
बांदा जनपद की साहित्यिक परम्परा
June 14, 2024
जालौन जनपद का साहित्यिक सर्वेक्षण
June 14, 2024डॉ. गनेशी लाल बुधौलिया
हमीरपुर को साहित्यिक परम्परा का श्री गणेश हिन्दी साहित्य के आदिकाल में ही हो जाता है। आल्हा काव्य के रचयिता महोबा के दरबारी कवि जगनिक बुन्देलखण्ड के हमीरपुर जनपद के ही थे। आल्हा काव्य हिन्दी साहित्य के आदिकाल का जनप्रिय लोककाव्य है। तब से यह परम्परा किसी न किसी रूप में आज भी चल रही है। हमीरपुर जनपद के हर अंचल में हमीरपुर, राठ, महोबा, चरखारी, कुलपहाड़, मौदहा, खरेला, मुस्करा (बड़ा) आदि स्थानों तथा देहाती क्षेत्र में गांवों में भी यह परम्परा शिष्ट साहित्य और लोक साहित्य के रूप में चलती रही हैं।
जनपद की साहित्यिक सर्जना का सम्पूर्ण संकलन और आंकलन इस आलेख की सीमा क्षमता के बाहर है। उसकी एक झांकी या संक्षिप्त विवरण ही देना सम्भव है। जनपद में तर रस के कवि रहे हैं और आज भी है उनमें आधुनिक युग बोध भी है और अतीत की परम्परा से भी वे जुड़े हुए हैं। हिन्दी साहित्य के शास्त्रीय छन्दों जैसे घनाक्षरी कवित्त, सवैया, कुण्डलिया, दोहे, चौपाई, सोरठा आदि छन्दों में भी इस जनपद में रचनायें हुई हैं। और आज की विभिन्न अभिव्यंजना शैली में भी साहित्य का सर्जन हुआ है। इस जनपद में जहाँ शिष्ट साहित्य के आचार्य कोटि के कवि साहित्यकार, सुधारक, समीक्षक, लेखक हुए हैं उसी कोटि के लोक-साहित्य में भी श्रेष्ठ रचनाकार अनेक फागकार, ख्यालबाज, लावनीबाज और सैराबाज हुए हैं।
शिष्ट साहित्य में आचार्य कोटि के विद्वान कवि और साहित्यकार पण्डित श्याम सुन्दर बादल, पण्डित चतुर्भुज पाराशर, पण्डित महादेव प्रसाद, मुंशी तुलसी दास ‘दिनेश’, उमाशंकर नगाइच “उमेश”, पण्डित जगन्नाथ पाठक, कन्हैया लाल भट्ट (चरखारी), दुर्गाशंकर शास्त्री, पण्डित विश्वनाथ पाठक, हरिदास सक्सेना, कालका प्रसाद सक्सेना “मकरंद”, मंजुल मयंक, उमाशंकर नगाइच महोबा, भगवान दास बालेन्दु, कुलपहाड़, बद्रीप्रसाद तिवारी, प्रेमनारायण शुक्ल, देवनारायण द्विवेदी, कृष्ण मोहन द्विवेदी, नाथूराम चौरसिया, बद्रीप्रसाद शुक्ल, बैजनाथ वर्मा, चन्द्र शेखर तिवारी, बलिहारी उपाध्याय, बृजकिशोर पचौरी, भारतेन्दु, मोहन लाल बुधौलिया, रामलोचन नायक, राजाराम सिंह, लक्ष्मी प्रसाद योगी, विष्णु शर्मा, वेदमित्र शर्मा, श्री दयाल सक्सेना, शिवशंकर दयाल रिछारिया, त्रियुगी नारायण दीक्षित, गिरिजा दयाल सक्सेना, सुरेन्द्र बिहारी सक्सेना, जगदीश चन्द्र कौशल, हरिसिंह सेना, मातादीन भारती, नाथूराम चौबे, बाबूलाल ‘हमीरपुर’, संतोष दीक्षित, भानु प्रताप सिंह “भानु”, चन्द्रशेखर तिवारी ‘हमीरपुर’, लखनलाल जोशी ललित, प्रेमपाल द्विवेदी, नाथूराम पथिक, लक्ष्मीनारायण आनन्द, डॉ. हरगोविन्द सिंह, रतनपाल सिंह पहरा, पं. रामसनेही सरसई, पं. महेश प्रसाद, बल्देव प्रसाद चौबे, बृजकिशोर, अड़जरिया “गुरु”, विमल सक्सेना, परमानन्द खेवरिया आदि साहित्यकार और कवि हमीरपुर जनपद की साहित्यिक परम्परा की माला के अनमोल गुरिये हैं। जनपद के साहित्यिक क्षेत्र के गौरव रत्न हैं। नमनीय हैं, प्रशंसनीय हैं, अनुकरणीय हैं।
लोक साहित्य के क्षेत्र में भी हमीरपुर जनपद का एक विशिष्ट स्थान है। फाग के क्षेत्र में लोककवि ईसुरी, ख्यालीराम, खूबचंद, भुजबल सिंह ठाकुर, तांती लाल देवपुरिया, सूरश्याम तिवारी, पण्डित बैजनाथ व्यास, पदमसिंह उपनाम “राम प्रसाद”, लाल कीरत राम शहजादे, पण्डित शिवराम् शर्मा “रमेश”, बच्ची लाल तिवारी ।
ख्याल और लावनी के क्षेत्र में हमीरपुर जनपद के प्रसिद्ध ख्यालबाज मुंशी राजधर अकौना, पं. वंशगोपाल शुक्ल, सफदर अली, पण्डित राम सनेही पुरैनी, पण्डित महंगू लाल नगाइच, प्रसिद्ध सैराबाज बाबूराम पटवारी, ठाकुर शिवराम सिंह खरैला उल्लेखनीय है।
हमीरपुर जनपद की साहित्यिक सम्पदा पर यदि आलोचनात्मक ढंग से विचार किया जाये तो उसकी अभिव्यंजन शैलियों की विविधता व विभिन्नता, भावों की प्रचुरता, रसों की परिपुष्टता अलंकारों की सघनता और भाषा की भावों के प्रति अनुकूलता आदि विशेषतायें इस साहित्य में हैं। प्रसाद, ओज तथा माधुर्य गुणों की त्रिवेणी सारे साहित्य में तरंगित है। काव्य के दोनों पक्षों कला और भाव का सुन्दर सामंजस्य है। सारे साहित्य का यदि संकलन हो सके तो उसकी भाव समृद्धि के दर्शन कर आश्चर्य चकित होना पड़ेगा। इस साहित्य की मधुसिंचित कविताओं और लोकगीतों ने अनेक हृदयों को अभितृप्ति प्रदान की है, करती है और करती रहेगी।
मानव प्रकृति की अनबूझी गहराइयों में घुसकर इस साहित्य के सरस्वती पुत्रों ने अनुभूति और कल्पना की समृद्धि खोजी और प्राप्त की। सौन्दर्य बोध के मर्मज्ञ और उसकी प्रेरणा से समर्थ इन साहित्यकारों ने वे काव्य गाथायें और कृतियां प्रस्तुत कीं जिनकी पृष्ठभूमि रंगों की भूमिका में सर्वथा ऋद्ध और समृद्ध है। शब्दों की सुरुचिता, शालीनता एवं आकर्षक सबलता और ध्वनियों के क्षेत्र में ये कवितायें शब्दों के और भावों के सुन्दरतम नमूने गढ़ती चली जाती हैं। कवि की तरलता, ढरनशीलता सुगन्धित ताजगी लिये रस की हिलोर बन कर हृदय को भावविभोर कर देती है।