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September 16, 2024साहित्यवारिधि श्री रामचरण हयारण ‘मित्र’
September 16, 2024अपने जनपद में सामान्यतः हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध सभी धर्मां के मानने वाले निवास करते हैं, जिसमें अधिकाशंतः हर जाति-धर्म के लोग खेती और दूध का व्यवसाय करते हैं; यहाँ की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। जनपद में लघु और कुटीर उद्योग धन्धे भी जीविका का साधन हैं; जनपद की अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या पत्थर व्यवसाय में संलग्न है; और इसी से अपना जीवन यापन करते है; जनपद में कई जगह इमारती पत्थर की खदानें है जनपद के ग्रेनाइट पत्थर की माँग पूरे देश में रहती है। जनपद में सिर्फ एक बड़ा उद्योग चिगलऊआ थर्मल पावर प्लान्ट ही है। जो वार विकास खण्ड में स्थित है इस प्लान्ट से भी स्थानीय लोगों को कुछ रोजगार मिल रहा है।
अपने जनपद का रहन-सहन पहले पुराने ढंग का था और यहाँ अधिकांश पुरूष अँगरखा, धोती, कमीज, पंचा, सिर पर साफा, टोपी पहनते थे। अधिकांश लोग लाठी लेकर चलते थे। महिलाएँ धोती, पोलका, कुर्ती, व्लाउज पहने हुए देखी जा सकती थी। वह हाथ पैरों, गले आदि में घुन्सी तोडर, लच्छा, पैंजना, अनौखा, गूजरी, गुजरिया, झाँझें, अनोटा, पाँते बाँके, पछेला, गुंजें, बखौरिया, बजुल्ला, कठला, खंगौरिया, तिदानों, लल्लरी, हँसली, विचौली, पुंगरिया, नथ, नथुनियाँ बैदा, बैंदी, शीशफूल आदि आभूषण पहने हुए देखी जा सकती थीं।
समय के साथ-साथ हमारे रहन-सहन का स्तर भी बदला और आज ग्रामीण से ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पेन्ट-शर्ट, कुर्ता पाजामा कोट-पेन्ट, जाकेट, शेरवानी, जीन्स टी-शर्ट, इन्डोवेस्टन, जैसे आधुनिक परिधान पहने देखे जा सकते हैं। महिलाएँ भी इस होड़ में पीछे नहीं है और वह भी आज साड़ी-व्लाउज, सलवार कुर्ता, लेगी कुर्ती, प्लाजो-कुर्ती पहने हुए देखी जा सकती है और लड़कियाँ तो इसके साथ-साथ जीन्स टी-शर्ट आदि भी पहनने लगी हैं। आज महिलाएँ हाथ पैरों में पायलें तोडियाँ विछिया मंगलसूत्र, जंजीर, कई तरह के गले के हार, बाजूवन्द, गुलबन्द, कंगन, बेलचूड़ी और तरह-तरह के आधुनिक आभूषण पहने देखी जा सकती हैं।
पहले जनपद में भोजन के रूप में मोटे अनाज कोदों, कुटकी, राली, ज्वार, बाजरा, मक्का, आदि पर ही निर्भर रहना पड़ता था। आज मोटे अनाजों की पैदावार यदाकदा ही देखी जा सकती है । आज उन्नत किस्म के बीज और आधुनिक कृषि यंत्रों की उपलब्धता के कारण कृषि के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन आया है और देश के साथ-साथ जनपद में भी हरित क्रांति आ गई है और आज गेहूँ, चना, मटर, अलसी, सोयावीन, मूँगफली, मूँग, उड़द, मसूर, अरहर और धान, राई, सरसों आदि का उत्पादन विपुल मात्रा में होने लगा है; साथ ही फल और सब्जियों का उत्पादन भी प्रचुर मात्रा में होने लगा है।
जनपद में पुराने समय में लोगों को आने-जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल या बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी (इक्का ताँगा) या घोड़ों से यात्रा करनी पड़ती थी। आज मोटर, कार, जीप, स्कूटर, स्कूटी, मोपेड़, मोटर साइकिल (वाईक) एवं साइकिल तो लगभग हर घर में देखी जा सकती हैं आज टेक्सी, टेम्पो, भी यातायात का प्रमुख साधन हैं इन साधनों के बढ़ने से हमारे समय की बहुत वचत होने लगी है।
आज जनपद में खेती के साथ-साथ, सहरिया, सौंर तथा गौंड़ भील आदि जाति के लोग वनोपजों- चिरोंजी, महुआ, गुली, निवोरी, अचार, तेंदूपत्ता कई प्रकार की जड़ी बूटियों के साथ-साथ शहद आदि से जीवन यापन करते हैं। इनके सीजन में इन्हें पर्याप्त रोजगार भी मिल जाता है। जनपद में आज भी कई छोटे-बडे़ तालाब और बाँध है जिनमें मछलीपालन और कमल के फूल, मुरार, कमलगटा, सिंगाड़ा और तरबूज, खरबूज आदि लोगों के रोजगार का भी एक प्रमुख साधन है।
जनपद में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के साधन उपलब्ध हो जाने के कारण लोग शिक्षित हो रहे हैं जिस कारण उनके जीवन यापन का स्तर भी दिनों दिन बदल रहा है साथ ही महिलाएँ भी शिक्षा के क्षेत्र में सतत प्रगति कर रही हैं और वह आत्मनिर्भर हो रही हैं।
आज जनपद में मुख्यतः होली, दीपावली, दशहरा, नवदुर्गा मूर्ति स्थापना, गणेश मूर्ति स्थापना, ईद, ताजिया, मोहर्रम, हनुमान जयंती, चेटी चाँद, झूलेलाल जयंती, कार्तिक स्नान, लुहेड़ी, वैशाखी, महावीर जयंती, संतरविदास जयंती, गुरूनानक जयंती, गुरूतेग बहादुर जयंती, बुद्ध पूर्णिमा, क्रिसमस के साथ-साथ परम्परागत मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, अख्ती (अक्षय तृतीया), मामुलिया- नौरता के साथ-साथ कई छोटे-बड़े त्यौहार भी प्रचलित हैं जो समय-समय पर सांस्कृतिक और सामाजिक सदभावना के साथ मनाये जाते हैं।