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September 23, 2024महर्षि अत्रि
October 5, 2024वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य भी एक अग्रणी वैदिक ऋषि थे। जिनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (तदनुसार 3000 ई.पू.) को काशी में हुआ था। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। देवताओं के अनुरोध पर इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे। उन्होंने अगस्त्य संहिता नामक ग्रंथ की रचना की और कालान्तर में इस ग्रंथ की प्राचीनता पर हुए अनेक शोध में इसे सही पाया गया। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं। अगस्त्य संहिता को लिखे जाने का कालखंड 3000 ई.पू. का माना जाता है।
इस ग्रंथ में विद्युत कोश (बैट्री) के निर्माण की विधि विस्तार से बतायी गयी है, बल्कि इस बात का भी उल्लेख है कि किस प्रकार पानी को उसकी घटक गैस यानी ऑक्सीजन और हाईड्रोजन में विभाजित किया जा सकता है। आधुनिक बैट्री अगस्त्य मुनि द्वारा वर्णित बैट्री से काफी मिलती जुलती हैं। अगस्त्य मुनि के अनुसार-
“संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभिः काष्ठापांसुभिः ॥
दस्तालोष्टो निधात्वयः पारदाच्छादितस्ततः।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम् ॥“
अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु लगाएँ, ऊपर पारा तथा दस्त लोष्ट डालें, फिर तारों को मिलायेंगे तो उससे मित्रावरुण शक्ति (विद्युत) का उदय होगा। आधुनिक युग में पश्चिम में बिजली का आविष्कारक माइकल फैराडे ने किया था। विद्युत बल्ब के आविष्कारक थॉमस एडिसन ने अपनी किताब में लिखा है कि “एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस श्लोक का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे विद्युत बल्ब बनाने में मदद मिली।” अगस्त्य संहिता में आधुनिक समय में प्रयोग में लायी जाने वाली तकनीक इलेक्ट्रोप्लेटिंग (विद्युत लेपन) का भी विवरण मिलता है अतः उन्हें विद्युत कोष (बैट्री) द्वारा सोना, चाँदी, ताँबा आदि धातुओं पर परत चढ़ाने की विधि का आविष्कारक भी माना जाता है।
अग का अर्थ है पर्वत और अगस्त्य शब्द की व्युत्पत्ति है पर्वत का स्तंभन करनेवाला। यह ख्यात है कि महर्षि अगस्त्य ने विंध्य पर्वत का स्तंभन किया जिसके कारण उत्तर से दक्षिण से आवागमन प्रारंभ हो सका। वनवास के समय श्रीराम इनके दर्शन के लिए आये थे तब महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को सोने तथा हीरों से सुशोभित, सुंदर धनुष, अमोघ बाण, अक्षय तूणीर तथा स्वर्ण के खड्गकोष सहित स्वर्ण का खड्ग दिया था।
महर्षि अगस्त्य ने समुद्र का प्राशन कर समुद्र में रहने वाले कालकेयों का संहार किया जिन्होंने समाज को त्रस्त कर रखा था। महर्षि अगस्त्य का संबंध प्रायः नित्य दक्षिण से आता है। लंका के साथ भी इनका संबंध आता है। इन्हें लंकावासी भी कहा जाता है। महर्षि अगस्त्य को दक्षिण का स्वामी तथा विजेता कहा जाता है। तमिल व्याकरण का प्रवर्तक भी महर्षि अगस्त्य को माना जाता है। अगस्त्य के मंदिर जावा, बाली आदि द्वीपों में मिलते हैं। महर्षि अगस्त्य के अगस्त्यगीता, अगस्त्यसंहिता, शिवसंहिता, द्वैधनिर्णयतंत्र ग्रंथ भी प्राप्त होते हैं।