रामायणकाल से इस बुंदेलखंड भू-भाग में जल संरचनाओं की उपस्थिति (विद्यमानता) के उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में उपलब्ध हैं। यथा –
रामायणकालीन चित्रकूट में स्थित ‘भरत कूप’ तो बहुत प्रसिद्ध है। ‘कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहाँ भरत जी ने अत्रि ऋषि की आज्ञानुसार सब तीर्थों का जल लाकर पूर्व निर्मित कूप में डाला था।’ ‘मधुकर’ पाक्षिक, वर्ष 2, अंक 8, पृ. 18)
रामकुण्ड उरई जिला जालौन (उ.प्र.) को विद्वान महाभारत कालीन मानते हैं।
यथा ‘वस्तुतः रामकुण्ड के इतिहास के बारे में विद्वानों का बहुमत है कि इसका निर्माण महाभारत काल में महर्षि उद्दालक ने अपने आश्रम में कराया था, जिसके अवशेष खुदाई में गुफा के रूप में विद्यमान हैं। काल का निर्धारण उद्दालक ऋषि के पुत्र नासी केतु से किया गया, जो महाभारत में मारा गया था। कालान्तर में यहीं बस्ती बसी, जिसे उद्दालकपुरी के नाम से जाना जाता था और आज इसे ही उरई नाम से पुकारा जाता है। (रामकुण्ड पर अंकित शिलालेखानुसार।’ ‘सारस्वत’ स्मारिका, वर्ष 1999, पृ. 40)
बरहेटा- ‘कहा जाता है कि बरहेटा के चार तालाब और नोनिया तथा कछवा में स्थित तालाब राजाबाराट या भरत के बनवाये हैं। ग्राम स्थानों के नीचे दबे पड़े अवशेष भी उन्हीं के महल के अवशेष माने जाते हैं।’ नरसिंहपुर जिला गजेटियर, पृ. 11)
महाराजपुर की बावड़ी ‘जिले (जबलपुर) की जल संचय की दूरदर्शी प्रवृत्ति में सुनहरा अध्याय तब जुड़ा, जब पिछले साल जलाभिषेक अभियान के दौरान कचरे से भरी पड़ी सम्राट अशोककालीन बावड़ी का पता चला। अपने बजूद में आते ही यह बावड़ी ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ही यहाँ मौजूद जल संचय की संस्कृति का एक मूक गवाह बन गई।’ मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6, पृ. 9)
Chandpur ‘Tradition has it that a spot close to a well (known as the Jhammer well) shows the foot prints of Raja Jhamer Deo a raja of central India, who was about 2000 (झाँसी जिला गजेटियर, पृ. 334)
तेवर – ‘पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन में ईसा से 1000 वर्ष पूर्व स्थित घरों में कुएँ मिले हैं, जो ईसा से 2000 वर्ष पुराने अनुमानित हैं।’ (प्रेम नारायण श्रीवास्तव सम्पा. जबलपुर जिला गजेटियर, पृ. 616)
एरण – इस स्तर के द्वितीय भाग में दो चक्रदार कुएँ (रिंग वैल) और 3268 पंच मार्क्स सिक्कों की निधि प्राप्त हुई है। ये सिक्के दूसरी-पहली शती ईसवी पूर्व के हैं।’ (बुंदेलखंड का पुरातत्व, पृ. 74)