बुन्देलखंड की कृषि-प्रक्रिया निराली ही है। लकड़ी के हल, बखर और कोपर कृषिकर्म में प्रयुक्त स्थानीय उपकरण हैं। बुन्देलखण्ड का कृषक वर्ष में तीन-तीन फसलें तक पैदा कर लेता है। वर्षाऋतु में बोई जाने वाली फसल स्यारी या कतकी कही जाती है, जिसमें ज्वार, धान, उर्द, मूँग, कोदों, समाँ, लठारा, कुटकी, राली और तिली बोई जाती है। यह मोटे अनाज कहे जाते हैं तथा सैकड़ों वर्षों तक बिना घुन सुरक्षित रखे रहते हैं। दूसरी फसल उन्हारी या चैत की कही जाती है, यह कार्तिक, अगहन में बोई एवं चैत में काटी जाती है। इसमें गेंहूँ, चना, जौ, मसूर, तेवड़ा, अलसी, सरसों और सेउआँ पैदा किया जाता है। इस फसल को जाड़ा एवं पानी अधिक चाहिये, होता है। तीसरी फसल जायज की गर्मी में बोई जाती है। मूँग, उर्द, कलींदा, कुम्हड़ा, चीमरी और जिठऊ सठिया धान पैदा की जाती है। यह फसल विषेशकर तालाबों और नदियों में की जाती है।
बुन्देलखण्ड की कृषि प्रकृति एवं मानसून पर निर्भर है। अनावृष्टि अकाल तो यहाँ किसी न किसी क्षेत्र में पड़ते ही रहते हैं। 4 से 6 या 10 वर्ष में एक भयंकर अनावृष्टि अकाल आता ही है जिससे यहाँ का कृषक सदा गरीबी के गर्त में पड़ा रहता है। नदियों का भारी पानी व्यर्थ ही बह जाता है। बाँधों के द्वारा उसे रोककर कृषि कर्म के विकास तथा सिंचाई में लाने के प्रयत्न भी नहीं किये गये।
बुन्देलखण्ड के मध्यक्षेत्र का कृषक तो विशेष आर्थिक तंगी का जीवन व्यतीत करता रहा है, क्योंकि उपजाऊ भूमि तो जागीरदारों, जमींदारों अथवा प्रतिष्ठित लोगों के आधिपत्य में रही हे तथा अवशिष्ट रॉकड़ और ककरीली सीमान्त भूमि छोटी जोत के बहुसंख्यक किसानों के पास रही है। एक ओर तो अनुपजाऊ सीमांत भूमि पर लगान स्थापित कर राज्य सरकार कृषकों का शोषण करती रही तथा दूसरी ओर बड़े भूमिस्वामी छोटे किसानों को अपनी भूमि संविदा लगान अथवा साहूकार भी सवाई की दर पर बीज देकर किसान की गरीबी में विकास करते रहे, तिस पर भी चोरों, लुटेरों, डाकुओं एवं गैर क्षेत्रीय सत्ता पिपासुओं की बलात् लूट ने निरंतर गरीबी में अभिवृद्धि की।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।