrigh Maickay-The Chiefs of Central India Vol. I, P.159) ।
अंग्रेजी शासन के प्रभाव से सड़क मार्गों में कुछ सुधार हुआ था, परन्तु रेल यातायात की दृष्टि में बुन्देलखण्ड के रजवाड़े पछिड़े ही रहे हैं। राजाओं ने रेल मार्गों के निर्माण में रूचि न दिखायी, अपितु अंग्रेजी सरकार को राज्येां में से रेलमार्गों के निर्माण हेतु भूमि देने में आनाकानी किया करते थे।