
ललितपुर जनपद के हिन्दी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा
June 14, 2024
हमीरपुर की साहित्यिक परम्परा
June 14, 2024संकलनकर्ता- श्री नीरज साहू “विशाल‘
बांदा जिले का अतीत समुज्ज्वल रहा है, वर्तमान झंकृत है और भविष्य की उज्ज्वल सम्भावनाएं हैं, साहित्यिक क्षेत्र में जहाँ उसकी परम्परा वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक काव्य चेतना तक अविच्छिन्न रूप से प्रवहमान है, वहाँ सांस्कृतिक क्षेत्र में भी निरंतर विकसित होती गई है और आज भी इस दिशा में युगीन चेतना के साथ प्रगतिशील है, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का अपना एक महत्व रहा है। बांदा के नबाब अली बहादुर द्वितीय को एक आदर्श स्वातंत्र्य सेनानी के रूप में आगे आने वाली पीढ़ियां स्मृति पटल में बनाए रखेंगी। यहाँ का जनजीवन आंचलिक विशेषताओं, विभिन्न धर्मो का सामन्जस्य, नैतिक आदर्शों के प्रति आस्था से परिपूर्ण है। कलात्मक दृष्टि से भी यह जनपद अपनी अक्षुण्ये परम्परा को सुरक्षित किए हुए है।
जहाँ तक हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रश्न है, बांदा जनपद का अस्तित्व आदि काल में प्रमाणित नहीं हो पाता, इतना अनुमान अवश्य होता है कि यहाँ की वीर वसुधा में अनेक उदात्त योद्धा एवं शूरवीर हुए है। जिनकी गाथाएँ किसी न किसी कवि द्वारा अवश्य गाई गई होगी। जो आदिकाल की सामग्री के नष्ट होने से अप्राप्त है। भक्तिकाल में राजापुर बांदा निवासी महाकवि तुलसी ही ऐसे रत्न हुए हैं जिनके अमर साहित्य से बांदा का नाम भी अमर है। रीतिकाल में रससिद्ध कवि पद्माकर का नाम भी बांदा के लिए गौरव का विषय बना हुआ है।
वे श्रृंगार और भक्ति के उत्कृष्ट कवि थे और उनका आचार्यत्व भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। इसी प्रकार रीतिमुक्त काव्यधारा में घनानंद के समकक्ष काव्यशिल्पी कविवर बोधा भी राजापुर बांदा के निवासी थे इनके द्वारा रचित “इश्कनामा” और “विरह वारीश” ये दो ही कृतियां उपलब्ध हैं, जिनमें प्रेम और विरह की अन्तर्व्यथाओं का भावात्मक रूप सरस अभिव्यन्जनाओं के साथ झांकता प्रतीत होता है। रीतिकाल के अनन्तर भारतेन्दु युग के अंतिम चरण में बख्शी द्वारिका प्रसाद “रामरसिकेन्द्र”, मुंशी शीतल प्रसाद “शीतल” और श्री शारदाप्रसाद “शारदरसैन्दु” ये सभी सम्वत् 1920 वि. से 1930 वि. के मध्य विद्यमान थे और समूचे बुन्देलखण्ड में काव्य ज्योति जगाते रहे।
द्विवेदी युग में कवि सम्मेलनों को धूम मच गई, जिसमें इस जनपद में नवचेतना का संचार हुआ। इस समय के रचनाकारों में प्रमुख थे श्री बेट्टूलाल जी “बटु” चौबे, दरियाव सिंह, बैजनाथ सिन्हा, नाथूराम, शिवप्रसाद “शिवेन्द्र”। इसी समय छायावादी एवं राष्ट्रोत्थान को लेकर रचना करने वाले श्री राजाराम श्रीवास्तव, खड़ीबोली के सरस व समर्थ कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। प्रगतिवादी काव्य चेतना के अग्रदूत श्री केदारनाथ अग्रवाल इस जनपद के इसी काल की देन है। इनके अतिरिक्त आधुनिक युग में बांदा जनपदीय कवियों की एक लम्बी परम्परा है जिनमें नई पुरानी सभी प्रकार की रचना करने वाले अनेकों कवि साहित्य सेवा में संलग्न है। साहित्य किसी भी देश, जाति समाज अथवा उसके अन्चल का सजीव दर्पण होता है।
उसमें उसकी एक क्रमिक परम्परा मिलती है और अलिखित इतिहास सुरक्षित रहता है। विद्वत्ता की दृष्टि से इस जनपद के महामनीषी कवि एवं आचार्य डॉ. रामशंकर शुक्ल “रसाल” को कौन हिन्दी साहित्य प्रेमी नहीं जाता ? वे जहाँ शास्त्रीय ज्ञान के उत्कृष्ट विद्वान है, वहीं रचना के क्षेत्र में भी प्रतिभा सम्पन्न है। खड़ी बोली के इस युग में ब्रजभाषा पर इतना असाधरण अधिकार प्राप्त कर लेना “रसाल” जैसे मनीषियों का ही कार्य है। “उद्धवशतक” की परम्परा “रसाल” जी की भूमिका एक सच्चे सर्जक की भूमिका है। उनकी रचनाओं में धर्म, नीति, दर्शन, राष्ट्रीय चेतना, साहित्यिक संस्करण एवं भक्ति तत्वों का अद्भुत समन्वय प्राप्त होता है। तीस ग्रन्थों के प्रणेता “रसाल” जी इस जिले के गौरव हैं, कीर्ति स्तम्भ हैं।
इसी प्रकार नयागाँव चित्रकूट में जन्मे “दिल दरियाव” की बत्तीस रचनाएँ अपनी काव्य विविधा, कलात्मकता, और भावुकता के लिए प्रसिद्ध हैं। रीतिकाल के किसी भी सशक्त कवि से उनकी रचनाएँ सरलता से होड़ ले सकती है। परम्परा के साथ ही आपने घनाक्षरी “मनहरण” के क्षेत्र में अपनी मौलिक आचार्य प्रतिभा का परिचय दिया है। इनके द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में से “रसान्बोधि”, “श्री राधा षोडशी”, कामद-कीर्तन, “वंक विलोकन”, विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके दोहे तो बिहारी से भी होड़ लेते प्रतीत होते हैं। “मुस्कान” के चित्रण में कवि का कौशल दृष्टव्य है-
“मुख उपवन हिय लतनधनि, मन-मृगबेधत प्रानः
खेलता जनु तुरंग चढि, मृगया मृदु मुसकान,”
आधुनिक हिन्दी राम साहित्य के क्षेत्र में भगीरथ प्रयास कर्ता श्री मन बोधनलाल इस क्षेत्र के अचर्चित किन्तु एक विशिष्ट कवि के रूप में जाने जाते है। उनका “भगवान राम” शीर्षक से नौ सौ पृष्ठीय महाकाव्य आधुनिक हिन्दी राम काव्य परम्परा के लिए एक चुनौती है।
हिन्दी की प्रगतिवादी काव्यधारा के विश्वविख्यात कवि एवं उपन्यासकार बाबू श्री केदारनाथ अप्रवाल बांदा जिले की ही एक विभूति है जिन्होंने अपनी प्रखर प्रतिभा से जीविका और काव्यक्षेत्र दोनों में यश प्राप्त किया। आपकी रचनाएँ आज अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज में समादृत है। और जिनका नाम लिए बिना प्रगतिवाद का इतिहास भी पूर्ण नहीं माना जा सकता। इनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन का गहरा दर्द है, विचारों में तीव्र अनुभूति है और अभिव्यक्ति में नवीनता की सोंधी महक है। बांदा की धरती का यह सजग कलाकार सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार से नवाजा गया। इनकी रचनाओं के विदेशी अनुवाद भी हुए है।
आपकी रचनाएँ अपनी अभिव्यंजना शैली, नवीन युगबोध, स्पष्टता, सरलता एवं मौलिकता के लिए विश्वविख्यात है। आपकी “युग की गंगा”, “लोक और आलोक”, “फूल नहीं रंग’ बोलते हैं” तथा” आग का आइना” विशेष प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। ”समय समय पर” शीर्षक निबंध ग्रन्थ में आपका लेखकीय एवं समालोचक व्यक्तित्व उभरकर सामने आया है। चूँकि वे पेशे से वकील है अतः वे अपने लेखन के संदर्भ में स्वयं कहते हैं कि “बात का बतंगड़ बनाना मेरे गद्य की आदत नहीं है। अपराधी को दण्ड दिलाना मेरा पेशा है, यही पेशा मेरे गद्य का भी है” जीवन दर्शन की दृष्टि से आप “ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, और लेनिनवाद में आस्था रखते हैं।
केदार नए मूल्यों की स्थापना करने वाले विद्रोही कवि हैं, उनकी प्रतिभा सजीव व नवीन उपमानों को वरण करती है। वे शोषितों और पीड़ितों से सहानुभूति रखते हुए शोषकों एवं अत्याचारियों के प्रति हुंकार भरते हैं, उनका कवि दृढ़ता से ललकार उठता है-
“जागरण है प्राण मेरा, क्रान्ति मेरी जीवनी है,
जागरण से, क्रांति से घनघना दूंगा दिशाएं”
उनकी कविताएं आज के परिवेश में आमूल परिवर्तन एवं क्रांतिकारिता के क्षेत्र में बहुत आगे है, उदाहरणार्थ-
“पत्थर के सिर पर दे मारों अपना लोहा
वह पत्थर है जो राह रोककर पड़ा हुआ है
जो न टूटने के घमंड में अड़ा हुआ है।”
इस जनपद की सांस्कृतिक परम्परा के पुजारी श्री राजाराम श्रीवास्तव की सात कृतियां प्रकाशित हैं। दैन्य, दारिद्रय, दासता आदि के प्रति संवेदनात्मक दृष्टिकोण लेकर इनकी काव्य प्रतिभा गीतों के रूप में प्रकट हुई, परिणामस्वरूप” मधुस्त्रवा” एवं “अर्चना” तथा “वनवास” जैसे प्रन्थों की रचना सम्पन्न हुई। आपने समाज के सम्प्रतिक जीवन को भारतीय समाजवादी दृष्टि से देखा है, राष्ट्रीय चेतना का अनुभव किया है और अनेक रचनाओं में छायावादी काव्य की विशेषताओं को अभिव्यक्त करने में सफल हुए हैं।
बांदा जिले के प्रकीर्ण कवियों में विन्दा प्रसाद “औघड़”, “बुटु”, गोवर्द्धनदास त्रिपाठी, कन्हैयालाल “कान्ह” शारदाप्रसाद “सनेही”, नारायणदास “बोखल”, रामकृपाल द्विवेदी, रामनारायण शुक्ल “संदेशी”, पं. शिवावतार मिश्र, कृष्णदत्त चतुर्वेदी, प्राचीन पद्धति परक कवियों में गृहीत होते हैं। श्री गोवर्द्धनदास त्रिपाठी ऐतिहासिक, एवं शोध परक प्रबंध काव्यों के प्रणेता है। “गाँधी गौरव गाथा” और “बुन्देलखण्ड केशरी महाराज छत्रसाल” इनकी प्रमुख कृतियां है। “बटु” बृजभाषा के कवि थे जबकि “कान्ह” हास्य के श्रेष्ठतम कवि के रूप में विख्यात है। श्री रामकृपाल द्विवेदी ने अनेकों ग्रन्थों की रचना कर इस जनपद के कवियों में अपना अग्रणी स्थान बनाया है। इन्होंने “कौन्तेय”, महाकाव्य “श्री राधा महाकाव्य और “झरना” जैसे सुन्दर ग्रन्थों की रचना की है। कृष्णदत्त चतुर्वेदी की दशाधिक रचनाएँ हिन्दी व संस्कृत में समान रूप से वरेण्य लगती है। यह छायावादी पद्धति के विशद विवेचक व सफल गीतकार है। इन्होंने “भूदान यज्ञ” जैसी सामाजिक रचनाएँ दी हैं और “ऊषा परिणय” नामक विशालकाय महाकाव्य का भी सृजन किया है।
सांस्कृतिक धारा में बबेरू अन्चल के श्री लक्ष्मीप्रसाद गुप्त एवं श्री रमाशंकर मिश्र महाकाव्योचित प्रतिभा लेकर क्रमशः “लालबहादुर शास्त्री” एवं “स्वामी विवेकानंद” पर महाकाव्य लिखने में सफल हो गए हैं। प्रगतिशील काव्यधारा में स्व. मुंशी प्रेमचंद के अभिन्न श्री वेरेश्वर सिंह इस जनपद के सधे हुए कवि व कहानीकार हैं। प्रगतिशील विचारधारा को भारतीय परिवेश के माध्यम से प्रस्तुत करने में इन्हें पर्याप्त सफलता मिली है। दैन्य, पीड़ा, विद्रोह और मानवता का यह कवि “भीखू” जैसी प्रगतिशील रचना के द्वारा सदैव स्मृत रहेगा।
इनकी रचना “मां” का प्रकाशन “चांद” पत्रिका इलाहाबाद ने किया था। इसी क्रम में श्री देवकुमार यादव पूर्व विधायक श्री कृष्ण मुरारी पहारिया विकलेश भी प्रमुख हैं, नए रचनाकारों में बच्चूलाल “राही”, कन्हैयालाल दीक्षित, लक्ष्मीचंद “अश्क”, प्रफुल्ल, भैयालाल “राही, विद्रुम” इत्यादि प्रमुख हैं।
इस प्रकार आधुनिक पद्धति परक कवियों की पर्याप्त संख्या है और अपने अपने ढंग की उनकी उपलब्धियां है। एक ओर तो इस जनपद में महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतिकाव्य आदि का पारंपरिक रूप सुरक्षित है और दूसरी ओर छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, साठोत्तरी कविता आदि विभिन्न धाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाली काव्य प्रतिभाएं विकास कर रही हैं। कुल मिलाकर नई पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल लगता है। ये होनहार नवयुवक जनपद की धरती को तुलसी, पदमाकर, बोधा और केदार की परम्परा से आगे गति देंगे, ऐसी सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। केन घाटी सभ्यता, चित्रकूट की पौराणिकता, तुलसी की आराधना और साहित्य साधना से महकता ये जिला जहाँ अतीत में महान विभूतियों को संजोए है और वर्तमान में भी युग प्रवर्तक साहित्यकारों से परिपूर्ण है।
“गुन गरिमा कौ मां कौ परम प्रशंसनीय
ध्वंसनीय शत्रु शूरमा कौ सबरौ घमंड ।
कवि ‘हरिदेव’ काव्य कलित लता कौ यश
गौरव पताको छयों जाको जग में अखण्ड ।।
शैल सरिता कौ वन वैभव प्रथा को बल
विक्रम विभा को प्रतिभा कौ मनो मारतंड ।
ज्ञान गुरूता कौ ध्यान धर्मधुर धीरता कौ
साको वीरता कौ वांकौ विदित बुन्देलखण्ड ।।”
– रामनाथ गुप्त “हरिदेव”