दतिया गन्तव्य जानकारी
October 8, 2024वीर सिंह जू देव महल
October 8, 2024ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित श्री पीताम्बरापीठ एक पूर्ण जागृत शक्तिपीठ है। जिस प्रकार वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रयोग सिद्ध होते हैं उसी प्रकार श्री पीतम्बरापीठ में मन्त्र सिद्ध होते हैं। ब्रह्मलीन पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनन्त श्री विभूषित स्वामी जी महाराज का सन् 1929 में दतिया नगर में आगमन हुआ था। नगर के दक्षिण दिशा की ओर स्थित प्राचीन सिद्ध स्थान वनखण्डेश्वर को उन्होंने अपनी साधना स्थली के रूप में स्वीकार किया। उस समय यह स्थान एकान्त और उजाड़ था। पूज्यपाद की कृपा से यह स्थल धीरे-धीरे विकसित होता रहा और आज के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में अपना विशिष्ट स्थान बना चुका है।
पूज्यपाद भगवती पीताम्बरा के उपासक थे। वह जीवन पर्यन्त साधना में लीन रहे। भगवती पीताम्बरा के अतिरिक्त अन्य सभी महाविद्याओं की वह उपासना करते थे। पूज्यपाद विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वह व्याकरण, दर्शन तथा तंत्र के अगाध पांडित्य से परिपूर्ण थे। इन शास्त्रों के अतिरिक्त ज्योतिष, वेद-पुराण आदि सभी शास्त्रों में उनकी पूर्ण गति थी। पूज्यपाद की स्मरण शक्ति विलक्षण थी। पूज्यपाद ने सर्वप्रथम भगवती पीताम्बरा माता की स्थापना संवत् 1992 में की। तभी से यह आश्रम पीताम्बरा पीठ के नाम से जाना गया। पूज्यपाद ने भगवती पीताम्बरा विषयक समस्त साहित्य “बगलामुखी रहस्यम्” नामक ग्रन्थ में प्रकाशित कराया। यह ग्रन्थ अपने ढंग का एक ही है। पीठ की स्थापना के पश्चात् तांत्रिक विधि तथा पद्धति के द्वारा अर्चन एवं पूजन का विधान प्रचलित कराया, जो आज तक अविच्छिन्न रूप से चल रहा है। पूज्यपाद का कथन था कि इसी प्रकार अर्चना होती रही तो पीताम्बरा माई यहाँ साक्षात् निवास करती रहेंगी, तथा साधकों का कल्याण होता रहेगा।
पूज्यपाद ने आश्रम के अन्दर एक कक्ष में चाँदी के पत्र पर श्री चक्र की स्थापना की। इसमें कुछ सीमित साधकों को सम्मिलित किया गया तथा यहाँ पर भी शास्त्रोक्त विधि से पूजन-अर्चन का कार्य प्रारम्भ किया गया। भगवान पशुराम शाक्त धर्म के आचार्य हैं तथा भगवती पीताम्बरा के साधकों में अग्रणी हैं। इनके द्वारा विरचित परशुराम कल्पसूत्र ग्रन्थ का शाक्त संप्रदाय में बड़ा आदर है। पूज्यपाद ने इसी कारण भगवान परशुराम का मन्दिर संवत् 2020 में बनवाया तथा उनकी स्थापना की। भगवान परशुराम से सम्बन्धित कुछ साहित्य भी प्रकाशित हुआ है, जिसमें रेणुका तन्त्रम् प्रमुख है। यह ज्ञातव्य है कि भगवान परशुराम के मन्दिर देश में कुछ ही स्थानों पर हैं।
नाद तत्व के अधिष्ठाता महाकाल भैरव की मूर्तियाँ बहुत कम देखने में आती है। पूज्यपाद की प्रेरणा से आश्रम पर महाकाल भैरव की स्थापना की गई। स्थापना के समय से ही प्रति रविवार को सायंकाल में संगीत सभा का आयोजन होता है, क्योकि ये संगीत के देवता भी हैं। राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान ने भगवती धूमावती का आवाहान किया गया था। अनुष्ठान सफल होने के पश्चात पूज्यपाद का विचार था कि भगवती धूमावती की स्थापना करना चाहिए। यह दस महाविद्याओं में सबसे उग्र मानी जाती हैं। इनका एक नाम ज्येष्ठा भी है। इन्होंने भगवान शिव को भी निगल लिया था, इसलिए इनके ध्यान में इनका विधवा रूप है। प्रायः शत्रु पीड़ा से निवृत्ति के लिए इनका अनुष्ठान होता है। यह शत्रु का उच्चाटन कर देती है और भक्तों की रक्षा करती हैं।
तन्त्र शास्त्र में आम्नायों का महत्व सर्वविदित ही है। शिव की स्थापना भी देश में कहीं दिखाई नहीं देती। पूज्यपाद की प्रेरणा से वनखण्डेश्वर के प्राचीन मन्दिर में षडाम्नाय शिव की स्थापना सन् 1980 में की गई। सद्योजात, वामदेव, तत्पुरूष, अघोर, ईशान तथा नीलकंठ शिव की प्रतिमायें दर्शनीय हैं।
तारापीठ की स्थापना –
दतिया नगर के निकट पंचम कवि की टोरिया नामक एक प्राचीन सिद्ध स्थान है। यहाँ पर भैरव जी एवं शंकर जी के प्राचीन मन्दिर हैं। इसी स्थान पर पूज्यपाद की प्ररेणा से भगवती तारा की स्थापना हुई। यह एकान्त स्थान साधना के लिए बहुत उपयुक्त है।
राष्ट्ररक्षा अनुष्ठान यज्ञ –
पूज्यपाद का राष्ट्र के प्रति अगाध प्रेम था। वे राष्ट्रीय कर्तव्य को सर्वोपरि मानते थे। जब चीन देश ने भारत पर आक्रमण किया और भारत की निरन्तर पराजय होती जा रही थी तब पूज्यपाद ने राष्ट्र रक्षा के लिए एक वृहद् अनुष्ठान कराने का निश्चय किया। अनुष्ठान कार्य को प्रचार-प्रसार से पूर्णतः अलग रखा गया। आश्रम में व्यवस्था कार्य में लगे हुए सेवक तथा पण्डित गण ही रहते थे।
जयन्ती कार्यक्रम –
आश्रम पर पूज्यपाद के समय ही वैशाख शुक्ल 3 से 5 तक भगवान पशुराम, भगवती पीताम्बरा माता एवं जगद्गुरु शंकराचार्य की जयंतियों का आयोजन किया जाता है। प्रातः काल पूजन अभिषेक आदि होता है। सायंकाल में विद्वानों के प्रवचन होते है। जयन्तियों में प्रवचन के लिए अखिल भारतीय स्तर के विद्वानों को आमंत्रित किया जाता हैं। पूज्यपाद के ब्रह्मलीन होने के पश्चात भी उसी रुप में जयन्ती का आयोजन भी प्रतिवर्ष होता है। वर्तमान में यह पीताम्बरा पीठ भारत का एक महान तीर्थ स्थल बन गया है, जहाँ देश के विभिन्न भागों से साधक संत, विद्वान, धर्मावलम्बी, भक्त ज्ञान पिपासु जन आदि सतत आते रहते हैं।