पुराने समय से बुन्देलखण्ड बड़ा पिछड़ा क्षेत्र था। अतः अल्प मनोरंजन के साधन व संसाधनों की कमी के कारण कुछ इस क्षेत्र के लोग अपने मनोरंजन के संसाधन खुद ही जुटाते थे, जिसमें व्यावहारिक खर्च नहीं आता था। जैसे- छोटे बच्चों के लिए पतंगबाजी, खरगोश, कुत्ता पालना, पिट्टू, गेंद-बल्ला, गिल्ली-डंडा, लुका-छिपी, खो-खो, कबड्डी, जलेबी दौड़, चमचा दौड़, कुर्सी दौड़, चपेटा, कंचा, इत्यादि खेल खेले जाते थे और बड़े लोग प्रायः घुड़सवारी, बैलों की लड़ाई, मलखम्भ पर चढ़ना, सांडों की लड़ाई इत्यादि खेल अपने मनोरंजन, आपस में दोस्ती बने रहे, ईमानदारी जिम्मेवारी बनी रहे, अनुशासन और नियम स्थापित रहें। अतः इन खेलों में अपने आपको व्यस्त रखते थे।
इसका लाभ यह होता था कि मनुष्य एक-दूसरे के साथ रहना व जीना चाहता था। निरंतर नये संबंध स्थापित होते है, मेल-मिलाप बढ़ता था, सामाजिकता की भावना आती थी, आपस लड़ना-झगड़ा एवं दोस्ती करना इत्यादि अनेकों पाठ की पाठशाला व खेल बन जाते थे। खेलों में प्रतिस्पर्धा बेहतर प्रदर्शन करने के गुण की वृद्धि होती थी। अच्छे आहार सेवन पर बल मिलता था। बच्चे और बड़े आपस में अलग-अलग एवं एक साथ भली-भावना के साथ खेलते थे। इन खेलों के साथ ही बच्चे खेती, बागवानी, सुन्दर बाग-बगीचे बनाना, सब्जी खेती, पर्यटक स्थलों में जाना, नृत्य नाटिकाओं में भाग लेना, कहानी कविताओं में भाग लेना और संगीत के प्रति रूचि रखते थे। यह उन्हें निरोग रखने में सहायक भी होता था। शारीरिक श्रम स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, योग का अभ्यास भी सार्थक होता है, इन सभी का प्रयोग आपस में किया जाता था।