टीकमगढ़ जिले के तालाब
February 4, 2025जल संबंधी आदर्श कथन
February 4, 2025- नरबदा मइया क्वांरी तो बहै रे क्वांरी तो बहै रे, जैसें बैरइ दूधा की धार हो। नरबदा….
- नरबदा मइया माता तो लगे रे, माता तो लगे रे, तिरबेनी लगे मोरी बैन रे। नरबदा….
- नरबदा मइया ऐसें तो मिली रे ऐसें तो मिली रे जैसें मिल गए मताइ उर बाप रे। नरबदा….
- माँई के रोयें नदिया बहत है बाबुल के रोयें बेला ताल। मोरे लाल…।
- अलगरजी भरे बेलाताल गगर मोरी डूबे ना,
सासो की डूबे, ननद की डूबे, मोरी रई उतराय। गगर मोरी…।
(बेला ताल जैसे बहुतेरे ताल भरे हैं, पर उनके जल में नायिका की गागर नहीं डूबती। उसकी मन गागर बहुत (जल) के सागर में नहीं डूबती।)
- वन के बनवारी बहियाँ न गहो,
किन के ताल किनकी फुलवारी, किनके हँस पियै दोई पानी। बहिया न…
ससुरा के ताल जेठ फुलवारी, देवरा के हँस पियै दोई पानी ……
सूखे हैं ताल, सूखत फुलवारी-देवराजू के हँस चलें ससुरारी ….
भरे हैं ताल, छिटक फुलवारी-देवरानी हँस लौट पियै पानी।…..
- राते बरस गओ पानी, काय राजा तुमने न जानी।
अरा जो भींजो, अटारी भींजी, भींजी है धुतिया पुरानी। काय राजा…..
बाग जो भींजे, बगीचा भींजो, मालिन फिरे इतरानी …..
कुवां जो भर गओ, तला है भर गओ, मातेन फिरे बोरानी…..
गैया जो भींजी बछिया भींजी, नदियन बढ़गओ पानी ….
- अपने देख यार खों लैवीं, पानी के मिस जैवीं….. चौकड़िया फागों की प्रथम पंक्ति
- भर गओ भौजी पानी तोरा, दिल बेदिल भव मोरा……चौकड़िया फागों की प्रथम पंक्ति
- छोड़ दये असनान तलन, छोड़ो पनिया भरवो…….. चौकड़िया फागों की प्रथम पंक्ति
- देखी पनहारिन की भीरें, कुआँ गांव के तीरें……. चौकड़िया फागों की प्रथम पंक्ति
- तीनउ जावे बाहर भीतर, तीनउ पानी भरतीं ……. प्रथम पंक्ति
तीनउ तीन तलन के ऊपर तीनउ संग सपरतीं। चौकड़िया फागों की
- गांव बिगारे रंडी ने उर काई ने बिगारे ताल।
माहिल भूपति की चुगली से राजा बिगर गओ परमाल ।। आल्हा …
- जग में को पानी की सानी, सब चीजें हरयानी।
ई पानी से प्रगट भये हैं, ऋषि मुनी और ज्ञानी।
पानी से तरवर (तरुवर) सीसेंतें, तरवाह. ……. जाय समानी ।।
बेपानी बेकार होत है, मानुष की जिन्दगानी।
पानी से सब होत ‘नारायन’ कहाँ से पैदा पानी।
- जब रगपत दूला देसों हो आये, देश रवाने होय भले जू।
जब रगपत दूला गेंवड़े आये, दूब रही हरराय भले जू।
जब रगपत दूला तालों आये, ताल हिलौरें लेय भले जू।
जब रगपत दूला बागन आये फूल रही फुलवार भले जू।
बेला हो फूलो, चमेली हो फूली, केवरा की बास सुहाय भले जू।
जब रगपत दूला कुबला आये, मोह रही पनिहार भले जू।
- जल कस कें भरूँ, जमुना गहरी।
ठाढ़ि भरूँ राजा राम जी देखत हैं
न्यूरि भरूँ छलकै गगरी। जलकस…/
न्यूरि भरू मो लाज लगत है।
बैठ भरूँ भीजूँ सिगरी। जल कस… (बघेली लोकगीत)
- उठो पिया अब मोर भये चकई बोली ताल।
मुख बिरियाँ फीकी पड़ी, सियरी मोतिन माल
पिया उठ जागो, कमल विगसन लागे।