स्वास्थ चर्या

स्वस्थ के लक्षण- जिस व्यक्ति के दोष धातु, मल समानवस्था में हां, आत्मा पांच इंद्रियां (कर्म एवं ज्ञान) मन प्रसन्न व क्रियाशील हो, आत्म बल व अध्यात्मिक शक्ति हो उसे स्वस्थ कहते हैं।

दिनचर्या-

मानव को सूर्यादय पूर्व सोकर उठना, उठकर अपना चेहरा दर्पण में प्रतिदिन देखना व अपने इट (माता, पिता, गुरू, भगवान) का पुण्य स्मरण करें। आज का दिन सर्वोत्तम व्यतीत हो, यह योजना बनावें शौचादि कर्म, दातौन कर मसूढ़ौ की मालिश नीम, बबूल, महुआ, बकोली, अपामार्ग से करें। तदउपरांत गर्म जल से कवल कर गर्म जल पियें अपने नेत्रों को शुद्ध जल अथवा त्रिफला जल से सींचें व साफ करें दूध पीकर व्यायाम लगभग 30 मिनिट अवश्य करें। (पैदल चलना, साईकिल, तैरना, कुश्ती या अन्य) तथा योग, प्राणायाम व आसनों का प्रयोग करें। गर्म जल से स्नान ले। गर्म मौसम में शीतल जल का भी प्रयोग कर सकते है। प्रतिदिन पूजन देव दर्शन अवश्य करे। भोजन पर्याप्त करें। समय हो तो विश्राम करें। ज्यादा तंग कसे कपड़े न पहनें ऋतु अनुसार वस्त्र धारण करें। अच्छे स्वास्थ्य हेतु हमेशा प्रसन्न चित्त व हंसना आवश्यक है। मद्यपान, धूम्रपान करना सदा हानिकारक होता है। सोने के पूर्व दूध अवश्य पियें, रात्रि में अल्प व पाचक भोजन करें।

रात्रिचर्या-

रात्रि में यदि आप भ्रमण करते हैं तो वृक्षां के नीचे न जावें,पैरों में प्रायः जूते पहनें। छड़ी या डंडा हाथ में रखें। दिन के श्रम के पश्चात् तत्काल विश्राम न करें। इससे शक्ति छीण होती है। विश्राम की पूर्ति सदा गंभीर (गाढ़) निद्रा हैं। रात्रि भोजन सांय 6-7  बजे तक अवश्य कर लें। भोजन ताजा हल्का पाचक गरिष्ठ न होकर अल्प मात्रा में सेवन करें। संभोग का समय रात्रि को उचित माना गया है। सोने से पूर्व दूध पियें, भोजन के बाद 200 कदम पैदल चलें।

ऋतुचर्या-

छः ऋतुऐं (शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद एवं हेमंत) होती है।
  1. शिशिर (15 जनवरी से 15 मार्च) माघ फागुन
    1. इस ऋतु में भूख तीव्र व श्रेष्ठ रहती है। खट्टा व रसदार भोजन न करें।
    2. अक्सर स्निग्ध दूध के बने पदार्थ गुड़, गाजर, शहद, त्रिफला, सुगंधित अवलेह खायें।
    3. गर्मी होने पर टहलना व गर्म जल का स्नान, रति सुख चाहने वाले व्यक्ति वाजीकर औषधियां जैसे च्यवनप्राश, शिलाजीत, अश्वगंध, मूसली, शतावर, कौंच इत्यादि के पाक के सेवन करे।
    4. बसंत- (15 मार्च से 15 मई तक) चैत्र -बैसाख
    5. इस ऋतु में प्रायः पाचन बिगड़ जाता है शारीरिक बल भी छीण हो जाता है।
    6. अतः हल्का भोजन करें अधिक मीठा नमकीन व अम्ल वाले पदार्थ न सेवन करें।
    7. मन प्रसंन्न करने वाले स्थल परिवार व मित्रों के साथ भ्रमण करने जावें। दिन में न सोवें।
  2. ग्रीष्म- (15 मई 15 जुलाई तक) जेठ-आषाढ़
    1. सूर्य में तेजी रहने से शरीर का बल कम होता है।
    2. अतः ठंडा जल, गन्ने, मोसंबी, नारियल, अनन्नास, चंदन,खस, ठंडा दूध, छांछ, सत्तू, तरबूज, खरबूज, खीर, आम का पना, स्वच्छ सुपाचित भोजन सेवन करें। नमक पर्याप्त सेवन करें।
    3. सूती सफेद वस्त्र को धारण करें।
  3. वर्षा ऋतु- (15 जुलाई-15 सितंबर) श्रावण-भाद्रपद
    1. यह ऋतु अत्यंत हानिकारक होती है, जठराग्नि व शारीरिक बल अत्यंत मंद हो जाता है।
    2. आहार विहार में संयम रखना। जल उबाल कर पीना। नमी से बचें, हल्के वस्त्र पहनें।
    3. दिन में न सोवें, वर्षा ऋतु को चौमासा भी कहा गया है।
    4. गेंहू, पुराना चावल, मूंग, चावल, चने, मटर, राहर, हरी सब्जी, भिण्डी, कद्दू, लौकी, परवल, तरोई, करेला, नीबू, अदरक, मूली, प्याज, हरीमिर्च, काली मिर्च, हींग राई इत्यादि पाचक भोजन बनावें। मिठाई कम खावें।
    5. जामुन, आम,सेव फल, नारियल पानी, अनन्नास, बेल, बेर, आलू बुखारा इत्यादि सेवन करें।
  4. शरद ऋतु- (15 सितंबर से 15 नवंबर) कुंवार-कार्तिक
    1. इस ऋतु में जठराग्नि तेज व शारीरिक बल मध्यम होता है।
    2. मधुर पौष्टिक, सुपाच्य भोजन करें। ग्रीष्म ऋतु वायु का शरीर में संचय होता है। जवा, जुआर, गेंहू, मूंग, अरहर, मसूर, तरबूज, खरबूज, ककड़ी, पेठा, परवल, लौकी, तरोई, दही, मठा सेवन करे। दूध लस्सी, खसखस, चंदन शर्वत व सत्तू खावे।
    3. मालिश कर धूप में लेटें।
    4. पेट साफ करें।
    5. दिन में न सोये व भूखे भी न रहे।
  5. हेमंत ऋतु- (15 नवंबर से 15 जनवरी तक) माघ- पौष
    1. इस ऋतु में पाचन व शारीरिक बल सर्वोत्तम रहता है। आहार अधिक लें। मोसंबी फल का प्रयोग करें। ठंड से बचावें। व्यायाम करें। उबटन लगावे व मालिश करें।
    2. गुड़, दूध, खीर, हलुआ पौष्टिक भोजन करें।
निद्रा –
  1. निद्रा मानसिक तथा शारीरिक थकान का नाश एवं विश्राम देती है।
  2. निद्रा की अवधि सुनिश्चित स्वस्थ दस बजे रात्रि से प्रातः 4 बजे तक हैं।
  3. निद्रा स्थल स्वच्छ, सुरक्षित, शुद्ध वायु का शयन कक्ष, कीट एवं दंश रहित, बाधा रहित, मनोकूल हो।
  4. निद्रा में ज्ञान, क्रिया एवं अन्य कार्य मौन हो जाते है। अनिद्रा, अतिनिद्रा हानिकारक होती है।
ब्रम्हचर्य-
  1. ब्रम्ह (ईश्वर) चर्य- (चिंतन, अध्ययन, रक्षण) अतः सभी आयु में मन शांत, सात्विक रह कर ब्रम्ह चर्य का पालन करना चाहिए।
  2. अति संभोग अयोग्य मैथुन, अश्लील साहित्य, सत्संग, व्यसन से बचें।
  3. धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति का मूल्य आरोग्य प्राप्ति होना है। अतः इसके मूल स्तंभ (आहार, निद्रा, ब्रम्हचर्य ) होते हैं।
  4. ब्रम्हचर्य ही सुख, समृद्धी, स्वास्थ्य, दीर्घायु प्रदान करता है। ब्रम्हचर्य नौका के समान होता है। इससे ही वीर्य, ओजबल की रक्षा संभव होती है।
  5. ब्रम्हचर्य रूपी तपस्या के द्वारा ही देवताओं ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी।