ग्रन्थ – रामविलास, रस रत्नावली, जनक पचीसी, नयनपचासा
मंडन मिश्र का जन्म जैतपुर (हमीरपुर) बुन्देलखण्ड सम्भाग में हुआ था। आप राजा मङ्गदसिंह के आश्रित दरबारी कवि थे। आप की भाषा व्यंजनाओं से परिपूर्ण है। मंडल मिश्र भी ओज के कवि रहे।
१. “बैरी के निसान सुनि विरचि विरचि वेष
नाहर से लपकि पुकार लागे वीर के।
मंडन अनूप शिर मौन बाने बांधे सबै,
लोहे के गहैया और सहैया भारी मीर के।।
होन लगी महामार तुपकै चलन लागी,
तोप दरबारे, अरु रेले चलें तीर के।
दौरि-दौरि देखबै को आंख चली लोगन की,
हाथ चले मंगद के पांव चले मीर के।”
२. फुटकल रचना –
“अलि हौ तौ गई जमुना जल को,
सोकहा कहाँ वीर विपत्ति परी।
घहराय कै कारी घटा उनई,
इतनेई में गागर सीस धरी।।
रपटयो पग घाट चढ्यो न गयौ।
कवि मंडन है कै बिहाल गिरी।
चिरजीवहुँ नन्द कौ वारो अरी।
गहि बांह गरीब ने ठाड़ी करी”
३. “खेलन को रस छोड़ि दियौ दिन द्वैकते,
राति कहां बसंती हो।
मंडन अङ्ग सम्हारन कोनित,
चंदन केसर लै घिसती हौ।
छाती निहारि-निहारिक छू अपनी,
तोतन कौ अचरा उधरौ,
कहो भोतन ताकि कहा हंसती हौ।”