
कृषि
August 9, 2024
सरितायें
August 9, 2024बुन्देलखंड का अधिकांश भाग, विशेषकर मध्य की पठारी भूमि वनाच्छादित है। यहाँ के जंगल वन-सम्पदा से भरपूर हैं। इमारती एवं जलाऊ लकड़ी के अतिरिक्त औद्योगिक लकड़ी भी यहाँ उपलब्ध है। सागौन, सेजा, कुरौ, धवा, करधई आदि के अतिरिक्त, बाँस, सलैया, गुंजा, छेवला, कर्रा, हर्रा, बहेड़ा, आँवला भी बहुतायत में प्राप्त हैं। खैर के जंगल भी खूब हैं। आम, जामुन, खिरनी, अचार, तंदू, बेर, महुआ, मकोर जैसे फलदार वृक्ष यहाँ के वनों में भारी संख्या में है। औषधियों वाली जड़ी-बूटी और घास भी प्राप्त होती है।
वन वृक्ष बुन्देलवासियों के जीवन साथी है। फलों को खाकर कितने अधिक लोग जीवन गुजार देते हैं कि गणना भी कठिन है। अकाल के समय तो यहाँ के लोग वनोपज से अपने प्राणों की रक्षा करते हैं। इसीलिये यहाँ कहावत है कि ”मेघ करौंटा लै गऔ, इन्द्र बाँघ गऔ टेक। बैर मकौरा यौ कहै, मरन न पावे एक”।। वन फल खाकर भी लोग अपना अकाल का समय काट लेते हैं और प्रसन्न रहते हैं। ग्रामीण अंचलों के बच्चे गाते सुने जाते है कि ”महुआ मेवा, बेर कलेवा, गुलगुट बनी मिठाई”।