कृपाराम
July 16, 2024बलभद्र मिश्र
July 16, 2024तुलसीदास
जन्म – सं. १५८९ वि. में श्रावण शुक्ला सप्तमी
मृत्यु – सं. १६८० वि. में श्रावण शुक्ला तीज. शनिवार
जीवन परिचय
विद्वानों में इन तिथियों के विषय में मतभेद है। किन्तु पं. रामचन्द्र शुक्ल प्रभृति विद्वान इनकी जन्म तिथि सही मानते है। जन्म तिथि के विषय में कहा जाता है –
”श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी धरौ शरीर”
वहीं इनकी मृत्यु काशी में हुई। इस विषय में प्रचलित दोहा है –
“संवत् सोलह सौ असी असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला तीज शनि तुलसी तज्यो शरीर।।”
तुलसी का जन्म बुन्देलखण्ड के बांदा जनपद के राजापुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इन्हें घर से त्याग देने की जनश्रुति है। जिसकी पुष्टि स्वयं तुलसी दास ने अपनी कृति कवितावली में भी की है-
“मातु पिता जग जाइ तज्यो, विधिहू न लिखौ कछू भाल भलाई।”
बालक ‘रामबोला’ भटकता-घूमता साधू-संतो के सम्पर्क में आ गया। शिक्षा दीक्षा, पठन-पाठन इसी प्रकार चला। गुरु नरहरिदास ने इसका उद्धार कर राम भक्ति की और उत्प्रेरित किया। यही प्रज्ञा तीर्थ चित्रकूट में उन्होंने वेद पुराण राम काव्यों का ज्ञान प्राप्त किया। तुलसी की विद्वन्ता चारों ओर फैलने लगी। इसी समय इनका विवाह ‘रत्नावली’ से हुआ। किन्तु जनश्रुति है कि आसक्ति भाव के लिये एक बार पत्नी ने इन्हें धिक्कारते हुए ‘राम में आसक्त’ होने की प्रेरणा दी।
“लाज न लागत आपको दौरे आएहु साथ।
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहा कहो मैं नाथ।
अस्थि चर्ममय देह मम तामे जैसी प्रीति ।
तैसी हो श्री राम में, तो काहे भवभीति ।।”
पत्नी के इन ही वचनों को सुन तुलसीदास ने विरक्ति का मार्ग अपना कर राम भक्ति के मार्ग पर चल पड़े। ‘राम’ को प्राप्त करने हेतु तीर्थ-धामों में गये और पूरे भारत में भ्रमण कर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त कर देश को भक्ति मार्ग की दिशा देने के लिये सत्साहित्य की रचना की। भक्त-शिरोमणि तुलसी ने जनता की भाषा में राम काव्य का सृजन कर उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया। इनको उनके आराध्य श्रीराम ने ‘चित्रकूट’ में दर्शन दिये और तुलसी ने सबको रामभक्ति के दर्शन से अभिभूत कर दिया। रामचरित मानस सभी के मोक्ष का सोपान, बन घर-घर में पहुंच गया। तुलसी और ‘मानस’ जन-जन के हो गये। तुलसी ने फिर अनेक ग्रन्थों की रचना की और राम काव्य प्रणेताओं में अद्वितीय बने।
तुलसी की रचनाएं :-
तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ सहित अन्य रचनायें है –
१. रामचरितमानस
२. विनय पत्रिका
३. राम लला नहछू
४. वैराग्य संदीपनी
५. रामाज्ञाप्रश्न
६. जानकी मंगल
७. राम सतसई
८. पार्वती मंगल
९. गीतावली
१०. कृष्ण गीतावली
११. बरबै रामायण
१२. कवितावली।
१३. दोहावली
तुलसी का ‘रामचरित मानस’ संवत् १६३१ वि. में पूर्ण हुआ और कवितावली उनकी अंतिम रचना है। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में साहित्य की सभी विधाओं का समावेश कर सत्य मार्ग द्वारा लोगों के कष्टों को दूर कर धर्म-संस्कृति की स्थापना की।
काव्य शैली –
तुलसीदास ने समन्वय की भावना से राम काव्यों में व्यवहृत सभी काव्य रूपों का अपनी रचनाओं में समावेश किया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने गोस्वामी जी के दस काव्य रूप बताये है –
१. दोहा चौपाई वाले चरित काव्य।
२. कवित्त सवैया पद्धति।
३. दोहों में आध्यात्म और धर्म नीति उपदेश।
४. बरवै छन्द।
५. सोहर छन्द।
७. विनय के पद।
८. लीला के पद।
९. वीर काव्य के लिये छप्पय, तोमर, नाराच पद्धति।
१०. मंगल काव्य।
भाषा –
भाषा की दृष्टि से तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में उस समय की प्रतिष्ठित भाषाओं का प्रयोग किया है। बुन्देली भाषी, चित्रकूट में अधिक समय निवास फिर काशी अयोध्या आदि विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण से ब्रज-अवधी-बुन्देली भोजपुरी का समन्वित रूप इनकी रचनाओं में मिलता है। मंगला चरणों और स्तुति-स्तोत्रों में गोस्वामी जी ने संस्कृत भाषा प्रयुक्त की है। इस तरह जनलोक भाषा के साथ देवभाषा की मान मर्यादा को बनाये रखा।