
महर्षि पाराशर
October 7, 2024
त्रिकालज्ञ महर्षि वेद व्यास
October 7, 2024ऋषि अत्रि के प्रभाव व प्रयास का परिणाम यह हुआ कि उनकी सुपुत्री विश्ववारा ने वेद पर अत्यधिक कार्य किया और उसने ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के सूक्त संख्या 91 पर अत्यधिक कार्य किया। ऋचा संख्या 1 से लेकर 7 तक खूब चिन्तन मनन किया तथा इतना अधिक कार्य किया कि उसका कार्य अन्यतम हो गया। इसका ऋग्वेद के अष्टम मण्डल सूक्त 91 की ऋचा 1 से 7 तक के सब मन्त्रों की उसे ऋषि स्वीकार किया गया और आज तक वह इन मन्त्रों की ऋषिका मानी जाती है। इस कन्या का नाम विश्ववारा था जिसकी वेद में अत्यधिक रुचि थी। मेधावी तो यह थी ही, इसकी विशेष रुचि अतिथि सत्कार के सम्बन्ध में थी। इसलिए इसने ऋग्वेद के अतिथि सत्कार सम्बन्धी मन्त्रों को पकड़ा तथा इन मन्त्रों पर कार्य करने लगी।
उसने इन मन्त्रों पर भरपूर चिन्तन किया, भरपूर मनन किया तथा इन मन्त्रों को पूरी तरह से आत्मसात् कर लिया। उसके इस चिन्तन-मनन, उसके इस पुरुषार्थ का यह परिणाम हुआ कि उसने ऋग्वेद के पाँचवें मण्डल द्वितीय अनुवाक के अठ्ठाइसवें सूक्त का साक्षात् दर्शन करते हुए इसके गहन रहस्यों से साक्षात् किया, इन्हें समझा तथा इन की विषद् व्याख्या की। इस कारण इसे भी अपाला की ही भाँती इस सूक्त का ऋषि पद प्राप्त हो गया।
विश्ववारा ने अपने प्रयोगों के द्वारा जाना कि किस विधि से एक स्त्री को अपने घर आये अतिथि का सावधानी पूर्वक सत्कार करना चाहिए। अतिथि सत्कार के साथ ही एक अन्य रहस्य से भी इस विश्ववारा ने पर्दा उठाते हुए स्पष्ट किया कि यज्ञ के लिए कौन-सी तथा कैसे पदार्थ दिए जाएँ तो इस के क्या परिणाम निकलेंगे। उसने यह भी बताया कि यज्ञ में विभिन्न उपयोगों के लिए कौन-कौन सी सामग्री का प्रयोग किया जाए, जिस से हमारा यह यज्ञ का कार्य, यज्ञ का उद्देश्य सिद्ध हो। इसके साथ उसने इस तथ्य को भी भली-भाँति समझ कर स्पष्ट किया कि अपने पति के प्रजापत्य अग्नि की भी रक्षा पत्नी को ही करनी चाहिए। जब वह पति के प्रजापत्य की रक्षा करती है तो वह उत्तम सन्तान की अधिकारी भी बन जाती है।
ऋग्वेद में एक नहीं कई ऋचाएँ हैं जिन्हें स्त्रियों ने रचते हुए कई सिद्धांत रच दिये हैं एवं जब कहा जाता है कि स्त्री को भारतीय संस्कृति में परदे के पीछे रखा जाता था या बन्धनों में बाँधा जाता था वह भी विश्ववारा के माध्यम से असत्य प्रमाणित होता है। यह भी कहा जाता है कि अतिथियों के आगमन पर स्त्रियों के लिए पृथक स्थान प्रदान किया जाता था, वह इस मंडल के 28वें सूक्त के प्रथम मन्त्र से ही खंडित हो जाता है जिसमें अग्नि देव की आराधना करते हुए ऋषिका विश्ववारा का उल्लेख है, कि अग्रि का जओ तेज है वह आकाश तक अपनी ज्वाला फैलाएँ है और विदुषी स्त्री विश्ववारा विद्वानों का सत्कार करते हुए यज्ञ कर रही है। विश्ववारा के मन्त्र जहाँ सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करते है वहीं वह इस तथ्य को भी प्रदर्शित करते है कि उस समय स्त्रियों को मास के चक्र का ज्ञान था कि तीस दिनों का एक मास होता है।
काल गणना का ज्ञान भी उस समय की स्त्रियों को था। सार्पराज्ञी इस तथ्य को पूर्णतया स्थापित करती हुई ऋषिका है कि उस समय की स्त्रियों को कविता लिखते समय खगोलशास्त्र, काल गणना एवं पर्यावरण की जानकारी थी। सूर्य के विषय में जो तीन मन्त्र लिखे हैं, वह स्त्री के चेतना संपन्न होने की निशानी हैं। वह इस बात का भी प्रमाण देते हैं कि स्त्रियों के मध्य इस प्रकार के संवाद दैनिक जीवन का अंग होते होंगे। इस बहाने यह सम्पूर्ण स्त्री विमर्श की नींव रखते हुए सूक्त हैं कि स्त्रियाँ वैज्ञानिक दृष्टि रखती थीं। उनमें जीवन के सत्य और जीवन के तत्व को समझने की शक्ति थी। वह इस बात को जानती थीं कि जीवन के लिए जितना आवश्यक जल है उतना ही आवश्यक है सूर्य। यह जो विवेचना की शक्ति और स्त्रियों का अंतर्ज्ञान था विश्ववारा जैसी वैदिक विदुषियों ने उसे नई ऊँचाइयाँ प्रदान की।