महर्षि अगस्त्य
October 5, 2024महापण्डिता अपाला
October 5, 2024सम्पूर्ण सप्तर्षि अत्रि (अ + त्रि ) का अर्थ है जो तीनों गुणों – सतगुण, रजगुण एवं तमगुण से परे हो। इसी कारण इन्हें सम्पूर्ण सप्तर्षि कहा जाता है। ऋषियों में श्रेष्ठ अत्रि मुनि अन्य सप्तर्षियों की भाँति परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र थे जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के नेत्र से हुई बताई जाती है। इन्होंने ने ही इंद्र, अग्नि, वरुण और अन्य वैदिक देवताओं के लिए ऋचाओं की रचना की थी। महर्षि अत्रि के विषय में सर्वाधिक वर्णन ऋग्वेद में किया गया है। ऋग्वेद का पंचम मंडल अत्रि मंडल, कल्याण सूक्त, स्वस्ति सुक्त अत्रि द्वारा रचित हैं। यह सूक्त मांगलिक कार्य, शुभ संस्कारों तथा पूजा अनुष्ठान में पाठ किया जाता है। महर्षि अत्रि का पुराणों और महाकाव्य जैसे रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है।
अत्रि गोत्र भार्गव ब्राह्मणों की शाखा है। ब्राह्मणों में श्रेष्ठतम महर्षि अत्रि का मूलकर्म शिक्षण और तप करना था। महर्षि अत्रि को त्याग, तपस्या और संतोष से युक्त ऋषि कहा जाता है। अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये सिद्धांत आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही अत्रि संहिता की रचना हुई। महर्षि अत्रि को मंत्र की रचना करने वाला और उसके भेद को जानने वाला भी कहा गया है। अपनी त्रिकाल दृष्टा शक्ति से इन्होंने धार्मिक ग्रंथों की रचना भी की और साथ ही इनकी कथाओं द्वारा चरित्र का सुन्दर वर्णन किया गया है। महर्षि अत्रि का बौद्धिक, मानसिक ज्ञान, कठोर तप, उचित धर्म आचरण युक्त व्यवहार एवं मन्त्रशक्ति के जानकार के रूप में सदैव स्मरण किया जाता है।
महर्षि अत्रि ग्रहण के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सबसे पहले ग्रहण संबंधी ज्ञान हुआ। ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अत्रि को ग्रहण का बेहतर ज्ञान था। महर्षि अत्रि ने फिर ग्रहण का ज्ञान बाकी लोगों को दिया। उन्होंने खगोल शास्त्र के रहस्य खोले। आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों तक के अध्ययन में वो समय से बहुत आगे थे। धरती पर कृषि की उन्नति के लिए अत्रि ऋषि को जाना जाता है। आज भी चित्रकूट की धरती को उपजाऊ बनाने में उनके प्रयासों को देखा जा सकता है।
अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। आयुर्वेद और प्राचीन चिकित्सा क्षेत्र सदैव ऋषि अत्रि का आभारी रहेगा। इन्होंने आयुर्वेद में अनेक योगों का निर्माण किया। अत्रि का प्राचीन चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमारों ने ऋषि अत्रि को वरदान प्रदान किया था। ऋग्वेद में भी इस विषय के बारे में विस्तारपूर्वक एक कथा का उल्लेख भी मिलता है। अश्विनी कुमारों ने ऋषि अत्रि को यौवन प्राप्ति का वरदान दिया था और उन्हें नव यौवन प्राप्त कैसे किया जाए इस विधि का ज्ञान भी दिया था।
महर्षि अत्रि कृत दो ग्रंथों का उल्लेख मिलता है- अत्रि संहिता और अत्रि स्मृति। अत्रि संहिता में नौ अध्याय तथा चार सौ श्लोक हैं। साथ ही लध्वंगि स्मृति, बृहदागेय स्मृति ग्रंथों की जानकारी भी मिलती है। वास्तुशास्त्र पर एक ग्रंथ की रचना भी महर्षि अत्रि ने की थी। महर्षि अत्रि की वेदों के प्रति गहरी आस्था थी। अत्रि संहिता एक विख्यात ग्रंथ है। यह कर्त्तव्य पालन की सीख देता है। महर्षि अत्रि ने ‘अत्रि संहिता’ में बहुत से ऐसे विषयों पर विचार किया है जो मनुष्य के सामाजिक एवं आत्मिक उत्थान से संबंध रखती है। संहिता में योग और नैतिकता के विषय में भी चर्चा की गई है।