
महान् चिकित्सक आत्रेय
October 7, 2024
ऋषिका विश्ववारा
October 7, 2024महर्षि पराशर एक वैदिक न सूक्तदृष्टश, स्मृतिकार, आयुर्वेद तथा ज्योतिषशास्त्र के प्रवर्तक ऋषियों में मान्य है। वे भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तकों में अग्रगण्य हैं। महर्षि प्रोक्तं ग्रंथों में केवल इन्हीं का सम्पूर्ण ग्रन्थ बृहत्पराशरहोराशास्त्र नाम से उपलब्ध हैं। अन्य प्रवर्तक ऋषियों के वचन तो इतस्ततः मिलते हैं, लेकिन किसी सम्पूर्ण ग्रंथ के अद्यावधि दर्शन नहीं हैं। यह बात पराशर के मत की सर्वव्यापकता व सार्वभौमिकता का एक पुष्कल प्रमाण है। पराशरहोराशास्त्र की गुणग्रहिता व सम्पूर्णता के कारण ही इनकी यह रचना सर्वत्र प्रचलित है। ज्योतिष शास्त्र के सभी ग्रंथों पर यदि दृष्टि डाली जाये तो अनुभव होता है कि परवर्ती आचार्यों के मंतव्यों की मूल भित्ति पराशरीय विचार ही हैं। एक प्रकार से पराशर के ज्योतिषीय विचारों का प्रस्तार ही अवान्तर ग्रंथों में न्यूनाधिक रूप से देखने में आता है।
जिस प्रकार वेदों का प्रमाण स्वतः सिद्ध है, तीर्थ का जल व अग्नि स्वयं शुद्ध है, उन्हें शुद्ध करने, प्रमाणित करने व ग्राह्य बनाने के लिए किसी पवित्रीकरण की आवश्यकता नहीं होती उसी प्रकार पराशर के वचनों को प्रमाण रूप में उद्धृत करने की सर्वत्र परिपाटी है। पराशरीय कथनों व निर्णयों को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य ऋषि वाक्यों की आवश्यकता अकिंचित्कर ही है। पराशर सम्प्रदाय या पराशरीय विचारधारा, विचारों की उस गंगा के समान है, जो समस्त भारत भूमि को अपने अमृत से आप्लावित करती हुई अपनी चरम गति या मंजिल पर पहुँचती है और अवान्तर अनेक विचारधारा रूपी नदियों को भी अपने भीतर समेटती चलती है। अतः पराशर मत गंगानद है तो अन्य विचारधाराएँ या मत्त नदियाँ ही है। यह एक अविच्छिन्न रूप से बहने वाली, सदानीरा नदी है। जैमिनीय मत की सभी बातें पराशर सम्प्रदाय में सर्वतोभावेन समाहित हो गयी है, इसका आभास पराशरहोराशास्त्र को देखने से मिल जाता है।
वराहमिहिर जैसे आचार्य भी पराशर के सिद्धांतों के सामने नतमस्तक हैं। वे अपने ग्रंथों में पराशर मत का उल्लेख करके उसका अंगीकार करते हैं। अतः पराशर सम्प्रदाय सम्पूर्ण भारत में चतुर्दिक, पुष्पित व पल्लवित होता रहा है तथा ज्योतिष के विषय में उनके द्वारा रचित बृहदपराशरहोराशास्त्र अंतिम निर्णायक ग्रंथ माना जाता है। पराशर, फलित ज्योतिष के आधार स्तंभ हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। महर्षि पराशर के अनेक ग्रंथ मिलते हैं – पराशर संहिता, वृहत पराशर, होरा शास्त्र, पाराशर्य कल्प, लघु पाराशरी, पराशर वास्तुशास्त्र, पराशर केवलशास्त्र, पराशर स्मृति, पराशर गीता आदि। पराशर का काल महाभारत काल के लगभग होना अनुमित है। कलियुग नामक कालखण्ड के प्रारम्भ में होने के कारण उत्तरोत्तर बलियस्त्व के सिद्धांत से कलियुग में पराशर मत की सर्वोपरि मान्यता स्पष्ट है।