हरिप्रसाद द्विवेदी ‘श्री हरि’
September 20, 2024राम कृष्ण वर्मा
September 20, 2024जन्म – सन् 1907 ई.
जन्म स्थान – पन्ना जिले के अजयगढ़
जीवन परिचय – अम्बिका प्रसाद श्रीवास्तव ‘दिव्य’ हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित काव्यकार, नाटककार, निबन्ध लेखक एवं उपन्यासकार थे। आपकी लेखनी के साथ चित्रकार की तूलिका का चमत्कार देखने को मिलता है। आपने अनेक साहित्यकारों, साहित्य-प्रेमी राजाओं के अनुपम चित्रों का निर्माण किया।
‘दिव्य’ जी का जन्म सन् 1907 ई. में पन्ना जिले के अजयगढ़ में हुआ था। आपकी कृतियों में गाँधी पारायण (महाकाव्य) अन्तर्जगत (खण्डकाव्य) जैसी काव्य कृतियों का प्रकाशन किया। किन्तु आप अपने काल के एक सफल उपन्यासकार रहे। जिनमें काला-भोंरा, सती का पत्थर, पीताद्री की राज कुमारी, जय दुर्गा का रंगमहल, जूठी पातर, खजुराहो की अतिरूपा, प्रेम तपस्वी आदि प्रसिद्ध हैं। अन्य कृतियों में निमियां, मनोवेदना तथा बेलकली (1946-48) का लेखन ‘दिव्य’ जी ने किया है।
अम्बिका प्रसाद ‘दिव्य’ हिन्दी साहित्य के जागरण सुधार काल के उपन्यासकार हैं। जब बुन्देलखण्ड की राज-सत्ता के पतन के साथ जन-चेतना का सूर्योदय की तपिश का आभास हो रहा था। अतः आपने यहाँ के ऐतिहासिक परिदृश्यों के साथ चरित्र-चित्रण के उपन्यासों को प्रणीत किया जिनमें उनके कतिपय उपन्यास साहित्य की निधि हैं। अतएव संक्षिप्त में इनका उल्लेख यहाँ दिया जाता है।
- काला भोंरा – (1964) ‘दिव्य’ जी का एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें चंदेल राजा गंडदेव और रानी इन्दुमती की ऐतिहासिक कहानी है। राज्य के उत्तराधिकारी की प्राप्ति हेतु भैरवनाथ के भैरवी यज्ञ की कुटिल चाल से रूपबाला से राजा से उत्पन्न पुत्र की प्राप्ति के साथ रूपबाला का बलिदान उपन्यास का अंत होता है।
- खजुराहो की अतिरूपा – ‘दिव्य’ जी का एक अन्य ऐतिहासिक उपन्यास है। खजुराहो की निर्जीव पाषाण मूर्तियों में रूप की कला और प्रेम के विविध चित्र हैं। जिनके पीछे उनकी कहानियाँ भी संदर्भित हुई हैं।
- प्रेम-तपस्वी – अम्बिका प्रसाद ‘दिव्य’ का लोक कवि ईसुरी के चरित्र-चित्रण पर आधारित एक जीवन चरित्रात्मक उपन्यास है। इसमें उपन्यासकार ने ईसुरी का बालपन का प्रेम और ‘रजऊ’ के प्रेम काे जोड़ कर दिखाने का प्रयास किया है। इसमें कुछ चारित्रिक भ्रांति के विवाद अवश्य हुये हैं किन्तु उपन्यास-कला की दृष्टि से यह उत्कृष्ट है।
- निमियाँ – निमियाँ उपन्यास में 1940 के टीमकगढ़, पन्ना, छतरपुर क्षेत्रों के रियासती जन जीवन का चित्रण है। जिसमें स्वार्थ और हृदयहीन सत्ता का सटीक वर्णन है।
- बेलकली – 1967 ई. में प्रकाश में आया। इसमें पन्ना नरेश महाराज अमान सिंह (नायक) और उनके हत्यारे भाई राजा हिन्दूपत के पुत्रों के षड्यंत्रों ‘और ‘युद्ध’ एवं ‘सतीप्रथा’ के अनौचित्य की कथा है।
- जयदुर्ग का रंग महल – यह उपन्यास सन् 1978 में प्रकाशित हुआ। जिसमें 12 वीं शती के आल्हा खण्ड के कथानक पर आधारित आख्यान है।
- पीताद्रि की राजकुमारी – 1979 में प्रकाशित ‘दिव्य’ जी का अन्य उपन्यास है। जिसमें युद्धोन्माद से ग्रस्त विसंगतियों को उकेरा गया है। जिसमें वीरांगना दुर्गावती की संघर्ष कथा है। असीम की सीमा 1984 में प्रकाशित ‘दिव्य’ जी की एक अन्य औपान्यासिक कृति है। इसमें प्रथम तीर्थंकर के वर्तमान को अतीत से जोड़कर चित्रित किया है।
- जूठी पातर – उपन्यास में ‘दिव्य’ जी ने पन्ना नरेश छत्रसाल और उनके गुरु स्वामी प्राणनाथ के कार्यकलापों का सटीक चित्रण किया है।
- फजल का मकबरा – उपन्यास और ‘जोगीराजा’ धारावाहिक रूप में सागर विश्व विद्यालय की ईसुरी पत्रिका में प्रसारित हुये हैं।
अम्बिका प्रसाद ‘दिव्य’ की अन्य रचनाएँ इस प्रकार हैं-
काव्य – स्रोतस्विनी-1946 , दिव्य दोहावली-1936 , पिपासा , पावस , भारत गीत, चेतयंती , पश्यंती , अन्नय मानसा गद्य गीत
काव्य एकांकी नाटक – झांसी की रानी , फूटी आँखें , भारत माता
एकांकी नाटक- लंकेश्वर , भोजनंदन कंस , तीन पग , निर्वाण पथ
आपका निधन 1986 में हुआ।