
देवगढ़
July 26, 2024
बानपुर
July 26, 2024स्थिति
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में, ग्राम सेरोन स्थित जैन क्षेत्र, मध्य रेल के मुख्य ललितपुर स्टेशन से लगभग 18 कि.मी., दैलवारा से 7 कि.मी. और जखौरा स्टेशन से लगभग 10 कि.मी. दूर स्थित है। क्षेत्र के निकट ही खैड़र नदी प्रवाहित है।
इतिहास
सेरोन क्षेत्र प्रख्यात कला तीर्थ देवगढ़ के निकट ही है। मूर्तिकला के स्थापित शिलालेखों में भी दोनों में मात्र पैंतीस वर्ष का अंतर माना जाता है। देवगढ़ में प्राचीन लेख वि.स. 919 का है और सेरोन में उपलब्ध एक बड़े शिलालेख की प्रथम पंक्ति में वि.सं. 954 और द्वितीय पंक्ति में सं. 1005 का उल्लेख मिलता है। इससे अनुमान है कि यहाँ की कुछ मूर्तियाँ गुप्तोत्तर काल की हैं।
इतिहासकारों द्वारा सेरोन तीर्थ की स्थापना का समय भोज वंशीय राज्य काल माना जाता है। प्रचलित किंवदंती के अनुसार तत्कालीन ख्यात बुन्देलखण्ड के सात भोंयरों (भू-गृहों) में से एक सेरोन में है।
पुरातत्व
सेरोन तीर्थ का प्राचीन नाम शीतलगढ़ रहा है। इस दृष्टि से आस-पास स्थित ‘गढ़’ शब्द की सार्थकता इसे पठार पर स्थित होने के बावजूद भी अपेक्षाकृत ठंडा होने जैसे तर्क दिये जाते हैं। जो भी हो यहाँ स्थित एक विशाल बावड़ी और प्राचीन वट वृक्ष बटोहियों को तो शीतलता आज भी प्रदान करते हैं। विशेष रूप से मूल नायक शांतिनाथ की विशाल प्रतिमा के चरणों में बैठकर दर्शनार्थी को जो आत्मीय शांति मिलती है उससे अध्यात्म की शीतलता मिलने के कारण शीतलगढ़ शब्द की सार्थकता सिद्ध होती है।
तीर्थ के वर्तमान स्वरूप में एक 200 वर्ष पुराने परकोटे के अन्दर मूल जिनालय तीर्थकर शांतिनाथ का है। 18 फुट उत्तुंग और 4 फुट 7 इंच चौड़ी खड्गासन तीर्थंकर शांतिनाथ की भव्य प्रतिमा के कतिपय खण्डित अंगों को पुनः सुधारा गया पर इसके प्रभाव में कोई अन्तर नहीं आया। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर अंकित 12 राशि-देवताओं, दांये बांये सहस्रकूट चैत्यालय और पध्य में तीर्थंकर का अंकन भव्य है। भोंहरे के अन्दर दर्शन करना अपने आप में एक विनम्र भाव उत्पन्न करता है।
थोबी की पौर
सेरोन स्थित विशाल बट वृक्ष के बाँयी ओर एक बड़ा कलापूर्ण पाषाणी दरवाजा है इस पर कलात्मक मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। आसपास फैली मूर्तियाँ यहाँ स्थित मंदिरों के ही भग्नावशेष हैं जिसे अब लोग धोबी की पौर से जानते हैं।
बैठे देव
एक सिर विहीन किन्तु साढ़े छः फुट ऊँची और 4 फुट की वेदिका पर स्थित सबसे बड़ी यह पद्मासन प्रतिमा यहाँ ‘बैठे देव’ नाम से जानी जाती है। लोगों में इस प्रतिमा के प्रति आज भी अगाध श्रद्धा है।
यहीं सती माता की बावड़ी है जिसका शिलालेख बतलाता है कि इसकी मरम्मत संवत् 1451 में कराई गई थी।
राजा भोज के वंशजों का एक शिलालेख वि.सं. 919 का यहाँ उपलब्ध है इसके बाद ही चंदेलों का बुन्देलखण्ड में उदय हुआ था।
सेरोन में पद्मावती, ज्वालामालिनी, सरस्वती और चक्रेश्वरी की सुन्दर और प्राचीन मूर्तियाँ दर्शनीय हैं।
आश्चर्यजनक यह है कि सेरोन में अधिसंख्य मूर्तियाँ तो हैं पर उस क्रम में प्रतिष्ठा लेख कम मिलते हैं।
सेरोन क्षेत्र के आसपास लगभग 42 टीले और प्राचीन मंदिरों के खण्डहरों में पाये गये कलावशेष, यहाँ कम से कम बाइस जैन मंदिरों के होने का स्पष्ट संकेत देते हैं।
सेरोन में आधुनिक संग्रहालय की नितान्त आवश्यकता है और ऐतिहासिक खोज भी, जिससे इस क्षेत्र की पुरातत्विक स्थिति और संस्कृति पर विशेष प्रकाश पड़ सकेगा।