मंडला
January 31, 2025होशंगाबाद
January 31, 2025रायसेन एक प्राचीन नगर है, जो स्वतंत्रता के पूर्व तक भोपाल रियासत का अधीनस्थ भू-भाग रहा है। रायसेन की प्राचीन विरासत के रूप में रायसेन का किला विद्यमान है। मध्य काल में इस दुर्ग की गणना विशेष दुर्गों की श्रेणी में होती थी। अकबर के शासनकाल में उज्जैन सूबा के अंतर्गत यह सरकार का मुख्यालय था।
रायसेन दुर्ग में स्थित बादल महल, राजा रोहणी का महल एवं अतरदार के महल को हिन्दू स्थापत्य कला का माना जाता है। दुर्ग में दीवालों पर अनेक शिलालेख चस्पा हैं। जिनमें से 1-2 फारसी लिपि को छोड़कर शेष सभी नागरी लिपि में हैं। दुर्ग में चार तालाब एवं 48 प्राचीन कुएँ हैं। इनसे दुर्ग में निवास करने वाले की जल की व्यवस्था होती थी।
जैसा पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि वर्तमान रायसेन जिले का भू-भाग स्वतंत्रता के पूर्व तक भोपाल रियासत का भाग था। इस भू-भाग के पश्चिमी भाग को नर्मदा नदी एवं पूर्वी भाग में बेतवा नदियों के साथ-साथ अन्य अनेक छोटी-छोटी नदियाँ हैं। गाँवों में छोटे-छोटे निस्तारू तालाब हैं। इस कारण इस भू-भाग में प्राचीन तालाब न के बराबर रहे हैं। आजादी के बाद सिंचाई व्यवस्था हेतु अनेक डेम बनवाये गये हैं।
परमार राजाभोज धार ने एक विशाल तालाब का निर्माण भोजपुर में (1010-1055 ई.) कराया था। ऐसा कहा जाता है कि होशंगशाह जो मालवा का शासक (1405-34 ई.) था, ने इसे जानबूझकर इसके बाँध को तुड़वा दिया था। तालाब के बाँध के अवशेष अब भी विद्यमान हैं।
रायसेन जिले का विश्व प्रसिद्ध भीमबैठका प्राचीनतम शैलाश्रयों हेतु जाना जाता है। यहाँ पुरातत्व की विपुल मात्रा में सामग्री प्राप्त हुई है। इसमें पत्थरों की नींव के ऊपर ईंटों से बने हुए कुँओं के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह अवशेष गौहरगंज से 22 कि.मी. दूर बेतवा के तट पर स्थित ननदुर (Nandur) ग्राम में प्राप्त हुए हैं।
(संदर्भ – रायसेन जिला गजेटियर, पृ. 351 एवं 360)