जगम्‍मनपुर एक प्रतिष्ठित सेंगरवंशीय क्षत्रिय राजा की राजधानी थी। जगम्‍मनपुर उत्‍तर प्रदेश के जालौन जिले की पश्चिमोत्‍तर सीमा पर पंचनदा (यमुना, चंबल, सिंध, पहूज एवं क्‍वांरी नदियों के संगम) से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्‍टेशन उरई है, जो कि यहाँ से लगभग 60 किलोमीटर दूरी पर है। उरई तथा जालौन से जगम्‍मनपुर तक आसानी से बसें मिलती हैं। जगम्‍मनपुर किला समतल भूमि पर 40 फीट गहरा खोद कर बनाया गया है। इसका एक खंड तो भूमि तल से नीचे पानी भरी खाई के बीच में है। यह क्षेत्र धार्मिक एवं दस्‍यु गतिविधियों के कारण प्राय: चर्चित रहत है।

        जगम्‍मनपुर किला विशाल महल है, जो तीन मंजिला है। किले के पूर्वी-पश्चिमी एवं दक्षिणी किनारों से संलग्‍न सटी 100 फुट चौड़ी एवं 40 फुट गहरी जल भरी परिखा है। एक मंजिला भूमि के बराबर तल खंड है और दो मंजिलें भूमि से ऊपर हैं। महल, महल प्राँगण, किला मैदान सब मिलाकर लगभग सात-आठ एकड़ का किला परिसर है। किला का मुख्‍य प्रवेश द्वार उत्‍तर दिशा की ओर है, दरवाजा़ कलात्मक एवं चित्रकारी युक्‍त हैं। इस मुख्‍य दरवाज़े के सामने सुंदर नज़रबाग था, जो अब नष्‍ट हो चुका है। प्रवेश द्वार से प्रविष्‍ट होकर किला प्राँगण में पहुँचा जाता है।किले के दरवाज़े के सामनेयह प्राँगण अति सुंदर है। तीनों ओर परकोटा है, परकोटा भित्ति से संलग्‍नराज्‍य के कार्यालयीन कक्ष है। प्राँगण के मध्‍य में एक बड़ा पक्‍का गोल चबूतरा है, जिस पर डोल ग्‍यारस एवं क्‍वांर मास की चौदस को महल के अंदर से भगवान लक्ष्‍मी-नारायण का डोला आकर रखा जाता है। इस प्राँगण में एक कुआँ है। इसी प्राँगण में एक तोप रखी हुई है।

        महल भवन के चारों कोनों पर षट्-भुजाकार चार पतले आकर की बुर्जे हैं। महल दरवाज़े के फाटक पर पीतल की प्‍लेटें तथा लोहे की कीलें जुड़ी हुई हैं। दरवाज़े के भीतर दीवालों पर चित्रकला का अंकन है। महल के दरवाज़े के अंदर से पश्चिम को एक सुरंग युक्‍त दालान से महल के भीतरी प्रवेश द्वार पहुँचते हैं, जो महल चौक की ओर खुलता है। महल चौक के दक्षिणी भाग में लक्ष्‍मीनारायण का मंदिर है। ऐसी लोक-मान्‍यता है कि यहाँ प्रतिष्ठित प्रतिमा संत तुलसीदास द्वारा स्‍थापित कराई गई थी। माना जाता है कि संत तुलसीदास जी सन् 1578 ई. में पंचनदा आये थे, जिन्‍हें महाराजा जगम्‍मनशाह पंचनदा से जगम्‍मनपुर ले आये थे। उन्‍होंने एकमुखी रूद्राक्ष, दानामुखी शंख, भगवान लक्ष्‍मी-नारायण की मूर्ति एवं खड़ाऊँ जगम्‍मन शाह को दी थी, जो अभी महल (किले) के इस लक्ष्‍मीनारायण मंदिर में सुरक्षित रखी हुई है।

        किला में चौक के चारों ओर बड़े-बडे़ कक्ष हैं, जिनमें कचहरी दरबार हाल, दरबार, खा़स बैठक, राजनिवास, रनिवास और अनेक विशाल कक्ष हैं। किले के पूर्वी भाग में प्रत्‍येक खण्‍डके मध्‍य में भी दरवाजे़ हैं, जो बड़े भव्‍य एवं आकर्षक हैं। किले के ठीक सामने पूर्वी अँचल में खाई के बाहर के मैदान में राजा रूपशाह की शानदार ऊँची कलात्‍मक छतरी है।

        जगम्‍मनपुर रियासत का राजवंश सेंगरवंशीय क्षत्रिय कुल है। राजा जगम्‍मन शाह ने सन् 1544 ई. में यहाँ किला बनवाया तथा उन्‍हीं क नाम से जगम्‍मनपुर नगर का नाम पड़ा। अंग्रेजी सरकार ने जालौन परिक्षेत्र में झाँसी की विद्रोही रानी लक्ष्‍मीबाई की सहायता करने का आरोप लगाकर जगम्‍मनपुर राज्‍य का बड़ा भू-भाग छीन लिया था तथा देकर राज्‍य की एकता शक्ति को विखं‍डित कर दिया था।