जल संबंधी कहावतें/मुहावरे
February 4, 2025
रानी गणेश कुँवरी (1512-1585)
February 7, 2025- इन तालाबों के तल में/संचित हैं सारी बरसातें/मूसलाधार काली रातें/ होठों में ही दब गईं, अनकही रह गईं जो बातें।
- उतरते आषाढ़ में एक नदी ने कुएँ से पूछा क्या हाल है आपके यहाँ पानी का ? खीज कर कुएँ ने जवाब दिया घिरते हैं पर बरसते नहीं कोई हिसाब नहीं है, बादलों की बेईमानी का – रामविलास शर्मा
- रविशंकर के सितार, स्वर भीमसेन के, जाकिर के तबले, संतूर विश्वकर्मा के, चौरसिया की बाँसुरी, कण्ठ लता का, जगजीत के दर्द और हुसैन की कूचियों में जो बहता हुआ है। प्राण-प्राण के मर्म को, राग रंजित करता है। वह पानी ही तो है। संजय पंकज
- मेरे शब्दों को, आपके झिलमिल रंगों को, अमरूद के पेड़ों को, पीली पड़ रही पत्तियों को, तोतों को, उठते हुए घरों को, नायिकाओं को, प्रेम बतियाँ लड़ा रही लड़कियों को, काव्य पाठ कर रहे कवियों को चाहिए पानी।
कुम्हार को, बढ़ई को, मूर्ति बना रहे मूर्तिकार को, मकबूल हैदर हुसैन को, उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ को, जून की दोपहर में झुझलाए पिता को, चाहिए पानी, परन्तु नलों में, कुओं में, तालाबों में, नदियों में, दुःख का गीत गाते नाविक की आँखों में, कहाँ बचा है पानी, इतना कि तृप्त कर सके घर-आँगन सबका। – शहंशाह आलम - दो सख्त खुश्क रोटियाँ कब से लिये हुए पानी के इंतजार में बैठा हुआ हूँ मैं।
- प्रत्येक वस्तु का निर्माण जल से ही हुआ है – ग्रीक दार्शनिक थैलोज (624 ई.पू.)
- प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति के मूल में जल है – जोहान बुल्फांग गेटे (जर्मनी के महाकवि)
- पृथ्वी में पानी के प्रवाह की तुलना, शरीर में नख से शिख तक एवं शिख से नख तक प्रवाहित होने वाले रक्त से की जा सकती है – लियो नार्दो विंची (इटली के वैज्ञानिक 1492-1519 ई.)
- कंचन काया कामिनी, कमल फूल दिन काल। सूख छुहारे हो गये हरे-भरे सब ताल।
बिन पानी मछली मरी, मरे शंख शैवाल। जगह-जगह से फट गये नदियों के रूमाल – इसाक अश्क - जल रूपी जगदीश को सेवत सकल सुजान। ‘केसव’ जोजन जानियै सोरह लाख प्रयान।। – महाकवि केशवदास
- बाँधिने के नाते ताल बांधियत कैसोराय, मारिबे के नाते द्ररिद्र मारियत हैं।
राजा वीरसिंघ के राज जग जीतियत, हारिवे के नाते आन जन्म हारियत है। - देस, नगर, वन, बाग, गिरी, आश्रम सरिता ताल
रवि, ससि, सागर भूमि के भूषन रितु सब काल।
दोहा – ललित लहर खग पुष्प पशु, सुरभि समीर तमाल।
करत केलि पंथी प्रगट, जलचर बरनहुँ ताल ।।सवैया – आपु धेरैं मल औरनि ‘केसव’ निर्मल काय करैं चहुँ ओरैं ।
पंथिन के परिताप हरैं हठि जे तरु तूल तनूरूह तौरैं ।
देखहु एक सुभाउ बड़ी बड़भाग तड़ागनि के पित थोरैं।
ज्यावत जीवन हारिनि को निज बंधन कै जग बंधन छोरैं।– महाकवि केशवदास
दोहा -
- नदियाँ और तालाब हैं, जल के अस आगार।
खेती बाड़ी पेयजल, दोनों के आधार।।
जल है ऐसी संपदा, सदा सहेजी जाय।
परंपरा जल संग्रहण, सबको सदा सुहाय ।।
जल ही जीवन है तभी, है श्रद्धा के जोग।
नदियों को माँ मानकर, पूजा करते लोग।। – एन. डी. सोनी