
मध्ययुग का उत्कर्ष-काल (1401-1840 ई.)
August 12, 2024
आधुनिक काल (1911-1986 ई.)
August 12, 202417वीं शती के बाद सौ-सवा सौ वर्ष तक लोकनाट्य परम्परित स्थैर्य से जकड़ा रहा, क्योंकि लोक श श्रंगारपरक कविता की रंगीनी और रसिकता में उलझा रहा। 1840 ई. में जैतपुर नरेश पारीछत का अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध और 1840 ई. से 1857 ई. तक की बुन्देलों हरबोलों की कविताई राष्ट्रीयता के साक्ष्य हैं। लोककवि ईसुरी भी लोकचेतना के उत्थान का प्रतिनिधित्व करते है।
उन्नीसवीं सदी के चौथे चरण के बाद स्वाँग के विषय नए सन्दर्भों से जुड़े और रामलीला मे राक्षसों के संहार तथा रासलीला के कंस-वध जैसे प्रसंगों को और अधिक बल दिया गया। नृत्यपरक लोकनाट्यों में धार्मिक कथाओं के स्थान पर प्रेमकथाएँ मंचित की जाने लगीं जिससे समाज में प्रेम के नए अंकुर फूटें। सामाजिक समस्याओं की अभिव्यक्ति के लिए जातिपरक लोकनाट्यों में जातीय भेदभाव, द्वेष आदि को स्थान दिया जाने लगा। मतलब यह है कि पुनरुत्थान की वैचारिकता के लिए बुन्देली लोकनाट्य काफी लचीले होते गए और उन्होंने नवजागरण के दायित्व का निर्वाह किसी-न-किसी रूप में अवश्य किया।